अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें21 मार्च |
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
अधिक पढ़ेंअहमदाबाद से २० की.मी. की दूरी पर सीमंधर सिटी, एक आध्यात्मिक प्रगति की जगह है| जो "एक स्वच्छ, हरा और पवित्र शहर" जाना जाता है|
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प्रश्नकर्ता : पर इन शब्दों पर से बहुत झगड़े होते हैं।
दादाश्री : शब्दों से तो जगत् खड़ा हो गया है। जब शब्द बंद हो जाएँगे, तब जगत् बंद हो जाएगा।
सारी लड़ाईयाँ शब्द से ही हुई हैं इस दुनिया में, जो भी हुई हैं वे! शब्द मीठे चाहिए और शब्द मीठे नहीं हों तो बोलना नहीं। अरे, झगड़ा किया हो अपने साथ, उनके साथ भी हम मीठा बोलें न, तो दूसरे दिन एक हो जाएँ वापिस।
सामने बड़ी उम्रवाला हो न, तो भी उसे कहेंगे, 'आपमें अक्कल नहीं है।' इनकी अक्कल नापने निकले! ऐसा बोला जाता होगा? फिर झगड़े ही होंगे न! पर ऐसा नहीं बोलना चाहिए, सामनेवाले को दुःख हो वैसा कि 'आपमें अक्कल नहीं है।' सामान्य मनुष्य तो नासमझी के मारे ऐसा बोलकर जिम्मेदारी स्वीकारता है। पर समझदार हों, वे तो खुद ऐसी जिम्मेदारी लेते ही नहीं न! नासमझीवाला उल्टा बोले पर खुद को सीधा बोलना चाहिए। सामनेवाला तो नासमझी से चाहे जो पूछे, पर खुद को उल्टा नहीं बोलना चाहिए। जिम्मेदार है खुद।
सामनेवाले को 'आप नहीं समझोगे' ऐसा कहना, वह बहुत बड़ा ज्ञानावरण कर्म है। 'आप नहीं समझोगे' वैसा नहीं कह सकते। पर 'आपको समझाऊँगा' ऐसा कहना चाहिए। 'आप नहीं समझोगे' कहें तो, सामनेवाले के कलेजे पर घाव लगता है।
हम सुख में बैठे हों और थोड़ा कोई आकर कहे, 'आपमें अक्कल नहीं है।' इतना बोले कि हो गया, खतम! अब उसने कोई पत्थर मारा है?
शब्द का ही असर है जगत् में। छाती पर घाव लगे, वह सौ-सौ जन्मों तक नहीं जाता। 'छाती पर घाव लगा है, ऐसा बोले हो', कहेंगे। असर ही है यह! जगत् शब्द के असर से ही खड़ा हुआ है।
कितनी ही बहनें मुझे कहती हैं, 'मेरे पति ने मुझे कहा था, उससे मेरी छाती पर घाव लगा है। वह मुझे पच्चीस वर्षों बाद भी भूला नहीं जाता।' तब वाणी से कैसा पत्थर मारा होगा?! जो घाव फिर भरते नहीं हैं। वैसे घाव नहीं लगाने चाहिए।
अपने लोग लकड़ियों से मारते हैं घर में? लकडि़याँ या धौल नहीं मारते? नीची जाति में हाथ से या लकड़ी से मारामारी करते हैं। ऊँची जाति में लकड़ी से नहीं मारते, पर वचनबाण से ही मारते रहते हैं।
शब्द किसीसे बोलें और उसे खराब लगे तो वह शब्द अपशब्द कहलाता है। वह अकारण ही अपशब्द बोलता हो न, तो भी जोखिम है। और अच्छे शब्द अकारण बोलता हो तो भी हितकारी है। पर गलत शब्द, अपशब्द अकारण ही बोलते हों, वह अहितकारी है। क्योंकि अपशब्द किसे कहा जाता है? दूसरों को कहें, और उसे दुःख हो वे सारे ही अपशब्द कहलाते हैं। बाहर पुलिसवाले को तो कुछ नहीं कहत , बस घर में ही कहते हैं न! पुलिसवाले को अपशब्द कहनेवाला ऐसा कोई बहादुर मैंने देखा नहीं है (!) पुलिसवाला तो हमें पाठ पढ़ाता है। घर में पाठ कौन पढ़ाएगा? हमें नया पाठ तो सीखना चाहिए न?!
Book Name: वाणी, व्यवहार में...( Page #1 Paragragh #6, #7; Page #2 & Page #3 Paragragh #1, #2)
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