टकराव होना हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा है , परंतु उससे छुटकारा कैसे मिलेगा ? यदि हमें पता चले टकराव होने के क्या कारण है , तब हम उन चीजो के प्रत्ये जाग्रत रहकर और टकराव को टाल सकते है। टकराव के कई कारण हैं, यहाँ उनमें से कुछ हैं:
इस तरह असंख्य कारण है…
जगह जगह में तरह तरह के टकराव हो और आप अपनी मानसिक शांति खोने के बजाय, क्यों न हम आरंभ से ही टकराने से बचे , क्या यह ज्यादा आसान नहीं है ? इसके लिए आपको टकराव के सूक्ष्म कारणों को समझना होगा , जो आपने कभी सुने नहीं होंगे। परम पूज्य दादाश्री ने उन्हें बहुत विस्तार से समझाया है।
इस दुनिया में जो कोई भी टकराव होता है, वह आपकी ही भूल है, सामनेवाले की भूल नहीं है! सामनेवाले तो टकराएँगे ही। ‘आप क्यों टकराए?’ तब कहता है, ‘सामनेवाला टकराया इसलिए!’ तो आप भी अंधे और वह भी अंधा हो गया।
चलिए जानते है परम पूज्य दादाश्री क्या कहते है ?
प्रश्नकर्ता : टकराव में टकराव करने से क्या होता है?
दादाश्री : सिर फूट जाएगा! तो फिर अगर टकराव हो जाए, तब हमें क्या समझना है?
प्रश्नकर्ता : अपनी ही गलती है।
दादाश्री : हाँ, और उसे तुरंत एक्सेप्ट कर लेना। टकराव हो जाए तो आपको समझना चाहिए कि ‘ऐसा मैंने क्या कह दिया कि यह टकराव हो गया!’ खुद की भूल मालूम हो जाएगी तो हल आ जाएगा। फिर पज़ल सॉल्व हो जाएगी। वर्ना जहाँ तक हम ऐसा खोजने जाएँगे कि ‘सामनेवाले की भूल है’ तो कभी भी यह पज़ल सॉल्व नहीं होगी। जब ऐसा मानोगे कि ‘अपनी ही भूल है’ तभी इस संसार का अंत आएगा। अन्य कोई उपाय नहीं है। अन्य सभी उपाय उलझानेवाले हैं और उपाय करना तो अपने अंदर का छुपा हुआ अहंकार है। उपाय क्यों खोजते हो? सामनेवाला आपकी गलती निकाले तो आपको ऐसा कहना है कि ‘मैं तो पहले से ही टेढ़ा हूँ।’
बुद्धि ही संसार में टकराव करवाती है। अरे, एक औरत का सुनकर चलने से भी पतन हो जाता है, टकराव हो जाता है, फिर यह तो बुद्धि बहन है! उसकी सुनेंगे तो कहाँ से कहाँ फिंक जाए। अरे, रात को दो बजे जगाकर बुद्धि बहन उल्टा दिखाती है। पत्नी तो कुछ ही समय साथ रहती है, लेकिन बुद्धि बहन तो निरंतर साथ ही रहती है। यह बुद्धि तो ऐसी है कि ‘डीथ्रोन’ (पदभ्रष्ट) करवा दे।
कोई समस्या का समाधान न मिलने के कारण टकराव होता है। किसी कारणवश ऐसा होता कि हम समाधान लाने में सक्षम नहीं होते और हम आवेश में आते हैऔर अपने आसपास के लोगों के साथ टकराव उत्पन्न कर लेते है। संक्षेप में, टकराव का उत्पन्न होना हमारी अज्ञानता है। यदि आप किसी के साथ टकराव करते हो , यह हमारी ही अज्ञानता का निशानी है।
किसी के साथ मतभेद होना और दीवार से टकराना दोनों समान हैं, उन दोनों में कोई फ़र्क़ नहीं। दीवार से टकराता है, वह नहीं दिखने के कारण टकराता है। और जो मतभेद होता है, वह मतभेद भी नहीं दिखने के कारण होता है। आगे का उसे नज़र नहीं आता, आगे का उसे सोल्युशन नहीं मिलता, इसलिए मतभेद होता है। यह क्रोध होता है, वह भी नहीं दिखने से क्रोध होता है। ये क्रोध-मान-माया-लोभ वगैरह करते हैं, वे भी नहीं दिखने से करते हैं। तो बात को ऐसे समझनी चाहिए न! जिसे लगे उसका दोष है न, दीवार का कोई दोष है क्या? अब इस जगत् में सभी दीवारें ही हैं। दीवार से टकराने पर हम उसके साथ खरी- खोटी करने नहीं जाते कि यह मेरा सही है। ऐसे लड़ने के लिए झंझट नहीं करते न? जो टकराते हैं न, समझो वे सब दीवारें ही हैं। फिर दरवाज़ा ढूंढना हो तो अंधेरे में भी दरवाज़ा मिलेगा। ऐसे हाथ से टटोलते-टटोलते जाएँ तो दरवाज़ा मिलता है या नहीं मिलता? और वहाँ से फिर निकलजाना। टकराना नहीं है, ऐसे नियम का पालन करना चाहिए कि ‘किसी के साथ टकराना ही नहीं है।’
टकरा जाना तो स्वभाव है (कुदरती), ऐसा माल भरकर (पूर्व जन्म के संचित संस्कार) लाये है , इसलिए टकराव हो जाता है। यदि किसी के साथ हमारा कर्मों का हिसाब नहीं है तो टकराव नहीं होगा। पिछले घर्षण ही नए घर्षण को जन्म देते है। घर्षण संघर्ष को उत्पन्न करते है और इस तरह घर्षण से घर्षण बढ़ता ही जाता है।
लेकिन टकराव में समझदारी से व्यवहार करने पर आध्यात्मिक प्रगति बहुत अच्छी होती है। यह आपको बहुत ऊपर ले जाएगा। जितना घर्षण होगा उतना ही ऊपर उठने का मार्ग मिलेगा। जैसे नदी के तेज प्रवाह से घर्षण होकर पत्थर गोल हो जाते है , उसी प्रकार हमारे व्यक्तिगत जीवन में घर्षण व टकराव के आने से हमारा व्यक्तित्व में निखार आता है।
यदि ये घर्षण न हो तो हमारा आध्यात्मिक विकास रुक जायेगा। इसलिए संघर्ष व टकराव होने पर निराश नहीं होना, बल्कि जब टकराव हो, तब प्रतिक्रमण करके उसे धो डालो।
टकराव तो होगा ही, लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि जिससे टकराव हुआ है उससे भेद नहीं होना चाहिए। आपको यह लक्ष्य में रखना है कि घर्षण से अभेदता नहीं टूटनी चाहिए। यही आध्यात्मिक प्रगति के लिए आवश्यक है।
टकराव नहीं हो , ऐसा निरंतर भाव (अटल निश्चय) होना चाहिए। जब भी टकराव हो , उस व्यक्ति के अंदर बैठे हुए शुद्धात्मा से माफी मांगनी चाहिए और उस व्यक्ति के साथ सच्ची मित्रता का भाव रखना चाहिए|
फिर से उसी व्यकित से टकराव हो सकता है , तब फिर से प्रतिक्रमण करना। इस तरह के असंख्य कर्मों के कारण यह टकराव होते रहेंगे, लेकिन प्रत्येक प्रतिक्रमण और आपका दृढ़ निश्चय कि अब टकराव में नहीं पड़ना है , इससे एक परत चली जाएगी और आप मोक्ष की ओर आगे बढ़ेंगे। एक दिन आप निश्चित ही सभी तरह के टकरावों से मुक्ति पाएंगे।
और जिस व्यक्ति के साथ आपका टकराव हुआ है, आपने उनको दोषित देखा है और उनके साथ मतभेद हो गया है तो आपको सभी के लिए अलग से प्रतिक्रमण करना चाहिए। आपको यह समझना चाहिए कि यदि आप दूसरों की गलती देखते हैं तो यह आपकी गलती है। किसी भी जीवित व्यक्ति के लिए नकारात्मक विचार आया तो वह जोखिम है। दोनों तरफ से हानि होगी। लेकिन हम उसका प्रतिक्रमण करेंगे तो सारे दोष धूल जायेंगे। इसलिए जहां जहां घर्षण होते है , वहाँ वहाँ प्रतिक्रमण करो तो घर्षण समाप्त हो जायेंगे।
जब आपको समझ में आए कि आप वास्तव में कौन है, तब आप बाहरी व आंतरिक दोनों प्रकार की शांति को प्राप्त कर सकते हो। तब कोई भी बात हो ,"आप टकराएंगे नहीं"। इसलिए, यदि आप अपने स्वयं को पहचान जाते है, तब कोई भी परिस्थिति आपको प्रभावित नहीं करेगी। आप स्थिर रहकर अपनी समस्याओं का समाधान कर पाएंगे। केवल ज्ञानी पुरुष ही आपकी यह अज्ञानता दूर करने में मदद कर सकते है।
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