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दूसरों की मदद करना - जीवन का उद्देश्य

मानव जीवन का उद्देश्य है कि अपने मन, वचन और काया से औरों की मदद करना। हमेशा यह देखा गया है कि जो लोग दूसरों की मदद करते हैं, उन्हें कम तनाव रहता है, मानसिक शांति और आनंद का अनुभव होता है। वे अपनी आत्मा से ज़्यादा जुड़े हुए महसूस करते हैं, और उनका जीवन संतोषपूर्ण होता है। जबकि स्पर्धा से खुद को और दूसरों को तनाव रहता है।

इसके पीछे गुह्य विज्ञान यह है कि जब कोई अपना मन, वचन और काया को दूसरों की सेवा के लिए उपयोग करता है, तब उसे सबकुछ मिल जाता है। उसे सांसारिक सुख-सुविधा की कमी कभी नहीं होती। धर्म की शुरूआत ओब्लाइजिंग नेचर से होती है। जब आप दूसरों के लिए कुछ करते हैं, उसी पल खुशी की शुरुआत हो जाती हैं।

मानव जीवन का उद्देश्य जन्मों-जन्म के कर्म बंधन को तोड़ना और संपूर्ण मुक्ति को प्राप्त करना है। इसका उद्देश्य केवळज्ञान प्राप्त करने के लिए पहले आत्मज्ञान की प्राप्ति करना आवश्यक है। और यदि किसीको आत्मज्ञान प्राप्त करने का अवसर नहीं मिलता तो उसे परोपकार में जीवन व्यतीत करना चाहिए।

दादाश्री के जीवन का मुख्य हेतु यही था कि जो भी उनसे मिले उसे सुख दें। उन्होंने अपने सुख के बारे में कभी भी नहीं सोचा। वे हमेशा दूसरों के दुःख दूर करने के बारे में सोचते थे। यही कारण था कि उनके भीतर करुणा और अदभुत "अक्रम विज्ञान" प्रकट हुआ।

इस संकलन में दादाश्री ने दूसरों की सेवा और दूसरों की मदद करके अपने जीवन का लक्ष्य कैसे पूरा करें, इस बारे में व्यापक स्पष्टीकरण दिए हैं। लेकिन शाश्वत सुख तो प्रत्यक्ष ज्ञानी के पास से आत्मज्ञान प्राप्त करके ही मिलता है।

जीवन का हेतु क्या हैं?

मनुष्य जीवन का हेतु क्या है? जन्म और मृत्यु से मुक्ति पाने के लिए और दूसरों को खुश करने के लिए है|

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Top Questions & Answers

  1. Q. जीवन में खुश कैसे रहें?

    A. प्रश्नकर्ता : जीवन सात्विक और सरल बनाने के क्या उपाय हैं? दादाश्री : तेरे पास जितना हो उतना... Read More

  2. Q. जीवन का उद्देश्य क्या है?

    A. इसका मुख्य साइन्स क्या है कि मन-वचन-काया परोपकार में लगा दें, तो आपके यहाँ हर एक चीज़ होगी। परोपकार... Read More

  3. Q. दूसरों की मदद क्यों करनी चाहिए?

    A. यह लाइफ यदि परोपकार के लिए जाएगी तो आपको कोई भी कमी नहीं रहेगी। किसी तरह की आपको अड़चन नहीं आएगी।... Read More

  4. Q. लोगों की मदद कैसे करें?

    A. प्रश्नकर्ता : लोकसेवा करते-करते उसमें भगवान के दर्शन करके सेवा की हो तो वह यथार्थ फल देगी... Read More

  5. Q. अच्छे हो या बुरे, सभी लोगों की मदद करें

    A. प्रश्नकर्ता : दिल को ठंडक पहुँचाने जाएँ तो आज जेब कट जाती है। दादाश्री : जेब भले ही कट जाए। वह... Read More

  6. Q. दूसरों की मदद करने का प्रबल भाव रखें।

    A. ये कोई पेड़ अपने फल खुद खाता है? नहीं! इसलिए ये पेड़ मनुष्य को उपदेश देते हैं कि आप अपने फल दूसरों... Read More

  7. Q. माता-पिता की सेवा या भगवान की सेवा?

    A. माँ-बाप की सेवा करना वह धर्म है। वह तो चाहे कैसे भी हिसाब हो, पर यह सेवा करना हमारा धर्म है और... Read More

  8. Q. माता-पिता की सेवा क्यों करनी चाहिए?

    A. प्रश्नकर्ता : अभी जो  माँ-बाप की सेवा नहीं करते हैं, उसका क्या? तो कौन-सी गति होती है? दादाश्री :... Read More

  9. Q. क्या मानवता मुक्ति की ओर ले जाती है?

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  10. Q. खुद की सेवा का क्या मतलब है?

    A. प्रश्नकर्ता : पर खुद की सेवा करने का सूझना चाहिए न? दादाश्री : वह सूझना आसान नहीं है। प्रश्नकर्ता... Read More

Spiritual Quotes

  1. दूसरों को कुछ भी देते है, तब से ही खुद को आनंद शुरू होता है.
  2. मनुष्य जीवन का हिसाब इतना ही है! अ़र्क इतना ही है कि मन-वचन-काया दूसरों के लिए वापरो।
  3. यदि मनुष्य को सुख चाहिए, तो दूसरे जीवों को सुख दो और दुःख चाहिए तो दुःख दो।
  4. आपको अपने फल मिलते रहेंगे। आपके जो फल उत्पन्न हों-दैहिक फल, मानसिक फल, वाचिक फल, 'फ्री ऑफ कोस्ट' लोगों को देते रहो तो आपको आपकी हरएक वस्तु मिल जाएगी। आपकी जीवन की ज़रूरतों में किंचित् मात्र अड़चन नहीं आएगी ।
  5. मनुष्य ने जब से किसी को सुख पहुँचाना शुरू किया तब से धर्म की शुरूआत हुई। खुद का सुख नहीं, पर सामनेवाले की अड़चन कैसे दूर हो, यही रहा करे वहाँ से कारुण्यता की शुरूआत होती है।
  6. और यदि सेवा नहीं हो पाए तो किसी को दुःख न हो ऐसा देखना चाहिए। भले ही नुकसान कर गया हो। क्योंकि वह पूर्व का कुछ हिसाब होगा।
  7. माँ-बाप की जो बच्चे सेवा करते हैं, उन्हें कभी पैसों की कमी नहीं आती, उनकी जरूरतें सब पूरी होती है |
  8. बाकी सेवा तो उसका नाम कि तू काम करता हो, तो मुझे पता भी नहीं चले। उसे सेवा कहते हैं। मूक सेवा होती है। पता चले, उसे सेवा नहीं कहते।
  9.  समाजसेवा तो कई प्रकार की होती है। जिस समाजसेवा में, जिसमें किंिचंत् मात्र 'समाजसेवक हूँ' ऐसा भान नहीं रहे न, वह समाजसेवा सच्ची।
  10. 'रिलेटिव धर्म' है, वह संसार मार्ग है। समाजसेवा का मार्ग है। मोक्षमार्ग समाजसेवा से परे है, स्व-रमणता का है।

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