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रिश्तों में शब्दों का प्रभाव : हानिकारक शब्दों को टालिए

सांसारिक जीवन में अध्यात्म कभी आया ही नहीं है। दोनों को अलग ही रखा गया है। यहाँ पर अक्रम विज्ञान ने अध्यात्म को सांसारिक जीवन के केन्द्र में रख दिया है।

पूज्य दादाश्री ने व्यवहारिक समाधान दिए हैं कि हम कैसे अपने दोस्तों और परिवार के साथ बातचीत का शुद्ध व्यवहार रखें, ताकि किसीको दुःख न हो। उनके द्वारा दिए गए समाधान सीधे दिल को छू लेते हैं और अंत में मुक्ति प्राप्त करवाते हैं।

क्या आप कभी शांति से बात नहीं करतें? आप अपने ऊपरी अधिकारियों और बॉस के साथ शांति से बात करते हैं। लेकिन अपने मातहत के साथ आप कठोर भाषा का प्रयोग करते हैं। आप दिनभर उनकी टीका करते हो और डाँटते हो जिससे आपकी पूरी बात बेकार जाती है, क्योंकि उसके पीछे अहंकार है।

बातचीत के माध्यम से पारस्परिक समस्याओं से कैसे निबटें, जानने के लिए आगे पढ़िए।

Clear mistakes by Pratikraman

Pratikraman is a method of spiritual repentance which clears karmas associated with hurting others. With this practice, conflicts are resolved and inner peace remains.

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Top Questions & Answers

  1. Q. शब्दों का रिश्तों पर क्या प्रभाव पड़ता है?

    A. प्रश्नकर्ता : पर इन शब्दों पर से बहुत झगड़े होते हैं। दादाश्री : शब्दों से तो जगत् खड़ा हो गया है।... Read More

  2. Q. कठोर वचन कैसे टालें?

    A. मनुष्य होकर प्राप्त संसार में द़खल नहीं करे, तो संसार इतना सरल और सीधा चलता रहेगा। पर यह प्राप्त... Read More

  3. Q. घर में वादविवाद को कैसे टालें?

    A. प्रश्नकर्ता : कईबार घर में बड़ी लड़ाई हो जाती है, तो क्या करें? दादाश्री : समझदार व्यक्ति हो न तो... Read More

  4. Q. बच्चों के साथ कैसे बातचीत करें?

    A. प्रश्नकर्ता: बच्चों के साथ बच्चा हो जाएँ और उस प्रकार से व्यवहार करें, तो वह किस तरह? दादाश्री:... Read More

  5. Q. बच्चों को कैसे सँभाले? बच्चें वादविवाद क्यों करते हैं?

    A. प्रश्नकर्ता: यहाँ के बच्चे बहुत बहस करते हैं, आर्ग्युमेन्ट बहुत करते हैं। यह आप क्या लेक्चर दे रहो... Read More

  6. Q. जब कोई झूठ बोल रहा हो, तब क्या हमें कुछ नहीं बोलना चाहिए?

    A. प्रश्नकर्ता : पर वे गलत बोलते हों या गलत करते हों तो भी हमें नहीं बोलना चाहिए? दादाश्री : बोलना... Read More

  7. Q. व्यवसाय में कठोर वचन बोलने से कैसे बचें?

    A. प्रश्नकर्ता : व्यापार में सामनेवाला व्यापारी जो होता है, वह नहीं समझे और अपने से क्रोधावेश हो जाए,... Read More

  8. Q. अपमान का सामना कैसे करें?

    A. प्रश्नकर्ता : कोई कुछ बोल जाए, उसमें हम समाधान किस तरह करें? समभाव किस तरह रखें? दादाश्री : अपना... Read More

  9. Q. टकराव मुक्त संबंध कैसे रखें?

    A. दादाश्री : तो फिर मनुष्य झगड़ें तो कैसे अच्छा लगेगा? कुत्ते झगड़ते हों तो भी अच्छा नहीं लगता... Read More

  10. Q. रिश्तों में टकराव लानेवाली समस्याओं से कैसे निपटे?

    A. प्रश्नकर्ता : कहना नहीं आए तो फिर क्या करना चाहिए? चुप बैठना चाहिए? दादाश्री : मौन रहना और देखते... Read More

Spiritual Quotes

  1. शब्द मीठे चाहिए और शब्द मीठे नहीं हों तो बोलना नहीं।
  2. आपके बोलने में कोई ऐसा वाक्य नहीं है न, कि किसीको दुःखदायी हो जाए वैसा? तब तक बोलना खराब नहीं कहलाता।
  3. लोगों को हमारी निंदा करने का अधिकार है। हमें किसी की निंदा करने का अधिकार नहीं है।
  4. अगर आप कुछ कहना चाहते हैं तो इतना निश्चित करें कि वह पॉज़िटिव है।
  5. बोल (शब्द) तो लक्ष्मी है। उसे तो गिन-गिनकर देना चाहिए।
  6. सामनेवाले को फिट हो जाए, वह करेक्ट वाणी कहलाती है!
  7. झूठ बोलने से क्या नुकसान होता होगा? विश्वास उठ जाता है अपने पर से! और विश्वास उठ गया मतलब इंसान की कीमत खत्म!
  8. किसी की निंदा करते हो तब आपके खाते में ‘डेबिट’ हुआ और उसके खाते में ‘क्रेडिट’ हुआ। ऐसा धंधा कौन करे?
  9. स्याद्‌वाद वाणी क्या कहती है? आप ऐसा बोलो कि पाँच लोगों को लाभ मिले और किसी को भी परेशानी न हो।
  10. कोई व्यक्ति अगर उलटी वाणी बोल रहा हो तो आप अपनी वाणी मत बिगाड़ना।
  11. प्रत्येक शब्द बोलना जोखिम भरा है। इसलिए यदि बोलना नहीं आए तो मौन रहना अच्छा। धर्म के लिए बोलो तो धर्म का जोखिम और व्यवहार में बोलो तो व्यवहार का जोखिम। व्यवहार का जोखिम तो खत्म हो जाए, लेकिन धर्म का जोखिम बहुत भारी है। उससे धर्म में बहुत भारी अंतराय पड़ते हैं।
  12. इस जगत् में कोई भी शब्द व्यर्थ नहीं बोला जा रहा है।
  13. किसी पर जो वाणी उँडेलते हो, वह सारी अंत में आप पर ही आती है। इसलिए ऐसी शुद्ध वाणी बोलो कि शुद्ध वाणी ही आप पर आए।
  14. वाणी बोलने में हज़र् नहीं है लेकिन उसका ऐसा रक्षण नहीं होना चाहिए कि हम सच्चे हैं।
  15. वचनबल कैसे प्राप्त होता है? एक भी शब्द का उपयोग मज़ाक के लिए नहीं किया हो, एक भी शब्द का उपयोग झूठे स्वार्थ या किसी से कुछ ऐंठने के लिए नहीं हुआ हो, वाणी का दुरुपयोग नहीं किया हो, खुद का मान बढ़ाने के हेतु से वाणी का उपयोग नहीं किया हो, तब वचनबल सिद्ध होता है!
  16. ‘सेन्सेटिव’ व्यक्ति के आगे कोई शब्द बोल दिया कि तुरंत ‘इफेक्ट’ हो जाता है। वास्तव में शब्द तो ‘रिकॉर्ड’ है।
  17. लोग बोले गए शब्दों को वापस लिवा लेते हैं लेकिन उन्हें समझ नहीं आता कि वाणी तो रिकॉर्ड है, वापस कैसे खींच सकते हैं?
  18. इस दुनिया में कड़वा कहनेवाला कोई नहीं मिलता। मिठास से ही सारे रोग रुके हुए हैं। उस कड़वाहट से रोग जाएँगे, मिठास से रोग बढ़ेंगे। हमारा जीवन ऐसा होना चाहिए कि कड़वा वचन सुनने का समय ही नहीं आए। फिर भी यदि कड़वा वचन सुनना पड़े तो सुन लेना। वह तो हमेशा हितकर ही है।
  19. जब मौन हो जाओगे तब ऐसा माना जाएगा कि जगत् को समझ गए।
  20. इस दुनिया में मौन जैसी सख्ती अन्य कोई नहीं है। वाणी की सख्ती तो व्यर्थ जाती है।
  21. जितना मौन धारण करोगे, उतनी ही बुद्धि मंद होगी।
  22. खुद की ‘सेफसाइड’ (सलामती) के लिए झूठ बोलो तो वचनबल कैसे रहेगा?
  23. हम जो शब्द बोलते हैं, वे बोलने नहीं हैं, फिर भी बोल लेते हैं। प्रकृति नाचती है और ऐसा तूफान खड़ा हो जाता है। कितने ही ‘प्रतिक्रमण’ होने के बाद वह प्रकृति बंद होती है!
  24. जहाँ मतभेद होने लगे, वहाँ हमें अपने शब्द वापस ले लेने चाहिए, यह समझदार पुरुषों की निशानी है।
  25. अगर ये शब्द नहीं होते तो मोक्ष तो सहज ही है। इस काल में वाणी से ही बंधन है इसलिए किसी के लिए एक अक्षर भी नहीं बोलना चाहिए।
  26. इस वातावरण में सिर्फ परमाणु ही भरे हुए हैं। इसीलिए तो हम कहते हैं कि किसी की निंदा मत करना। एक शब्द भी गैर ज़िम्मेदारीवाला मत बोलना। और यदि बोलना है तो अच्छा बोल।
  27. जो तिथि जा चुकी है उसे तो ब्राह्मण भी नहीं देखते, और अक्लवाले याद रखते हैं कि इसने मुझे दगा दिया था, इसने मुझे बेअक्ल का कहा था! यह वाणी का प्रवाह तो पानी के प्रवाह जैसा है! उसे कैसे पूछ सकते हैं कि तुम कैसे टकराते हुए आए?!
  28. ‘बोल’ तो ‘एक्सपेन्स’ (खर्च) कहलाते हैं। वाणी खर्च नहीं हो जानी चाहिए। ‘बोल’ तो लक्ष्मी है। उसे तो गिन-गिनकर देना चाहिए। क्या लक्ष्मी कोई बिना गिने देता है?
  29. जितने भी सेन्सिटिव लोग हैं, उन्हें मौन रहने की ज़रूरत हैं। मौन रखने के बजाय तो अगर इतना ध्यान रहे कि हमारी वाणी से दूसरों पर क्या असर होता है, तो ज़्यादा अच्छा है।
  30. स्यादवाद वाणी की भूमिका कब उत्पन्न होती है? तब, जब अहंकार शून्य हो जाता है, पूरा जगत् निर्दोष दिखाई देता है, किसी जीव का किंचित्मात्र भी दोष नहीं दिखाई देता है, किंचित्मात्र भी किसी धर्म का प्रमाण आहत नहीं होता।
  31. संसारिक मीठी वाणी स्लिप करवाती है और स्यादवाद मधुर वाणी ऊध्र्वगामी बनाती है!
  32. व्यवहार शुद्धि के बगैर स्यादवाद वाणी नहीं निकल सकती।
  33. जहाँ स्यादवाद वाणी है वहाँ आत्मज्ञान है। जहाँ एकांतिक वाणी है वहाँ आत्मज्ञान नहीं है।

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