योग से आयुष्य का एक्सटेन्शन?
प्रश्नकर्ता: योग से मनुष्य हज़ारों-लाखों सालों तक जीवित रह सकता है क्या?
दादाश्री: लाखों तो नहीं, लेकिन हज़ार-दो हज़ार सालों के लिए ज़रूर जी सकता है। वह योग कैसा होता है? यों तो आत्मा पूरे शरीर में व्याप्त है, लेकिन योग से आत्मतत्व ऊपर खिंचता है, उसे जब ठेठ ऊपर ब्रह्मरंध्र में खींच लेता है, तब हार्ट, नाड़ी सभी बंद हो जाते हैं। आत्मा कमर तक रहें, तभी तक हृदय, नाड़ी वगैरह सब चलता है लेकिन उससे ऊपर चला गया तो सारी मशीनरी बंद हो जाती है। किसीने यह योग पंद्रह साल, तीन महीने, तीन दिन, तीन घंटे और तीन मिनट की उम्र में शुरू किया हो और वह एक हज़ार साल के बाद पूरा हो तो उसका आयुष्य वापस से पंद्रह साल, तीन महीने, तीन दिन, तीन घंटे और तीन मिनट बाद शुरू होगा। यहाँ पर धड़कन शुरू हुई यानी आयुष्य खर्च हुआ और जितनी धड़कनें सलामत हैं, तो उतना आयुष्य सलामत। आपसे यह आयुष्य को सलामत नहीं रखा जा सकता। योगवाले कर सकते हैं और जब तक देह में आत्मा की हाज़िरी है, तब तक शरीर सड़ता नहीं, मुरझाता नहीं, बदबू नहीं मारता, देह वैसे का वैसा ही रहता है! फिर भले ही योग द्वारा हज़ार सालों के लिए पत्थर जैसा हो चुका हो।
प्रश्नकर्ता: उसमें आत्मा की क्या दशा होती है?
दादाश्री: बोरे में भरकर रखने जैसी। उसमें आत्मा पर क्या उपकार हुआ? यह तो इतना ही कि मैं हज़ार साल तक योग में रहा ऐसा सिर्फ अहंकार रहता है। फिर भी, सांसारिक दुःख बंद रहते हैं लेकिन सुख तो उत्पन्न नहीं ही होता। सुख तो, जब आत्मा का उपयोग करते हैं, तभी उत्पन्न होता है, और आत्मा का उपयोग कब होता है? हार्ट चले तब होता है। उसके बिना तो कुछ नहीं हो सकता।
कुछ योगी उनके शिष्यों से कहकर रखते हैं कि आत्मा ब्रह्मरंध्र में चढ़ा लूँ, उसके बाद तालू में (खोपड़ी पर) नारियल फोड़ना, लेकिन ऐसे कहीं मोक्ष में जाया जाता होगा? ये तो ऐसा मानते हैं कि तालू में से जीव निकले तो मोक्ष में जाता है, इसलिए ऐसा प्रयोग करते हैं। लेकिन ऐसा मानने से कुछ नहीं हो सकता, वह तो नैचुरली तालू से प्राण निकलना चाहिए। कोई कहेगा कि आँख में से जीव जाए तब ऐसा होता है, तो क्या आँखों में मिर्ची डालकर जीव आँखों में से भेजें? ना। नैचुरली होने दे न!
Book Name: आप्तवाणी 2 (Page #301- Paragraph #3 to #5, Entire Page #302)
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