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गुरु शिष्य : गुरु शिष्य संबंध

सांसारिक जीवन में पिता-पुत्र, माता-पुत्र या पुत्री, पति-पत्नी वगैरह के संबंध हैं। इसके अलावा संसार में गुरु-शिष्य का संबंध भी है। यह एक ऐसा संबंध है जिसमें गुरु को समर्पित होने के बाद में शिष्य पूरा जीवन उनके प्रति सिन्सियर रहता है और गुरु के प्रति परम विनय में रहकर, वह गुरु की सभी आज्ञाओं का पालन करके अंत में आध्यात्मिक सिद्धि प्राप्त करता है। इस पुस्तक में गुरु-शिष्य का आदर्श संबंध कैसा होना चाहिए, उसका सुंदर विवरण है।

आज गुरु के बारे में अनेक अलग-अलग मान्यताएँ हैं इसलिए लोग बहुत भ्रमित हो जाते हैं कि सच्चे गुरु को कैसे खोजें। इस विषय पर ज्ञानीपुरुष दादाश्री को अनेक प्रकार के प्रश्न पूछे गए और सभी प्रश्नों के उन्होंने प्रश्नकर्ताओं को सटीक और संतोषदायक उत्तर दिए हैं।

साधारणतया लोग गुरु, सतगुरु, और ज्ञानी को एक ही कक्षा में रखते हैं। जब कि इस पुस्तक में दादाश्री ने इन तीनों के बीच की भेदरेखा बताते हैं।

इस लक्ष्य और दृष्टि के साथ कि गुरु और शिष्य दोनों मोक्ष के मार्ग पर आगे बढ़ें। दादाश्री ने जो कि ज्ञान की उच्चतम स्थिति में है, हमें गुरु-शिष्य के संबंध के बारे में सही दृष्टि और समझ दी है।

गुरु - शिष्य

सच्चा गुरु कौन है? गुरु बनाने का उद्देश्य यह है की, उनसे ज्ञान प्राप्त करना हैं, ना कि सिर्फ शिष्य बने रहना| ज्ञानी पुरुष हमे वास्तविक ज्ञान देते है, ज्ञान जो हमें खुद की पहचान करवाता है|

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Top Questions & Answers

  1. Q. गुरु की आवश्यकता क्यों है ?

    A. प्रश्नकर्ता : गुरु रास्ता बता दें, उस रास्ते पर चलें। फिर गुरु की ज़रूरत है या गुरु को छोड़ देना... Read More

  2. Q. गुरु के गुण क्या हैं? गुरु की परिभाषा क्या है ?

    A. प्रश्नकर्ता : सच्चे गुरु के लक्षण क्या हैं? दादाश्री : जो गुरु प्रेम रखें, जो गुरु अपने हित में... Read More

  3. Q. प्रत्यक्ष गुरु का क्या महत्व है ?

    A. प्रश्नकर्ता : जो महानपुरुष हो गए है हज़ारों साल पहले , उन्हें हम समर्पण करें, तो वह समर्पण किया... Read More

  4. Q. सदगुरु किसे कहते हैं ?

    A. प्रश्नकर्ता : अब सदगुरु किसे कहें? दादाश्री : ऐसा है न, सदगुरु  किसे कहें, वह बहुत बड़ी मुश्किल... Read More

  5. Q. गुरु और ज्ञानीपुरुष में क्या फ़र्क़ है ?

    A. प्रश्नकर्ता : गुरु और  ज्ञानीपुरुष, उन दोनों में फर्क समझाइए। दादाश्री : ज्ञानीपुरुष और गुरु में... Read More

  6. Q. सच्चा गुरु किसे कहते है? आध्यात्मिक गुरु कों किस तरह पसंद करना चाहिए ?

    A. उत्थापन, वह तो भयंकर गुनाह गुरु को गुरु के रूप में मानना मत, और मानो तो फिर पीठ मत फेरना उनकी तरफ।... Read More

  7. Q. शिष्यता की परिभाषा क्या है ? शिष्य में क्या-क्या गुण होने चाहिए ?

    A. प्रश्नकर्ता : तो गुरु बनाते समय शिष्य में कैसे गुण होने चाहिए? दादाश्री : अभी के शिष्य में अच्छे... Read More

  8. Q. गुरु में श्रद्धा रखने से हमें क्या फायदा होता है ?

    A. प्रश्नकर्ता : गुरु पर हमें यदि श्रद्धा हो, फिर गुरु में चाहे जो हो, परंतु अपनी श्रद्धा हो तो वह... Read More

  9. Q. गुरु की विराधना या बुराई करने के क्या नुकसान है ?

    A. आज के इस पंचम आरे(कालचक्र का एक भाग) के जो सारे जीव हैं, वे कैसे जीव हैं? पूर्वविराधक जीव हैं।... Read More

  10. Q. दोष किसका ? गुरु या शिष्य का ?

    A. प्रश्नकर्ता : अभी तो गुरु पैसों के पीछे ही पड़े होते हैं। दादाश्री : वह तो ये लोग भी ऐसे हैं न?... Read More

  11. Q. मोक्षमार्ग में कठिनाई क्या है ?

    A. मोक्षमार्ग में दो चीज़ें नहीं होती। स्त्री के विचार और लक्ष्मी के विचार! जहाँ स्त्री का विचार मात्र... Read More

Spiritual Quotes

  1. वे व्यवहार के गुरु संसार में हमें सांसारिक धर्म सिखलाते हैं, क्या अच्छा करें और कौन-सा बुरा छोड़ दें, वे सारी शुभाशुभ की बातें हमें समझाते हैं। संसार तो रहेगा ही, इसलिए वे गुरु तो रहने देने हैं और हमें मोक्ष में जाना है, तो उसके लिए ज्ञानीपुरुष, अलग से चाहिए! ज्ञानीपुरुष, वे भगवानपक्षी कहलाते हैं।
  2. बिना आसक्तिवाले गुरु चाहिए। आसक्तिवाले हों, धन की आसक्ति हो या दूसरी आसक्ति हो, वे किस काम के? हमें जो रोग है, उन्हें भी वही रोग है। दोनों रोगी। अस्पताल में जाना पड़ता है! वे मेन्टल होस्पिटल के मरीज़ कहलाते हैं। किसी प्रकार की आसक्ति नहीं हो, तो वैसे गुरु बनाए हुए काम के। 
  3. जहाँ बुद्धि नहीं हो वहाँ और बॉडी की ओनरशिप नहीं हो, वहाँ पर। ओनरशिपवाले हों तो वे मालिकीवाले और हम भी मालिकीवाले, दोनों टकराएँ! तब काम नहीं होगा। 
  4. गुरु का चारित्र संपूर्ण शुद्ध होना चाहिए। शिष्य का चारित्र न भी हो, लेकिन गुरु का चारित्र तो एक्ज़ेक्ट होना चाहिए। गुरु यदि बिना चारित्र के हैं तो वे गुरु ही नहीं, उसका अर्थ ही नहीं। 
  5. ऐसा है न, प्रसन्न किसे कहते हैं कि कभी नाराज़ ही नहीं हों। शिष्य तो भूल करते ही रहेंगे, लेकिन वे नाराज़ नहीं हों। 
  6. गुरुकृपा से तो बहुत मदद मिलती है। परंतु अपनी वैसी भावना, वैसा प्रेम चाहिए। 
  7. गुरु के चारित्र के आधार पर आती है। चारित्रबल होता है! जहाँ वाणी, वर्तन और विनय मनोहर हों, वहाँ श्रद्धा बैठानी ही नहीं होती, श्रद्धा बैठ ही जानी चाहिए।
  8. सदगुरु मिल गए, तब किसी योग्यता की ज़रूरत नहीं होती। सदगुरु मिल गए, वही उसका बड़ा पुण्य कहलाता है। 
  9. गुरु की निंदा करके शिष्य अपने आध्यात्मिक सफलता को खो देता है।
  10. पूरे जगत् के तमाम जीवों को गुरु बनाएँ, जिसके पास से जो कुछ जानने को मिले वह स्वीकार करें, तो मुक्ति है। जीव मात्र में भगवान बिराजे हुए हैं, इसलिए वहाँ सभी से हम कुछ संपादन करें तो मुक्ति है। 

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