• question-circle
  • quote-line-wt

श्रीमद् भगवद् गीता की यथार्थ समझ

हजारों वर्ष पहले लिखी गयी भगवद् गीता का विश्लेषण व अभ्यास प्रत्येक विद्वान द्वारा अलग-अलग प्रकार से किया गया है और इस काल में जब उम्र में मात्र पच्चीस वर्ष के अंतर होने के उपरांत भी पुत्र अपने पिता के अंतर आशय को समझने में समर्थ नहीं है, तो फिर हजारों वर्ष बाद अंतर आशय किस तरह समझा जाएगा? पर, जिस तरह हम अपने हर रोज के जीवन में संवादहीनता के कारण कई बार गलतफहमियों के शिकार बन जाते हैं और जिसके कारण हम सही अर्थ से वंचित रह जाते हैं, ठीक उसी प्रकार स्वाभाविक रूप से समय के साथ भगवद् गीता का मूल (गूढ़) अर्थ भी लुप्त हो गया है

यदि कोई भगवद् गीता का सारांश यथार्थ रूप से समझने में सक्षम हो तो वह परम सत्य का अनुभव कर राग (बंधन) की भ्रान्ति व संसार के दुखों में से मुक्त हो सकता है अर्जुन ने भी महाभारत का युद्ध लड़ते हुए सांसारिक दुखों से मुक्ति प्राप्त की थी भगवान श्री कृष्ण के द्वारा दिए गए दिव्यचक्षु के कारण ही यह संभव हो सका और इसी दिव्यचक्षु के कारण अर्जुन कोई भी कर्म बाँधे बिना युद्ध लड़ने में सक्षम बने और उसी जीवन में मोक्ष प्राप्त किया

भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया ज्ञान और कुछ नहीं बल्कि ‘मटीरिअल और पैकिंग’ (माल और डब्बे) का ही है नीचे लिखा हुआ लेख, जिसमें श्री कृष्ण भगवान साक्षात प्रकट हुए हैं ऐसे ज्ञानी पुरुष के प्रभाव पूर्ण शब्दों को दर्शाता है, जिसके द्वारा हम अपनी खोई हुई समझ को फिर से प्राप्त कर सकते हैं और उसके उपयोग द्वारा कर्मों से मुक्त हो सकते हैं

आप इस वेब पेज द्वारा केवल ज्ञान के विषय से ही नहीं बल्कि भगवान श्री कृष्ण से सम्बंधित तथ्य और कथाएँ भी जान पाएंगे सोलह हजार रानियाँ होने के बावजूद भी, वे नैष्ठिक ब्रह्मचारी कहलाये? वास्तव में सुदर्शन चक्र क्या है? परधर्म और स्वधर्म किसे कहते हैं? गोवर्धन पर्वत को उठाने के पीछे का रहस्य क्या था? ऐसे सभी गूढ़ रहस्यों और दूसरा बहुत कुछ यहाँ उजागर होगा

ગીતાનો મર્મ જ્ઞાનીની દ્રષ્ટિએ

ગીતામાં 'આત્મા તત્ત્વ' માટે 'હું' શબ્દ વપરાયો છે. એ સિવાય બધો અનાત્મા વિભાગ. આત્મા પ્રાપ્ત થયો છે તેવા જ્ઞાની તમને ભેદ પાડી આપે ત્યારે આત્મા અને અનાત્માની ઓળખાણ થાય.

play
previous
next

Top Questions & Answers

  1. Q. श्रीमद् भगवद् गीता का रहस्य क्या है? भगवद् गीता का सार क्या है?

    A. गीता का रहस्य,यहाँ दो ही शब्दों में प्रश्नकर्ता: कृष्ण भगवान ने अर्जुन को किसलिए महाभारत का युद्ध... Read More

  2. Q. विराट कृष्ण दर्शन या विश्वदर्शन के समय अर्जुन ने क्या अनुभव किया था? और ये विराट स्वरुप क्या है?

    A. अर्जुन को विराट दर्शन प्रश्नकर्ता: कृष्ण भगवान ने अर्जुन को विश्वदर्शन करवाया था, वह क्या... Read More

  3. Q. भगवद् गीता में श्री कृष्ण भगवान ने ‘निष्काम कर्म’ का अर्थ क्या समझाया है?

    A. यथार्थ निष्काम कर्म प्रश्नकर्ता: निष्काम कर्म में किस तरह कर्म बँधते हैं? दादाश्री: ‘मैं... Read More

  4. Q. ब्रह्म संबंध और अग्यारस का वास्तविक अर्थ क्या है? सच्ची भक्ति की परिभाषा क्या है?

    A. ब्रह्मनिष्ठ तो ज्ञानी ही बनाते हैं ‘खुद’ परमात्मा है, लेकिन जब तक वह पद प्राप्त नहीं हो जाता, तब... Read More

  5. Q. भगवद् गीता के अनुसार स्थितप्रज्ञा यानि क्या?

    A. स्थितप्रज्ञ या स्थितअज्ञ? एक महापंडित हमारी परीक्षा लेने के लिए पूछने आए थे, ‘स्थितप्रज्ञ दशा क्या... Read More

  6. Q. श्री कृष्ण भगवान के अनुसार प्रकृति के तीन गुण कौन से हैं? भगवान श्री कृष्ण के साथ एकाकार (अभेद) होने के लिए क्यों और किस प्रकार चार वेदों से ऊपर उठा जा सके?

    A. पुरुष और प्रकृति सारा संसार प्रकृति को समझने में फँसा है। पुरुष और प्रकृति को तो अनादि से खोजते आए... Read More

  7. Q. भगवद् गीता के अनुसार, जगत कौन चलाता है?

    A. प्रकृति पर ईश्वर की भी सत्ता नहीं ! प्रश्नकर्ता: गीता का पहला वाक्य कहता है कि, ‘प्रकृति प्रसवे... Read More

  8. Q. स्वधर्म और परधर्म किसे कहते हैं?

    A. किस धर्म की शरण में जाएँ? प्रश्नकर्ता: सभी धर्म कहते हैं कि, ‘मेरी शरण में आओ’, तो जीव किसकी शरण... Read More

  9. Q. भगवद् गीता का सार क्या है?

    A. अंतिम विज्ञान, प्रश्नोत्तरी के रूप में सारी गीता प्रश्नोत्तरी के रूप में है। अर्जुन प्रश्न करता है... Read More

Spiritual Quotes

  1. हमने आपको ‘स्वरूप ज्ञान’ दिया उसके बाद आपको जो दशा उत्पन्न हुई है, वह कृष्ण भगवान की बताई हुई ‘स्थितप्रज्ञ’ दशा से कहीं ऊँची दशा है। यह तो प्रज्ञा कहलाती है! उससे राग-द्वेष का निंदन कर देना।
  2. कृष्ण भगवान ने कहा है कि, ‘स्वरूप के धर्म का पालन करना, वह स्वधर्म है। और ये एकादशी करते हैं या अन्य कुछ करते हैं, वह तो पराया धर्म है, उसमें स्वरूप नहीं है।’
  3. ‘खुद का आत्मा ही कृष्ण है’ ऐसा समझ में आए, उसकी पहचान हो जाए, तभी स्वधर्म का पालन किया जा सकता है।
  4. कृष्ण तो कितना कुछ कह गए हैं कि, ‘प्राप्त को भोग, अप्राप्त की चिंता मत करना।’ अभी यह भोजन की थाली सामने आई है, वह प्राप्त संयोग है  
  5. कृष्ण तो नर में से नारायण बने थे, ज्ञानी थे। 
  6. ‘ज्ञानीपुरुष’ आपके अनंतकाल के पापों का पोटला बनाकर भस्मीभूत कर देते हैं,’ ऐसा कृष्ण भगवान ने कहा है। सिर्फ पाप जला देते हैं इतना ही नहीं, लेकिन साथ ही साथ उन्हें दिव्यचक्षु देते हैं और स्वरूप का लक्ष्य करवा देते हैं! इस अक्रम मार्ग के ‘ज्ञानीपुरुष’ ‘न भूतो न भविष्यति’ ऐसे प्रत्यक्ष हैं, वे हैं तब तक काम निकाल लो!
  7. जब अज्ञान खत्म होता है तभी से मुक्ति का अनुभव होता है। अज्ञान से बंधन है। किस चीज़ का अज्ञान? खुद को खुद अपने बारे में अज्ञान है। कृष्ण भगवान ने इसे गुह्यतम ‘विज्ञान’ कहा है। जब कोई गुह्य को ही नहीं समझ सकता तो गुह्यतर व गुह्यतम कैसे समझ सकेगा?
  8. भगवान कहते हैं, द्वेष उपकारी है। प्रेम-राग कभी नहीं छूटता। सारा जगत् प्रेम परिषह में फँसा हुआ है। इसलिए दूर से ही ‘जय श्री कृष्ण’ कहकर छूट जाना।

Related Books

×
Share on