निजदोष दर्शन से निर्दोष
जो चीज़ एक व्यक्ति के हिसाब से सही है वही चीज़ दूसरे व्यक्ति के दृष्टिकोण से गलत हो सकती है|उत्तम यहि है की दूसरों की गलतियाँ ढूँढना टाले|
अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें“यदि खुद के स्वरूप को पहचान लिया तो फिर वह, खुद ही परमात्मा है |”
~ परम पूज्य दादा भगवान
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
अधिक पढ़ेंअहमदाबाद से २० की.मी. की दूरी पर सीमंधर सिटी, एक आध्यात्मिक प्रगति की जगह है| जो "एक स्वच्छ, हरा और पवित्र शहर" जाना जाता है|
अधिक पढ़ेंअक्रम विज्ञानी, परम पूज्य दादा भगवान, द्वारा प्रेरित एक अनोखा निष्पक्षपाति त्रिमंदिर।
"दूसरों के दोष देखने से कर्म बँधन होता है और खुद के दोष देखने से कर्मों से मुक्ति मिलती है।" यह कर्म का सिद्धांत है।
अपने खुद के स्वरूप की अज्ञानता ही सबसे बड़ी भूल है। "मैं कौन हूँ?" यह अज्ञान ही सभी दोषों का मूल कारण है?
ज्ञानीपुरुष के आर्शीवाद से यह दोष भस्मीभूत हो जाता है और परिणाम स्वरूप बाकी के सभी दोष भी खत्म होने लगते हैं।
जब तक व्यक्ति को आत्माज्ञान प्राप्त नहीं हो जाता, तब तक वह सभी में दोष देखता है और खुद के दोष कभी नहीं देख सकता।
आत्मज्ञान प्राप्ति के बाद में आपको अपने मन-वचन-काया के प्रति पक्षपात नहीं रहता और ऐसी निष्पक्षपाती दृष्टि के परिणाम स्वरूप आप खुद के दोष देख सकते हैं।
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