ध्यान व योग के लाभ और उद्देश्य

मन को केंद्रित करने की किसी भी प्रकार की क्रिया मनो–योग(ध्यान) कहलाती है। लेकिन यदि यह दिमाग में बिना कोई लक्ष्य रखे किया जाए तो इसका कोई लाभ नहीं है। जब आप रेलवे स्टेशन जाते हैं तो क्या टिकट के लिए आपको टिकट अधिकारी को अपना गंतव्य स्थान नहीं बताना पड़ता? आपको कौन से स्टेशन पर उतरना है, क्या वह नहीं बताना पड़ता? लोग अक्सर कहते रहते हैं “ध्यान करो, ध्यान करो।” लेकिन हमें बताओ तो सही कि ध्यान किस पर करें (ध्येय)! ऐसे रिलेटिव ध्यान का क्या उद्देश्य व लाभ होता है? रिलेटिव ध्यान से प्राप्त हुई शांति व आनंद उसी क्षण खत्म हो जाते हैं, जब आपकी सास आपसे कहें कि “तू बेअक्ल है या फिर अगर आपका कोई नुक़सान हो जाए। उसके बाद आघात व सदमे की शुरुआत हो जाती है।” ऐसे रिलेटिव ध्यान से आपका (काम) कार्य कभी पूरा नहीं होगा, यह आपको कभी भी शाश्वत सुख प्रदान नहीं कर सकेगा।

यह रिलेटिव ध्यान तो विनाशी (टेम्परेरी) है और सिर्फ आपकी एकाग्रता की शक्ति को बढ़ाने में ही मदद करता है! दूसरा होता है रियल ध्यान और उसे आप ज्ञानीपुरुष से ही प्राप्त कर सकते हैं, रियल ध्यान आपको अविनाशी शांति (आनंद) देगा। रियल ध्यान के बारे में और जानने के लिए पढ़िए…

ધ્યાન કોને કહેવાય?

જે જ્ઞાન છે એના આધારે ધ્યાન ઉત્પન્ન થઇ જ જાય છે. ધ્યાન માટે ધ્યેય નક્કી કરો. પૂજ્ય દીપકભાઈ ધ્યાન વિશેની વધુ સમજણ આ વીડિયોમાં સમજાવે છે.

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Top Questions & Answers

  1. Q. ध्यान कितने प्रकार के होते हैं?

    A. चार प्रकार के ध्यान होते हैं, उनमें से मनुष्य निरंतर किसी एक ध्यान में रहते ही हैं। आपको यहाँ पर... Read More

  2. Q. क्या ध्यान करते वक्त कर्म बंधता है?

    A. आचार्य महाराज प्रतिक्रमण करते हैं, सामायिक करते हैं, व्याख्यान देते हैं, प्रवचन देते हैं, पर वह तो... Read More

  3. Q. हमारे वर्तमान और पूर्वकर्म किस तरह ध्यान पर आधारित होते हैं?

    A. प्रश्नकर्ता: अभी जो भोगते हैं उसमें आपका कहना है कि आयोजन है। उनमें क्रियमाण भी होते हैं और संचित... Read More

  4. Q. तप करते समय भगवान पार्श्वनाथ के ध्यान की स्थिति क्या थी?

    A. इनको कैसे पहुँच पाएँगे? इन पर तो यदि बंदूकें चलाएँगे तो गोलियाँ व्यर्थ जाएँगी ऐसा है! ऊपर से बैर... Read More

  5. Q. ध्यान और धर्म में क्या अंतर है और सच्चा धर्म किसे कहते हैं?

    A. धर्म किसे कहते हैं? जो धर्म के रूप में परिणामित हो, वह धर्म। यानी कि अंदर परिणामित होकर कषाय भावों... Read More

  6. Q. कुण्डलिनी जागरण से क्या आत्म–साक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं?

    A. सभी कुछ रिलेटिव (लौकिक) है अर्थात् ऑर्नामेन्टल है। मन को स्थिर करता है, लेकिन अंदर प्रगति नहीं हो... Read More

  7. Q. अनाहत नाद से क्या प्राप्त होता है?

    A. प्रश्नकर्ता: अनाहत नाद अर्थात् क्या? दादाश्री: शरीर के किसी भी भाग का नाद पकड़ लेते हैं, वह हार्ट... Read More

  8. Q. सद्गुरु किस प्रकार का ध्यान करवाते है?

    A. यह तो, लोग 'गुरु' को समझे ही नहीं हैं। हिन्दुस्तान के लोग गुरु को समझे ही नहीं कि गुरु किसे कहा... Read More

  9. Q. समाधि अर्थात क्या? निर्विकल्प समाधि कैसे प्राप्त कर सकते हैं?

    A. प्रश्नकर्ता: दादा, मुझे चार-चार घंटों तक समाधि रहती है। दादाश्री: जब समाधि रहती है तब तो रहती है,... Read More

Spiritual Quotes

  1. यथार्थ ‘धर्मध्यान’ किसे कहा जाता है? पूजा, जप-तप, सामायिक, प्रतिक्रमण, व्याख्यान सुनते हैं उसे? ना, वे तो स्थूल क्रियाकांड हैं, लेकिन स्थूल क्रिया करते समय आपका ध्यान कहाँ बरतता है, वह नोट किया जाता है। भगवान के दर्शन करते समय, भगवान की फोटो के साथ दुकानों के या बाहर रखे हुए जूतों को भी याद करे, उसे धर्मध्यान किस तरह कहा जाए?
  2. भगवान के वहाँ क्रिया नहीं देखी जाती, ध्यान किसमें बरतता है वह देखा जाता है। अभी हो रही क्रिया तो पिछले जन्म में किए गए ध्यान का रूपक है, पिछले जन्म का पुरुषार्थ सूचित करता है, जबकि आज का ध्यान, वह अगले जन्म का पुरुषार्थ है, अगले जन्म का साधन है!
  3. झूठ बोलें और प्रतिक्रमण के भाव हों, उस समय जो ध्यान बरतता है, वह धर्मध्यान होता है।  
  4. बच्चों पर क्रोध किया, लेकिन अंदर आपका भाव क्या है कि ऐसा नहीं होना चाहिए | अंदर आपका भाव क्या है ?
  5. मोक्ष चाहिए तो शुक्लध्यान में रहना और संसार चाहिए तो धर्मध्यान रखना कि किस तरह सबका भला करूँ।
  6. भगवान के ध्यान की खबर ही नहीं, वहाँ क्या करोगे? उसके बजाय तो गुरु का ध्यान करना। उनका मुँह दिखेगा तो सही! इसमें सद्गुरु का ध्यान करना अच्छा है। क्योंकि भगवान तो दिखते नहीं है।
  7. वह जप करता हो या तप करता हो, त्याग करता हो, उसमें उसे खुद की भूल नहीं दिखती। भूल दिखे तो, खुद आत्मस्वरूप हो जाए
  8. इसमें क्या लाभ है ? बाहर का कूड़ा-कर्कट अंदर नहीं आता है और राहत रहती है, मनोबल मजबूत होता है | बाकी अंत में आत्मयोग में आये बगैर मोक्ष होना संभव नहीं है |
  9. हम यहाँ शुद्धात्मा में रहते हैं वह आत्म्योग है | स्वरुप का ज्ञान वह आत्म्योग यानी खुद का स्थान है, बाकी के सब देह्योग हैं | उपवास, तप, त्याग करना वे सभी देह्योग हैं | 

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