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गुरु की विराधना या बुराई करने के क्या नुकसान है ?

आज के इस पंचम आरे(कालचक्र का एक भाग) के जो सारे जीव हैं, वे कैसे जीव हैं? पूर्वविराधक जीव हैं। इसीलिए गुरु में जो प्रकृति के दोष के कारण भूलचूक हो जाए तो उल्टा देखते हैं और लोग विराधना कर डालते हैं। इसलिए गुरु बनाने के बाद यदि विराधना करनी हो, आपकी कमज़ोरी ही खड़ी होनेवाली हो तो गुरु बनाना मत। नहीं तो भयंकर दोष है। गुरु बनाने के बाद विराधना मत करना। चाहे जैसे गुरु हों, फिर भी अंत तक उनकी आराधना में ही रहना। आराधना नहीं हो सके तो विराधना तो कभी करना ही मत। क्योंकि गुरु की भूल देखना, वह पाँचवी घाती है। इसलिए तो ऐसा सिखाते हैं कि, 'भाई देख, गुरु पाँचवी घाती हैं, इसलिए यदि गुरु की भूल दिखी तो तू मारा गया समझना।'

एक व्यक्ति आकर कहता है, मुझे गुरु ने कहा है कि, 'चला जा यहाँ से, अब यहाँ हमारे पास मत आना।' तब से मुझे वहाँ जाने का मन नहीं होता।

तब मैंने उसे समझाया कि नहीं जाए तो भी हर्ज नहीं है, परंतु फिर भी गुरु से मा़फी माँग लेना न! जो मा़फी माँग ले वह यहाँ से, इस दुनिया से मुक्त हो जाएगा। मुँह पर तो मा़फी माँग ली। अब मन से मा़फी माँग लेना और इस कागज़ पर जो लिखकर दिया है, उस अनुसार घर पर प्रतिक्रमण करते रहना। तब फिर उसे प्रतिक्रमण विधि लिखकर दी।

तूने जो गुरु बनाए हैं, उनकी निंदा में मत पड़ना। क्योंकि दूसरा सबकुछ उदयकर्म के आधीन  है। मनुष्य कुछ भी कर ही नहीं सकता। अब आपत्ति नहीं उठाना भी गुनाह है। परंतु आपत्ति वीतरागता से उठानी है, ऐसे उस पर धूल उड़ाकर नहीं। 'ऐसा नहीं होना चाहिए' कह सकते हैं, परंतु नाटकीय! क्योंकि वे तो उदयकर्म के अधीन हैं। अब उनका दोष निकालकर क्या करना है? आपको कैसा लगता है?

प्रश्नकर्ता : हाँ, ठीक है।

दादाश्री : फिर गुरु का जो उपकार है, उसे मानना चाहिए। क्योंकि उन्होंने आपको इस बाउन्ड्री से बाहर निकाला, वह उपकार भूलना नहीं। जिन गुरु ने इतना भला किया हो, उनके गुण किस तरह से भूल सकते हैं? इसलिए उनके वहाँ जाना चाहिए। गुरु अवश्य बनाने चाहिए और एक गुरु बनाने के बाद उन गुरु के प्रति ज़रा-सा भी भाव बिगाड़ना नहीं चाहिए। इतना सँभाल लेना चाहिए, बस।

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