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आध्यात्मिकता क्या है?

आध्यात्मिकता क्या है उसकी परिभाषा देना आसान नहीं है। क्योंकि अनादि काल से लोगों ने इसे अलग अलग दृष्टिकोण से समझा है। यही कारण है कि समय के साथ आध्यात्मिकता का अर्थ विकसित हुआ है। हालाँकि आध्यात्मिकता एक विज्ञान है। जिसके कारण इसकी परिभाषा वैज्ञानिक होनी चाहिए।

आत्मा को जानना और उसकी ओर चलना ही आध्यात्मिकता है

खाना, पीना, काम पर जाना, पैसा कमाना इत्यादि सभी सांसारिक क्रियाएँ हैं। जबकि भ्रष्टाचार और डकैती, लूटपाट करना, लोगों को चोट पहुँचाना और लोगों को परेशान करना अधार्मिक कार्य हैं; पूजा करना, जप करना, आराधना करना, उपवास करना और अन्न और धन का दान करना सभी धार्मिक क्रियाएँ हैं। हालाँकि वे आध्यात्मिक नहीं है ! तो, आध्यात्मिकता का क्या अर्थ है?

अशुभ का त्याग करना और शुभ को ग्रहण करना धर्म कहलाता है, जबकि आत्मा को जानना वह आध्यात्मिकता कहलाती है। जब कोई विनाशी वस्तुओं के मोह से बाहर निकलकर अविनाशी आत्मा की अनुभूति करता है, तब आध्यात्मिकता की शुरुआत होती है।

शुभाशुभ नहीं, आध्यात्मिकता शुद्धता है

  • अशुभ से शुभ की ओर बढ़ना वह धार्मिक जागृति है, और
  • शुभ और अशुभ से शुद्धत्व की ओर बढ़ना ही आध्यात्मिकता है या अंतिम जागृति है।

धर्म हमें शुभ और अशुभ जो है उसका ज्ञान कराता है। यह हमें अशुभ कर्मों को छुडाकर शुभ को अपनाना सिखाता है। हालाँकि, इन शुभ कर्मों का फल भोगने के लिए व्यक्ति को पुनर्जन्म लेना पड़ता है। जन्म और मृत्यु की यह प्रक्रिया ही दुःखदायी है।

इसके अलावा, पुण्य कर्मों के फल, भौतिक सुखों के रूप में, वह स्वभाव से ही विनाशी हैं। इसलिए, व्यक्ति असंतुष्ट महसूस करता है, अधिक सुख की लालसा रखता है और सुख के अन्य साधनों की तलाश में रहता है। यह अनंत जन्मों तक चलता रहता है।

वहीं दूसरी ओर, आध्यात्मिकता हमें शाश्वत सुख देती है। यह शुद्ध ऐसे अपने आत्मा का ज्ञान देती है। यह हमें, शुभ कर्म और अशुभ कर्म से पर का ज्ञान देता है और हमें आत्मा के शाश्वत सुख में रहना सिखाती है । इससे जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है।

जहाँ धर्म हमें अशुभ को छोड़कर शुभ को अपनाने को प्रेरित करता है, वहीं आध्यात्मिकता हमें शुद्धता की ओर ले जाता है। आध्यात्मिकता शुभ और अशुभ के द्वंद्व से परे जाकर हमें शुद्धात्मा का अनुभव करवाकर सभी सांसारिक बंधनों से मुक्त करवाता है।

मान लीजिए के, नल से गंदा पानी आ रहा है। इसे पीने योग्य बनाने के लिए इसमें फिल्टर लगाकर साफ़ किया जाता है। फिर हम इस साफ़ पानी का उपयोग अपने दैनिक कार्यों में कर सकते हैं और एक अच्छा जीवन जी सकते हैं। हालाँकि, अगर हमें इस पानी से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को अलग करना चाहते हैं, तो हमें एक वैज्ञानिक की मदद की ज़रूरत होगी जो कहेगा, “आपने गंदे पानी को साफ़ कर दिया है, लेकिन आपको इससे आगे जाना होगा।” इस प्रकार, यदि हम पानी का शुद्ध तात्त्विक रूप, यानी हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें अभी और आगे जाना होगा।

दूसरी ओर, यदि हम सीधे गंदे पानी से ही हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को अलग करें और उसका विश्लेषण करें तो क्या हाइड्रोजन और ऑक्सीजन अशुद्ध होंगे? बिल्कुल नहीं! वे पूरी तरह से शुद्ध पाए जाते हैं। इस तरह इतनी सारी अशुद्धियों के बीच भी तत्त्व हमेशा शुद्ध ही रहता है! इसी प्रकार, चाहे कितने भी अशुभ या शुभ कर्म क्यों न किए हों, शरीर के भीतर आत्मा हमेशा शुद्ध ही रहता है। इससे आध्यात्मिकता क्या है यह वैज्ञानिक निष्कर्ष निकलता है।

अविनाशी तत्त्व के ज्ञान को आध्यात्मिक विज्ञान कहा जाता है!

एक बार जब हम यह समझ लें कि आत्मा एक शाश्वत तत्त्व है और यही हमारा खुद का स्वरूप है और यदि (आत्मतत्त्व और जड़तत्त्व के भेदज्ञान से) हम उस शाश्वत तत्त्व को जान लें, तो हमारी सांसारिक समस्याएँ और उलझनें आसानी से हल हो सकती हैं।

इसलिए, परम पूज्य दादा भगवानने हमें यह आध्यात्मिक विज्ञान दिया है! बाह्य विज्ञान बिलकुल अलग चीज़ है। यह भौतिक है, जबकि यह आध्यात्मिक विज्ञान है, जो अविनाशी तत्त्व, आत्मा पर आधारित है। श्री महावीर भगवान, श्री कृष्ण भगवान और श्री राम भगवान सभी आध्यात्मिक विज्ञानी थे। इन वैज्ञानिकों ने अविनाशी तत्त्व को पहचाना, उसका अनुभव किया और अपने शिष्यों को भी यही ज्ञान दिया।

आध्यात्मिकता का अर्थ है कि जहाँ खुद के स्वरूप का अनभुव हो उस मार्ग पर चलना

परम पूज्य दादा भगवान को 1958 में आत्मसाक्षात्कार हुआ था। वे बचपन से ही इस बात का उत्तर ढूंढ रहे थे कि इस पूरे ब्रह्मांड को कौन चला रहा है, मैं कौन हूँ, जो कुछ भी हो रहा है उसके पीछे कर्ता कौन है और इस दुनिया की रचना कैसे हुई'। 1958 में, आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने पर, उन्हें इन सभी आध्यात्मिक प्रश्नों के समाधान मिल गए।

मुमुक्षुओं को आत्मज्ञान देने के लिए उन्होंने विशेष आध्यात्मिकता सिद्धियाँ प्राप्त कीं। यह वही आत्मज्ञान है जो भगवान कृष्ण ने अर्जुन को दिया था। आध्यात्मिकता क्या है, इसकी खोज में हमें दो मूलभूत बातों का ज्ञान होता है:

  • मैं कौन हूँ?
  • यह जगत कौन चलाता है?

यह ज्ञान प्राप्त करने पर, हमें अपने सभी सांसारिक समस्याओं को हल करने के लिए समाधान और चाबियाँ मिल जाती हैं, और परिणामस्वरूप, हम दुःख से मुक्त होने लगते हैं। हम जो भी समस्याएँ भुगत रहे हैं, वे स्वरूप की अज्ञानता के कारण हैं। एक बार जब हम वास्तव में जान लेते हैं कि 'मैं कौन हूँ’ और ‘कर्ता कौन है', तो अज्ञानता के कारण जो भी दुःख आ रहे हैं वे अपने आप दूर हो जाते हैं। इसलिए, यह आध्यात्मिकता विज्ञान है!

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