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जब कोई झूठ बोल रहा हो, तब क्या हमें कुछ नहीं बोलना चाहिए?

प्रश्नकर्ता : पर वे गलत बोलते हों या गलत करते हों तो भी हमें नहीं बोलना चाहिए?

दादाश्री : बोलना चाहिए। ऐसा कह सकते हैं, 'ऐसा नहीं हो तो अच्छा, ऐसा नहीं हो तो अच्छा।' हम ऐसा कह सकते हैं। पर हम उसके बॉस (ऊपरी) हों, उस तरह से बात करते हैं न, इसलिए बुरा लगता है। खराब शब्द हों, वे विनय के साथ कहने चाहिए।

प्रश्नकर्ता : बुरा शब्द बोलते समय विनय रह सकता है?

दादाश्री : वह रह सकता है, वही विज्ञान कहलाता है। क्योंकि 'ड्रामेटिक' (नाटकीय) है न! होता है लक्ष्मीचंद और कहता है, 'मैं भर्तुहरि राजा हूँ, इस रानी का पति हूँ, फिर भिक्षा दे दे मैया पिंगला।' कहकर आँखों में से पानी टपकाता है। तब, 'अरे, तू तो लक्ष्मीचंद है न? तू सचमुच रोता है?' तब कहेगा, 'मैं क्यों सचमुच रोऊँ? यह तो मुझे अभिनय करना ही पड़ेगा, नहीं तो मेरी तऩख्वाह काट लेंगे।' उस तरह से अभिनय करना है। ज्ञान मिलने के बाद यह तो नाटक है।

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