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शिष्यता की परिभाषा क्या है ? शिष्य में क्या-क्या गुण होने चाहिए ?

प्रश्नकर्ता : तो गुरु बनाते समय शिष्य में कैसे गुण होने चाहिए?

दादाश्री : अभी के शिष्य में अच्छे गुण कहाँ से होंगे! वह भी इस कलियुग में? बा़की, शिष्य तो किसे कहा जाता है कि उसके गुरु पागलपन करें तो भी श्रद्धा उठे नहीं, वह शिष्य कहलाता है। गुरु पागलपन करे तो भी अपनी श्रद्धा नहीं उठे, शिष्य के रूप में वह हमारा गुण कहलाता है। ऐसा होगा आपसे?

प्रश्नकर्ता : अभी तक वैसा अवसर उपस्थित नहीं हुआ।

दादाश्री : वैसा हो तो क्या करोगे?

हाँ, गुरु पर श्रद्धा रखो तो ऐसी रखो, कि जो श्रद्धा रखने के बाद उठानी नहीं पड़े। नहीं तो श्रद्धा रखना ही नहीं शुरू से। वह क्या बुरा?

कल तक उन्हें लोग मानते थे, और फिर गुरु पागलपन करें तब गालियाँ देने लगे। ऐसी-ऐसी गालियाँ देने लगे। अरे, तब फिर उन्हें माना किसलिए था तूने? यदि माना तो गालियाँ देना बंद कर। अभी तक पानी पिला-पिलाकर बड़ा किया, उसी पौधे को तूने काट दिया!

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