अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें“यदि खुद के स्वरूप को पहचान लिया तो फिर वह, खुद ही परमात्मा है |”
~ परम पूज्य दादा भगवान
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
अधिक पढ़ेंअहमदाबाद से २० की.मी. की दूरी पर सीमंधर सिटी, एक आध्यात्मिक प्रगति की जगह है| जो "एक स्वच्छ, हरा और पवित्र शहर" जाना जाता है|
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प्रश्नकर्ता : तो फिर अब कर्मबंधन किसे होता है, आत्मा को या देह को?
दादाश्री : यह देह तो खुद ही कर्म है। फिर दूसरा बंधन उसे कहाँ से होगा? यह तो जिसे बंधन लगता हो, जो जेल में बैठा हो, उसे बंधन है। जेल को बंधन होता है या जेल में बैठा हो उसे बंधन है? यानी यह देह तो जेल है और उसके अंदर बैठा है न उसे बंधन है। 'मैं बंधा हुआ हूँ, मैं देह हूँ, मैं चंदूभाई हूँ', मानता है, उसे बंधन है।
प्रश्नकर्ता : यानी आप कहना चाहते हैं कि आत्मा देह के माध्यम से कर्म बांधता है और देह के माध्यम से कर्म छोड़ता है?
दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं है। आत्मा तो इसमें हाथ डालता ही नहीं है। वास्तव में तो आत्मा अलग ही है, स्वतंत्र है। विशेषभाव से ही यह अहंकार खड़ा होता है और वह कर्म बांधता है और वही कर्म भुगतता है। 'आप हो शुद्धात्मा' परन्तु बोलते हो कि 'मैं चंदूभाई हूँ।' जहाँ खुद नहीं है, वहाँ आरोप करना कि 'मैं हूँ', वह अहंकार कहलाता है। पराये के स्थान को खुद का स्थान मानता है, वह इगोइज़म है। यह अहंकार छूटे तो खुद के स्थान में आया जा सकता है। वहाँ बंधन है ही नहीं।
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Q. कर्म बंधन से मुक्ति के पथ की ओर
A. प्रश्नकर्ता : पुनर्जन्म में कर्मबंध का हल लाने का रास्ता क्या है? हमें ऐसा साधारण मालूम है कि पिछले जन्म में हमने अच्छे या बुरे सभी कर्म किए हुए ही हैं,...Read More
Q. किन परिस्थितियों में कर्म बंधन नही होता?
A. प्रश्नकर्ता : कर्म होने कब रुकते हैं? दादाश्री : 'मैं शुद्धात्मा हूँ' उसका अनुभव होना चाहिए। यानी तू शुद्धात्मा हो जाए, उसके बाद कर्मबंध रुकेगा। कर्म की...Read More
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