ब्रह्माण्ड के सबसे सूक्ष्म और गहन तत्त्व आत्मा, जो कि स्वयं का वास्तविक स्वरूप है, उसको समझने में असमर्थ होने के कारण; व्यक्ति अनेक प्रश्नो से घिरा हुआ है जैसे की: “आत्मा का अर्थ क्या है”?, “आत्मा यानि क्या”, "आत्मा कैसा होगा “, क्या वह प्रकाश स्वरूप में है? और अगर प्रकाश स्वरूप है तो इसका प्रकाश कैसा होगा?
उत्तर है, लेकिन आपको आत्मा की सच्ची दृष्टि प्राप्त करके उन्हें अनुभव करने की आवश्यकता है। यह दृष्टि जो सभी कल्पनाओं से परे है, जो केवल ज्ञानी पुरुष से ही प्राप्त की जा सकती है, जिन्हे यह दृष्टि पहले से ही प्राप्त हो चुकी है।
जब तक वह दृष्टि प्राप्त नहीं हो जाती, तब तक हम आत्मा की व्याख्या उसके गुणधर्म और उसके कार्यों को जानकर ही कर सकते हैं। तो, आइए इसे जानें!
यदि हम अनाज (जीवित वस्तु) को कपड़े में बांध कर रखें, तो वे कुदरती रूप से अंकुरित हो जायेंगे न? यदि, आप कंकर या पत्थर (निर्जीव वस्तु) को बाँधे, तो क्या वह कुदरती रूप से अंकुरित होगे? नहीं न ! क्यों? वो इसलिए क्योंकि कंकड़ या पत्थर में कोई आत्मा नहीं है। आत्मा प्रत्येक जीव (दृश्य व अदृश्य) में बिराजमान है, वह निर्जीव वस्तुओं मे उपस्थित नही है। इसलिए, आत्मा चेतन है।
आत्मा के बिना देह (मृत्यु के बाद) यानि कि देह में जीव नहीं है, और इसलिए उसे सुख या दुःख का अनुभव नहीं होता। जहाँ भी संवेदनाएं व भावनाएं हैं, वहां सुख और दुःख का ज्ञान है। जहाँ कोई भावना या वृद्धि है, इसका तात्पर्य यही है कि यह देह में आत्मा या चेतन है।
जैसा कि परम पूज्य दादा भगवान बताते हैं :
दादाश्री : आपको समझ में आया न? कि जहाँ थोड़ी-सी भी लागणी होती है, वहाँ पर आत्मा है, चेतन है ऐसा तय हो गया। यानी जहाँ पर लागणी है, वहाँ हमें जानना है कि यहाँ पर चेतन है और जिसमें लागणी नहीं है वहाँ पर चेतन नहीं है, वहाँ अनात्मा है। ये पेड़-पौधे भी लागणी वाले हैं।
प्रश्नकर्ता : पेड़ तो एकेन्द्रिय हैं?
दादाश्री : एकेन्द्रिय यानी उन्हें स्पर्श की इन्द्रियों की लागणी है, वे स्पर्शेन्द्रिय की लागणी व्यक्त करते हैं। ये जीवमात्र लागणी वाले हैं। जिसे लागणी उत्पन्न होती है, वहाँ पर आत्मा है ऐसा निश्चित हो गया। जिसे लागणी उत्पन्न होती है वही आत्मा है, ऐसा नहीं है, परन्तु जहाँ पर लागणी उत्पन्न होती है, वहाँ पर आत्मा है। और जहाँ लागणी उत्पन्न नहीं होती वहाँ पर आत्मा नहीं है।
आत्मा की हाजरी के कारण हमारे देह में लागणी उत्पन्न होती हैं
दादाश्री : अब आत्मा क्या है? वहाँ पर उसे लागणी या कुछ नहीं है। आत्मा तो सिर्फ प्रकाश स्वरूप है! परन्तु जहाँ पर लागणियाँ हैं, उस पर से हम पता लगा सकते हैं कि यहाँ पर आत्मा है।
प्रश्नकर्ता : यानी जिसके आधार पर लागणी उत्पन्न होती है वह चेतन है या जहाँ लागणी उत्पन्न होती है, उस जगह पर चेतन है?
दादाश्री : ‘जिसके आधार पर लागणी उत्पन्न होती है वह चेतन है’, ऐसे उसका आधार कहेंगे तो वापस नई गड़बड़ पैदा होगी यानी चेतन की उपस्थिति से यह लागणी उत्पन्न होती है। अर्थात् जहाँ पर लागणी उत्पन्न होती है, वहाँ पर चेतन है।
प्रश्नकर्ता : वह लागणी उत्पन्न हुई और जो अभिव्यक्त हुआ, वह चेतन अभिव्यक्त नहीं हुआ है न?
दादाश्री : वह अभिव्यक्त भी सारा पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) ही होता है, लेकिन जहाँ पर लागणी उत्पन्न होती है, वहाँ पर चेतन है इसलिए यह लागणी उत्पन्न होती है, पीड़ा उत्पन्न होती है।
आत्मा के अर्थ के बारे में अधिक जानने के लिए आइए हम और गुणधर्म के बारे में जानते है।
आत्मा एक अविनाशी तत्व है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में हम जो विभिन्न प्रकार के जीव देखते हैं, वे आत्मा की विभिन्न अवस्थाओं के अलावा और कुछ नहीं हैं। नीचे दी गई बातचीत हमें इसे समझने में मदद करेगी:
दादाश्री : आत्मा वस्तु होगा या अवस्तु?
प्रश्नकर्ता : अवस्तु।
दादाश्री : यह जो दिखता है, वह वस्तु है या अवस्तु?
प्रश्नकर्ता : आत्मा को तो देखा नहीं जा सकता न, इसलिए अवस्तु है, वस्तु को तो देखा जा सकता है न?
दादाश्री : नहीं। वस्तु और अवस्तु, वह आपको समझाता हूँ। हर एक वस्तु जो अविनाशी होती है, उसे वस्तु कहते हैं और विनाशी होती है, उसे अवस्तु कहते हैं।
आत्मा आत्मारूप ही है। आत्मा वस्तु के रूप में अनंत गुणों का धाम है! और हर एक वस्तु खुद द्रव्य के रूप में गुण सहित और अवस्था सहित होती है। द्रव्य-गुण-पर्याय जिसमें होते हैं, उसे ‘वस्तु’ कहते हैं। वस्तु, वह अविनाशी कहलाती है।
आत्मा भी खुद वस्तु है, उसका खुद का द्रव्य है, खुद के गुण हैं और खुद के पर्याय हैं। और वे पर्याय उत्पात, व्यय और ध्रुव सहित हैं। और इन आँखों से जो दिखता है, वह सब अवस्तु है, विनाशी है, और आत्मा अविनाशी है, वस्तु है।
ऐसी छह अविनाशी वस्तुएँ हैं, जगत् इन छह तत्वों से बना हुआ है। ये छह तत्व एक दूसरे के साथ ऐसे परिवर्तनशील होते रहते हैं और उसके कारण अवस्थाएँ उत्पन्न होती हैं। उन अवस्थाओं से यह जगत् दिखता है। जगत् में सिर्फ अवस्थाएँ ही दिखती हैं।
यह तत्व वास्तव में किस चीज का बना है?
आत्मा ज्ञान और सुख बना है। यह अन्य गुणधर्म है जो आत्मा के अर्थ को समजाते है। जो कुछ भी हो रहा है उसे आत्मा जानता है। यह सुख और दुःख के अनुभव को समझ सकता है। कैसे पता चलता है कि एक पैर में दर्द हो रहा है और दूसरे में नहीं ? ऐसा कोई तर्क भी दे सकता है कि यह तो ज्ञानतंतु या मस्तिष्क है, जो जान रहा है। तो, मस्तिष्क को कौन पढ़ता है?
मस्तिष्क केवल एक अंग ही है जो मृत देह मे भी उपस्थित है, लेकिन मृत देह कुछ भी जानने में असमर्थ है। इसलिए वस्तुओं को जानने और समझने के लिए कुछ और आवश्यक है। जब एक व्यक्ति देह में उपस्थित है, तब:
वह क्या वस्तु है ? आत्मा को अधिक विस्तार से जानने के लिए इस दुसरे गुणधर्म के बारे में जानते है। चलिए, इसे परम पूज्य दादाश्री के पास से समझे...
दादाश्री : रात को अँधेरे में श्रीखंड हाथ में दें, तो फिर श्रीखंड कहाँ रखते हो? मुँह में रखते समय आँख में नहीं घुस जाता? या मुँह में ही जाता है? क्या कहते हो? क्यों बोले नहीं? घोर अँधेरे में श्रीखंड आपको दे तो आप मुँह में ही डालते हो न? फिर आपसे यदि कोई पूछे कि आपने क्या खाया, तो आप क्या कहते हो?
प्रश्नकर्ता : श्रीखंड।
दादाश्री : फिर आपसे पूछे कि इस श्रीखंड के अंदर क्या-क्या है? तब आप क्या कहोगे?
प्रश्नकर्ता : दही, चीनी।
दादाश्री : हाँ। और दही ज़रा बिगड़ गया है, ऐसा-वैसा हो तो पता चलता है या नहीं चलता?
प्रश्नकर्ता : अवश्य।
दादाश्री : और अच्छा हो तब भी पता चलता है न?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : और चीनी कम हो तो पता चलता है?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : चीनी अधिक हो तो पता चलता है?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : और चीनी बहुत अधिक हो तो?
प्रश्नकर्ता : वह भी पता चलता है।
दादाश्री : रात को अँधेरे में किस तरह पता चलता है? अँधेरे में पता चल जाता है? और फिर अंदर किशमिश, चिरौंजी आए तो पता चलता है? इलायची का छोटा दाना हो तो भी पता चलता है?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : तो इन सबको जो जानता है न, वही जीव है।
प्रश्नकर्ता : ये लोग कहते हैं कि ज्ञानतंतुओं के कारण पता चलता है, ज्ञानतंतु नहीं होंगे तो पता ही नहीं चलेगा।
दादाश्री : हाँ, ज्ञानतंतु नहीं होंगे तो फिर पता नहीं चलेगा। परन्तु जिसे पता चलता है, वह जीव है।
आत्मा का स्वभाव अनंत ज्ञान है, लेकिन वह कर्म के आवरण से ढका हुआ है।
यह पक्षी चाहे कितनी भी दूर क्यों न उड़ जाएँ, पर अपने घर वापिस आ जाते है। यह कैसे होता है? यह इसलिए है क्योंकि की आत्मा के कुछ प्रदेश ऐसे है की जहा अज्ञानता के आवरण जरा भी नहीं है। मनुष्यों में भी, पति अपनी पत्नी को पहचान सकते है और पत्नी अपने पति को पहचान सकती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आत्मा के कुछ प्रदेश कभी भी कर्मो के आवरण नहीं थे। जैसे-जैसे अज्ञानता के कुछ आवरण टूटते है, उतना (सांसारिक) ज्ञान प्रकट होता है!
आत्मा का अर्थ है स्वयं(खुद) का स्वरूप। आप कह सकते हैं, " मै चंदूभाई हूँ " (आप अपना नाम यहाँ डाल सकते है)। हालांकि, चंदूभाई देह का नाम है। क्या आप नहीं जानना चाहते कि इस देह में "मै कौन हूँ"। वह वही स्वयं का स्वरूप (आत्मा) है जिसे आपको पहचानना है।
जैसे की आत्मा ही आपका वास्तविक स्वरूप है , इसको जानने और समझने की आपकी उत्सुकता स्वाभाविक और उचित है। हम सौभाग्यशाली है, है कि आज हमारे बीच में प्रत्यक्ष ज्ञानी पूज्य दीपकभाई हैं, जिनसे हम प्रत्यक्ष में आत्मा के संबंधित सभी प्रश्न पूछ सकते हैं। आपको सरल और स्पष्ट भाषा में सटीक उत्तर मिलेगा जो समझने में आसान होगा!!! विवरण के लिए, आप देख सकते हैं: शेड्यूल.
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