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रिश्तों में टकराव लानेवाली समस्याओं से कैसे निपटे?

प्रश्नकर्ता : कहना नहीं आए तो फिर क्या करना चाहिए? चुप बैठना चाहिए?

दादाश्री : मौन रहना और देखते रहना कि 'क्या होता है?' सिनेमा में बच्चों को पटकते हैं, तब क्या करते हैं हम? कहने का अधिकार है सभी को, पर क्लेश बढ़े नहीं उस तरह कहने का अधिकार है, बा़की जो कहने से क्लेश बढ़े वह तो मूर्ख का काम है।

प्रश्नकर्ता : अबोला लेकर बात को टालने से उसका निकाल हो सकता है?

दादाश्री : नहीं हो सकता। हमें तो सामनेवाला मिले तो कैसे हो? कैसे नहीं? ऐसे कहना चाहिए। सामनेवाला ज़रा शोर मचाए तो हमें ज़रा धीरे से 'समभाव से निकाल' करना चाहिए। उसका निकाल तो करना ही पड़ेगा न, जब कभी भी? अबोला करने से क्या निकाल हो गया? वह निकाल नहीं होता, इसलिए तो अबोला खड़ा होता है। अबोला मतलब बोझा, जिसका निकाल नहीं हुआ उसका बोझा। हमें तो तुरन्त उसे खड़ा रखकर कहना चाहिए, 'ठहरो न, मेरी कोई भूल हुई हो तो मुझे कहो, मेरी बहुत भूलें होती हैं। आप तो बहुत होशियार, पढ़े-लिखे इसलिए आपकी नहीं होती, पर मैं कम पढ़ा-लिखा हूँ इसलिए मेरी बहुत भूलें होती हैं, ऐसा कहें तो वह खुश हो जाएगा।'

प्रश्नकर्ता : ऐसा कहने पर भी वह नरम नहीं पड़ें तब क्या करें?

दादाश्री : नरम नहीं पड़े तो हमें क्या करना है? हमें तो कहकर छोड़ देना है। फिर क्या उपाय है? कभी न कभी तो नरम पड़ेंगे। डाँटकर नरम करो तो उससे कोई नरम होता नहीं है। आज नरम दिखेगा, पर वह मन में नोंध रखेगा और हम जब नरम हो जाएँगे, उस दिन वह सारा वापिस निकालेगा। यानी जगत् बैरवाला है। कुदरत का नियम ऐसा है कि हर एक जीव अंदर बैर रखता ही है। भीतर परमाणुओं का संग्रह करके रखते हैं। इसलिए हमें पूरा केस ही खारिज कर देना चाहिए।

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