प्रश्नकर्ता : कोई कुछ बोल जाए, उसमें हम समाधान किस तरह करें? समभाव किस तरह रखें?
दादाश्री : अपना ज्ञान क्या कहता है? कोई आपका कुछ कर सके ऐसा है ही नहीं। वर्ल्ड में कोई जन्मा ही नहीं कि जो आपमें कुछ द़खल कर सकता हो। किसीमें कोई द़खल कर सके वैसा है ही नहीं। तो यह द़खल क्यों आती है? आपमें जो द़खलअंदाज़ी करता है वह आपके लिए निमित्त है। पर उसमें मूल हिसाब आपका ही है। कोई उल्टा करे या सीधा करे, पर उसमें हिसाब आपका ही है और वह निमित्त बन जाता है। वह हिसाब पूरा हुआ कि फिर कोई द़खल नहीं करेगा।
इसलिए निमित्त के साथ झगड़ा करना बेकार है। निमित्त को काटने दौड़ने पर फिर वापिस गुनाह खड़ा होगा। इसलिए इसमें करने के लिए कुछ रहता नहीं है। यह विज्ञान है, वह सब समझ लेने की ज़रूरत है।
प्रश्नकर्ता : कोई हमें कुछ कह जाए, वह भी नैमितिक ही है न? अपना दोष नहीं हो, फिर भी बोले तो?
दादाश्री : इस जगत् में आपका दोष नहीं हो तो किसी व्यक्ति को ऐसा बोलने का अधिकार नहीं है। इसलिए ये बोलते हैं तो आपकी भूल है, उसका बदला देते हैं यह। हाँ, वह आपकी पिछले जन्म की जो भूल है, उस भूल का बदला यह व्यक्ति आपको दे रहा है। वह निमित्त है और भूल आपकी है। इसलिए ही वह बोल रहा है।
अब वह अपनी भूल है, इसलिए यह बोल रहा है। तो वह व्यक्ति हमें उस भूल में से मुक्त करवा रहा है। उसकी तरफ भाव नहीं बिगाड़ना चाहिए। और हमें क्या कहना चाहिए कि प्रभु, उसको सद्बुद्धि दीजिए। उतना ही कहना, क्योंकि वह निमित्त है।
हम क्या कहना चाहते हैं? कि जो कुछ आता है वह आपका हिसाब है। उसे चूका देने के बाद, नए सिरे से ऱकम उधार मत देना।
Book Name: वाणी, व्यवहार में...(Page #20 Paragragh #2 to #7 & Page #21 Paragragh #1)
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