योग और ध्यान आत्मानुभूति करने में किस तरह से सहायक है?

मंत्र, ध्यान, योग, चक्र ध्यान, उपवास, शारीरिक तप, प्रकाश ध्यान, श्वासोच्छवास पर ध्यान केंद्रित करना, कुंडलिनी योग आदि ये सभी साधन मन व सूक्ष्म कषायों को नियंत्रित करने में उपयोगी हैं। लेकिन ये सभी साधन तभी तक उपयोगी हैं, जब तक आत्म साक्षात्कार नहीं होता। ये सभी साधन अंतिम लक्ष्य नहीं है। एक व्यक्ति आनंद की अनुभूति तभी तक करता है जब तक वह इन सब से अतिशय जुड़ा हुआ हो, लेकिन जैसे ही इन से अलग होता है कि वहीं पहुँच जाता है जहाँ से उसने शुरूआत की थी। सिर्फ तभी वह ठीक समझा जाएगा कि जब मन निरंतर नियंत्रण में रहेगा।

निर्विकल्प समाधि यानी विचार, वाणी और वर्तन कीउपाधि(बाहर से आनेवाला दुःख) रहने के पश्चात भी सपूंर्ण निराकुलता की स्थिति। सिर्फ ज्ञानी ही ऐसी समाधि दशा में रहते हैं, जहाँ मानसिक या शारीरिक कोई भी स्थिति उन्हें असर नहीं करती और न ही कोई स्पंदन उत्पन्न होते हैं। इसके अलावा, सिर्फ केवलज्ञानी ही आपको आत्मा का वास्तविक ध्यान (शुक्लधान) प्राप्त करवा सकते हैं।

तो आइए अक्रम विज्ञानी परम पूज्य दादाश्री से सच्चे योग और ध्यान के बारे में जानने के साथ ही आत्मानुभव प्राप्त करें।

Top Questions & Answers

  1. Q. योग और ध्यान के कितने प्रकार होते हैं?

    A. ज्ञानयोग : अज्ञानयोग प्रश्नकर्ता: योगसाधना करते हैं, उससे विकास होता है न? दादाश्री: पहले हमें तय... Read More

  2. Q. मैं ध्यान क्यों नहीं कर पाता और मैं एकाग्र कैसे रहूँ?

    A.   एक ध्यान में थे या बेध्यान में थे, इतना ही भगवान पूछते हैं। हाँ, वे बेध्यान नहीं थे। ‘नहीं होता’... Read More

  3. Q. क्या ध्यान से मन पर नियंत्रण पाया जा सकता है?

    A. मन पर काबू प्रश्नकर्ता: मन पर कंट्रोल कैसे किया जा सकता हैं? दादाश्री: मन पर तो कंट्रोल हो ही... Read More

  4. Q. ध्यान कैसे करें? सच्चे ध्यान (आध्यात्मिक ध्यान) के बारे में समझाइए।

    A. जगत् के लोग ध्यान में बैठते हैं, लेकिन क्या ध्येय निश्चित किया? ध्येय की फोटो देखकर नहीं आया है,... Read More

  5. Q. मंत्र ध्यान के क्या लाभ होते हैं?

    A. बोलिए पहाड़ी आवाज़ में यह भीतर मन में ‘नमो अरिहंताणं’ और सबकुछ बोले लेकिन भीतर मन में और कुछ चल रहा... Read More

  6. Q. ॐ क्या है? ओमकार का ध्यान क्या है?

    A. ॐ की यथार्थ समझ प्रश्नकर्ता: दादा, ॐ क्या है? दादाश्री: नवकार मंत्र बोलें, एकाग्र ध्यान से, वह ॐ... Read More

  7. Q. कुंडलिनी चक्र यानी क्या? और कुंडलीनी जागृत करते समय क्या होता है?

    A. कुंडलिनी क्या है? प्रश्नकर्ता: ‘कुंडलिनी’ जगाते हैं, तब प्रकाश दिखता है। वह क्या है? दादाश्री: उस... Read More

  8. Q. क्या योग (ब्रह्मरंध्र) आयुष्य को बढ़ा सकता है?

    A. योग से आयुष्य का एक्सटेन्शन? प्रश्नकर्ता: योग से मनुष्य हज़ारों-लाखों सालों तक जीवित रह सकता है... Read More

  9. Q. क्या योग साधना (राजयोग) आत्म साक्षात्कार पाने में मदद करती है?

    A. योगसाधना से परमात्मदर्शन प्रश्नकर्ता: योगसाधना से परमात्मदर्शन हो सकता है? दादाश्री: योगसाधना से... Read More

Spiritual Quotes

  1. ध्येय नक्की करो, उसके बाद ध्यान तो उसका परिणाम है।
  2. यह हिसाब चार ध्यान के आधार पर है। जैसा ध्यान बरते वैसा फल आता है।
  3. जितने आर्तध्यान-रौद्रध्यान कम उतनी संसार की अड़चनें कम।
  4. मन के रोग निकल जाएँ, तब प्रकाश होता है। मन के रोग लोगों को समझ में नहीं आते कि इस तरफ का मन रोगी है और इसके पासवाला मन तंदरुस्त है। अगर मन बने तो वाणी तंदरुस्त बनती है और देह तंदरुस्त बनती है।
  5. खुद के स्वरूप का ज्ञान, वह ध्यान कहलाता है। दूसरा, खिचड़ी का ध्यान रखें तो खिचड़ी बनती है।
  6. तो फिर बेचारे मन को क्यों बिना बात परेशान करते हो? एकाग्रता करने में हर्ज नहीं है, परन्तु आपको परमात्मा के दर्शन करने हों तो मन को परेशान करने की ज़रूरत नहीं है।
  7. मंत्र सनातन वस्तु नहीं हैं। एक आत्मा के अलावा इस जगत् में कोई भी वस्तु सनातन नहीं है। दूसरा सबकुछ टेम्परेरी एडजस्टमेन्ट है! 'ऑल दीज़ रिलेटिव्स आर टेम्परेरी एडजस्टमेन्ट्स!' सिर्फ आत्मा अकेला ही परमानेन्ट है। सनातन वस्तु में चित्त स्थिर हो गया, फिर वह भटकता नहीं है और तब उसकी मुक्ति होती है।
  8. मेन प्रोडक्शन यानी मोक्ष का साधन 'ज्ञानीपुरुष’ से प्राप्त कर लें, बाद में फिर संसार का बाय प्रोडक्शन तो अपने आप मुफ्त में आएगा ही। बाय प्रोडक्ट के लिए तो अनंत जन्म बिगाड़े, दुर्ध्यान करके! एक बार तू मोक्ष प्राप्त कर ले, तो तू़फान खत्म हो जाए!
  9. खुद के स्वरूप का ध्यान, वह ध्यान कहलाता है।  
  10. योग दो प्रकार के हैं : एक ज्ञानयोग यानी कि आत्मयोग और दूसरा अज्ञान योग यानी कि अनात्म योग। अनात्म योग में मनोयोग, देहयोग और वाणीयोग समाविष्ट होते हैं। योग किसका होता है? जिसे जान लिया हो उसका या जो अनजाना हो उसका? जब तक आत्मा जाना नहीं हो, तब तक आत्मयोग किस तरह से होगा? वह तो देह को जाना, इसलिए देहयोग ही कहलाता है
  11. और निर्विकल्प समाधि देहयोग से कभी भी प्राप्त नहीं हो सकती। विकल्पी कभी भी निर्विकल्पी नहीं बन सकता, वह तो जब आत्मज्ञानी सर्वज्ञपुरुष निर्विकल्प दशा में पहुँचा दें, तभी निर्विकल्प बनता है। प्रकट दीया ही अन्य दीयों को प्रज्वलित कर सकता है।
  12. लेकिन अपने यहाँ तो ध्यान, ध्याता और ध्येय पूरा हो गया और योग के आठों अंग पूरे करके लक्ष्य में पहुँच गए हैं। अभी आप से कहें कि, ‘चलो, उठो, भोजन करने चलो,’ तो तब भी आप ज्ञाता-दृष्टा और परमानंदी रहते हो और फिर कहें कि, ‘आपको यहाँ भोजन नहीं करना है,’ तब भी ज्ञाता-दृष्टा और परमानंदी रह पाएँ तो उसे शुक्लध्यान कहा है।

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