अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें“यदि खुद के स्वरूप को पहचान लिया तो फिर वह, खुद ही परमात्मा है |”
~ परम पूज्य दादा भगवान
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
अधिक पढ़ेंअहमदाबाद से २० की.मी. की दूरी पर सीमंधर सिटी, एक आध्यात्मिक प्रगति की जगह है| जो "एक स्वच्छ, हरा और पवित्र शहर" जाना जाता है|
अधिक पढ़ेंअक्रम विज्ञानी, परम पूज्य दादा भगवान, द्वारा प्रेरित एक अनोखा निष्पक्षपाति त्रिमंदिर।
पुरुष और प्रकृति
सारा संसार प्रकृति को समझने में फँसा है। पुरुष और प्रकृति को तो अनादि से खोजते आए हैं। लेकिन वे योें हाथ में आ जाएँ, ऐसे नहीं हैं। क्रमिक मार्ग में पूरी प्रकृति को पहचान ले उसके बाद में पुरुष की पहचान होती है। उसका तो अनंत जन्मों के बाद भी हल निकले ऐसा नहीं है। जबकि अक्रम मार्ग में ज्ञानी पुरुष सिर पर हाथ रख दें, तो खुद पुरुष होकर सारी प्रकृति को समझ जाता है। फिर दोनों सदा के लिए अलग-अलग ही रहते हैं। प्रकृति की भूलभूलैया में अच्छे-अच्छे फँसे हुए हैं, और वे करते भी क्या? प्रकृति द्वारा प्रकृति को पहचानने जाते हैं न, उसका कैसे पार पाएँ?
पुरुष होकर प्रकृति को पहचानना है, तभी प्रकृति का हर एक परमाणु पहचाना जा सकता है।
प्रकृति अर्थात् क्या? प्र = विशेष और कृति = किया गया। स्वाभाविक की गई चीज़ नहीं। लेकिन विभाव में जाकर, विशेष रूप से की गई चीज़, वही प्रकृति है।
प्रकृति तो स्त्री है, स्त्री का रूप है और ‘खुद’(सेल्फ) पुरुष है। कृष्ण भगवान ने अर्जुन से कहा कि त्रिगुणात्मक से परे हो जा, अर्थात् त्रिगुण, प्रकृति के तीन गुणों से मुक्त, ‘तू’ ऐसा पुरुष बन जा। क्योंकि यदि प्रकृति के गुणों में रहेगा, तो ‘तू’ अबला है और पुरुष के गुणों में रहा, तो ‘तू’ पुरुष है।
‘प्रकृति लट्टू जैसी है।’ लट्टू यानी क्या? डोरी लिपटती है, वह सर्जन, डोरी खुले, तब घूमता है, वह प्रकृति।
डोरी लिपटती है, तब कलात्मक ढंग से लिपटती है, इसलिए खुलते समय भी कलात्मक ढंग से ही खुलेगी। बालक हो, तब भी खाते समय निवाला क्या मुँह में डालने के बजाय कान में डालता है? साँपिन मर गई हो, तब भी उसके अंडे टूटने पर उनमें से निकलने वाले बच्चे निकलते ही फन फैलाने लगते हैं, तुरंत ही। इसके पीछे क्या है? यह तो प्रकृति का अजूबा है।
प्रकृति का कलात्मक कार्य, एक अजूबा है। प्रकृति इधर-उधर कब तक होती है? उसकी शुरूआत से ज़्यादा से ज़्यादा इधर-उधर होने की लिमिट है। लट्टू का घूमना भी उसकी लिमिट में ही होता है। जैसे कि, विचार उतनी ही लिमिट में आते हैं। मोह होता है, वह भी उतनी लिमिट में ही होता है। इसलिए प्रत्येक जीव की नाभि, सेन्टर है और वहाँ आत्मा आवृत्त नहीं है। वहाँ शुद्ध ज्ञानप्रकाश रहा हुआ है। यदि प्रकृति लिमिट से बाहर जाए, तो वह प्रकाश आवृत्त हो जाता है और पत्थर हो जाता है, जड़ हो जाता है। लेकिन ऐसा होता ही नहीं है। लिमिट में ही रहता है। यह मोह होता है, इसलिए उसका आवरण छा जाता है। चाहे जितना मोह टॉप पर पहुँचा हो, लेकिन उसकी लिमिट आते ही फिर नीचे उतर जाता है। यह सब नियम से ही होता है। नियम से बाहर नहीं होता।
Reference: Book Name: आप्तवाणी 1 (Page #63 - Paragraph #3 & #4, Entire Page #64, Page #65 - Paragraph #1)
वेद,तीन गुणों में ही हैं
कृष्ण भगवान ने गीता में कहा है कि, ‘वेद तीन गुणों से बाहर नहीं हैं, वेद तीन गुणों को ही प्रकाशित करते हैं।’ कृष्ण भगवान ने ‘नेमीनाथ’ से मिलने के बाद गीता कही थी, उससे पहले वे वेदांती थे। उन्होंने गीता में कहा, ‘त्रैगुण्य विषयो वेदो निस्त्रैय गुण्यो भवार्जुन,’ यह गज़ब का वाक्य कृष्ण ने कह दिया है! ‘आत्मा जानने के लिए वेदांत से परे जाना,’ कह दिया है! उन्होंने ऐसा कहा कि, ‘हे अर्जुन! आत्मा जानने के लिए तू त्रिगुणात्मक से परे हो।’ त्रिगुणात्मक कौन-कौन से? सत्व, रज और तम। वेद इन्हीं तीन गुणवाले हैं, इसलिए तू उनसे परे हो जाएगा तभी तेरा काम होगा। और फिर ये तीन गुण द्वंद्व हैं, इसलिए तू त्रिगुणात्मक से परे हो जा और आत्मा को समझ! आत्मा जानने के लिए कृष्ण ने वेदांत से बाहर जाने को कहा है, लेकिन लोग समझते नहीं है। चारों ही वेद पूरे होने के बाद वेद इटसेल्फ क्या कहते हैं? दिस इज़ नोट देट, दिस इज़ नोट देट, तू जिस आत्मा को ढूँढ रहा है वह इसमें नहीं है। ‘न इति, न इति,’ इसलिए तुझे यदि आत्मा जानना हो तो गो टु ज्ञानी।
कृष्ण भगवान ने कहा है कि, ‘यह जगत् भगवान ने नहीं बनाया है, लेकिन स्वभाविक रूप से बन गया है!’
Reference: Book Name: आप्तवाणी 2 (Page #383 - Paragraph #6, Page #384 - Paragraph #1 & #2)
1) कृष्ण भगवान ने जो समझाया है, उस बात को ही यदि समझ जाएगा तो भी सच्चा भक्त बन जाएगा।
2) कृष्ण भगवान ने तो पूरा साइन्स बता दिया है और उन्होंने कहा है कि चारों वेद त्रिगुणात्मक हैं।
3) ये चार वेद तो लोगों के लिए हैं। लेकिन जिन्हें मोक्ष में जाना है, उन्हें इन चार वेदों से आगे आना है, गीता में आना है।
Q. श्रीमद् भगवद् गीता का रहस्य क्या है? भगवद् गीता का सार क्या है?
A. गीता का रहस्य,यहाँ दो ही शब्दों में प्रश्नकर्ता: कृष्ण भगवान ने अर्जुन को किसलिए महाभारत का युद्ध लड़ने को कहा था? दादाश्री: भगवान को उस समय ऐसा बोलने का...Read More
Q. विराट कृष्ण दर्शन या विश्वदर्शन के समय अर्जुन ने क्या अनुभव किया था? और ये विराट स्वरुप क्या है?
A. अर्जुन को विराट दर्शन प्रश्नकर्ता: कृष्ण भगवान ने अर्जुन को विश्वदर्शन करवाया था, वह क्या है? दादाश्री: वह विश्वदर्शन, वह आत्मज्ञान नहीं है। ये कितने...Read More
Q. भगवद् गीता में श्री कृष्ण भगवान ने ‘निष्काम कर्म’ का अर्थ क्या समझाया है?
A. यथार्थ निष्काम कर्म प्रश्नकर्ता: निष्काम कर्म में किस तरह कर्म बँधते हैं? दादाश्री: ‘मैं *चंदूभाई हूँ’ करके निष्काम कर्म करने जाओ तो ‘बंधन’ ही है।...Read More
Q. ब्रह्म संबंध और अग्यारस का वास्तविक अर्थ क्या है? सच्ची भक्ति की परिभाषा क्या है?
A. ब्रह्मनिष्ठ तो ज्ञानी ही बनाते हैं ‘खुद’ परमात्मा है, लेकिन जब तक वह पद प्राप्त नहीं हो जाता, तब तक ‘हम वैष्णव हैं और हम जैन हैं,’ ऐसा करते हैं। और फिर...Read More
Q. भगवद् गीता के अनुसार स्थितप्रज्ञा यानि क्या?
A. स्थितप्रज्ञ या स्थितअज्ञ? एक महापंडित हमारी परीक्षा लेने के लिए पूछने आए थे, ‘स्थितप्रज्ञ दशा क्या होती है?’ उन्होंने पूछा। मैंने उन्हें समझाया, ‘तू खुद...Read More
A. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय... प्रश्नकर्ता: फिर ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ समझाइए। दादाश्री: वासुदेव भगवान! अर्थात् जो वासुदेव भगवान नर में से नारायण बने, उन्हें...Read More
Q. गोवर्धन पर्वत को छोटी ऊँगली पर उठाना – सत्य है या लोक कथा?
A. कृष्ण का गोवधर्न - गायों का वर्धन कृष्ण भगवान के काल में हिंसा बहुत बढ़ गई थी। तब कृष्ण भगवान ने फिर क्या किया? गोवर्धन पर्वत उठाया, एक उँगली से। अब...Read More
Q. ठाकोरजी की पूजा-भक्ति किस तरह करनी चाहिए?
A. ठाकुर जी की पूजा दादाश्री: पूजा करते समय तो कंटाला नहीं आता न? प्रश्नकर्ता: नहीं। दादाश्री: पूजा करते हो तो पूज्य पुरुष की करते हो या अपूज्य...Read More
Q. पुष्टिमार्ग का उद्देश्य क्या है? श्री कृष्ण भगवान को नैष्ठिक ब्रह्मचारी क्यों कहा गया है?
A. पुष्टिमार्ग क्या है? वल्लभाचार्य ने पुष्टिमार्ग निकाला। पाँच सौ सालों पहले जब मुसलमानों का बहुत कहर था, अपने यहाँ की स्त्रियाँ मंदिर में या बाहर कहीं भी...Read More
Q. कृष्ण भगवान का सच्चा भक्त कौन है? वास्तविक कृष्ण या योगेश्वर कृष्ण कौन हैं?
A. कृष्ण का साक्षात्कार प्रश्नकर्ता: मीरा को, नरसिंह को, कृष्ण का साक्षात्कार किस तरह हुआ था? दादाश्री: जो मीरा को और नरसिंह को दिखाई दिए वे कृष्ण नहीं थे,...Read More
Q. भगवद् गीता के अनुसार, जगत कौन चलाता है?
A. प्रकृति पर ईश्वर की भी सत्ता नहीं ! प्रश्नकर्ता: गीता का पहला वाक्य कहता है कि, ‘प्रकृति प्रसवे सृष्टि’।अर्थात भगवान ने गीता में यह कहा है कि मुझ से ही इस...Read More
Q. स्वधर्म और परधर्म किसे कहते हैं?
A. किस धर्म की शरण में जाएँ? प्रश्नकर्ता: सभी धर्म कहते हैं कि, ‘मेरी शरण में आओ’, तो जीव किसकी शरण में जाए? दादाश्री: सभी धर्मों का तत्व क्या है? तब कहते...Read More
A. अंतिम विज्ञान, प्रश्नोत्तरी के रूप में सारी गीता प्रश्नोत्तरी के रूप में है। अर्जुन प्रश्न करता है और कृष्ण भगवान उत्तर देते हैं। कृष्ण भगवान ने गीता में...Read More
Q. भगवान श्री कृष्ण की सत्य और लोक कथाएँ
A. भगवान रासलीला खेले ही नहीं। आपको किसने कहा कि भगवान रासलीला खेले थे? वे तो सारी बाते हैं। कृष्ण तो महान योगेश्वर थे। लोगों ने रासलीला में लाकर उनका...Read More
subscribe your email for our latest news and events