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कुंडलिनी चक्र यानी क्या? और कुंडलीनी जागृत करते समय क्या होता है?

कुंडलिनी क्या है?

प्रश्नकर्ता: ‘कुंडलिनी’ जगाते हैं, तब प्रकाश दिखता है। वह क्या है?

दादाश्री: उस प्रकाश को देखनेवाला शुद्धात्मा है, जो उस प्रकाश के साथ तन्मयाकार हो जाता है, वह प्रतिष्ठित आत्मा है। उसमें दो-चार घंटों तक तन्मयाकार रहे, तो उससे आनंद रहता है, लेकिन जब उसकी गैरहाज़िरी रहे तो वापस, थे वहीं के वहीं। किस रंग का प्रकाश दिखता है?

प्रश्नकर्ता: कभी नहीं देखा हो, ऐसा सफेद होता है।

दादाश्री: जिसमें तन्मयाकार हुआ, उसमें उसे आनंद होता है। लुटेरों की किताब पढ़ता है तो भी आनंद होता है, लेकिन उससे गलत कर्म बंधते हैं। जबकि इस एकाग्रता से अच्छे कर्म बंधते हैं। यह कुंडलिनी जागृत करता है, इसके बजाय तो आत्मा को जगा न! यह तो सिर्फ कुंडलिनी के स्टेशन पर ही घूमता रहता है। इन्हें गुरु महाराज अगर ऐसे स्टेशन पर उतार दें, जहाँ काली जमीन पर बरसात हो रही हो, तो वह किस काम का? अपने को तो यहाँ पर अंतिम स्टेशन मिल गया है। अनंत प्रकार के स्टेशन हैं, उनमें गुरु न जाने कहाँ उलझाकर रख दें। फिर भी उससे स्थिरता रहती है, लेकिन मोक्ष के लिए वह किस काम का?

कुंडलिनी जाग्रत करता है लेकिन उससे दृश्य दिखता है, लेकिन वह तो था ही न पहले से! दृष्टि दृष्टा में पड़ेगी और ज्ञान ज्ञाता में पड़ेगा, तभी निर्विकल्प होगा!

प्रश्नकर्ता: दादा, मुझमें कुंडलिनी की लाइट उत्पन्न हो जाती है।

दादाश्री: एकाग्रता का साधन है इसलिए लाइट उत्पन्न होती है और आनंद आता है। लोग उस लाइट को आत्मा मानते हैं, लेकिन वह लाइट आत्मा नहीं है, जो उस लाइट को देखता है, वह आत्मा है। यह लाइट तो दृश्य है और उसे देखनेवाला दृष्टा-वह आत्मा है। आपको यहाँ जो यथार्थ आत्मा दिया है, वह इस लाइट का दृष्टा है!

प्रश्नकर्ता: वह एकाग्रता करता है, इसलिए लाइट जैसा दिखता है और उससे आनंद आता है!

दादाश्री: लेकिन वह सारा आनंद रिलेटिव आनंद है, वह किसके जैसा है? बर्फी खाने पर जो आनंद आता है, वैसा। फिर भी, यह अच्छा है। इस संसार के अनेक दुःखों में ठंडक के लिए कोई साधन तो चाहिए न? और जब तक सही मार्ग नहीं मिल जाता, तब तक वह ठीक है।

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