अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें“यदि खुद के स्वरूप को पहचान लिया तो फिर वह, खुद ही परमात्मा है |”
~ परम पूज्य दादा भगवान
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
अधिक पढ़ेंअहमदाबाद से २० की.मी. की दूरी पर सीमंधर सिटी, एक आध्यात्मिक प्रगति की जगह है| जो "एक स्वच्छ, हरा और पवित्र शहर" जाना जाता है|
अधिक पढ़ेंअक्रम विज्ञानी, परम पूज्य दादा भगवान, द्वारा प्रेरित एक अनोखा निष्पक्षपाति त्रिमंदिर।
माँ-बाप की सेवा करना वह धर्म है। वह तो चाहे कैसे भी हिसाब हो, पर यह सेवा करना हमारा धर्म है और जितना हमारे धर्म का पालन करेंगे, उतना सुख हमें उत्पन्न होगा। बुज़ुर्गों की सेवा तो होती है, साथ-साथ सुख भी उत्पन्न होता है। माँ-बाप को सुख दें, तो हमें सुख उत्पन्न होता है। माँ-बाप को सुखी करें, वे लोग सदैव, कभी भी दुखी होते ही नहीं है।
एक व्यक्ति मुझे एक बड़े आश्रम में मिले। मैंने पूछा, 'आप यहाँ कहाँ से?' तब उसने कहा कि मैं इस आश्रम में पिछले दस साल से रहता हूँ।' तब मैंने उनसे कहा, 'आपके माँ-बाप गाँव में बहुत गरीबी में अंतिम अवस्था में दुखी हो रहे हैं।' इस पर उसने कहा कि, 'उसमें मैं क्या करूँ? मैं उनका करने जाऊँ, तो मेरा धर्म करने का रह जाए।' इसे धर्म कैसे कहें? धर्म तो उसका नाम कि माँ-बाप से बात करें, भाई से बात करें, सभी से बात करें। व्यवहार आदर्श होना चाहिए। जो व्यवहार खुद के धर्म का तिरस्कार करे, माँ-बाप के संबंध का तिरस्कार करे, उसे धर्म कैसे कहा जाए?
आपके माँ-बाप हैं या नहीं?
प्रश्नकर्ता : माँ है।
दादाश्री : अब सेवा करना, अच्छी तरह। बार-बार लाभ नहीं मिलेगा और कोई मनुष्य कहे कि, 'मैं दुखी हूँ' तो मैं कहूँगा कि तेरे माता-पिता की सेवा कर, अच्छी तरह से। तो संसार के दुःख तुझ पर नहीं पड़ेंगे। भले ही पैसेवाला नहीं बनेगा, पर दुःख तो नहीं पड़ेगा। फिर धर्म होना चाहिए। इसे धर्म ही कैसे कहें?
मैंने भी माताजी की सेवा की थी। बीस साल की उम्र थी अर्थात् जवानी की उमर थी। इसलिए माँ की सेवा हो पाई। पिताजी को कंधा देकर ले गया था, उतनी सेवा हुई थी। फिर हिसाब मिल गया कि ऐसे तो कितने पिताजी हो गए, अब क्या करेंगे? तब जवाब आया, 'जो हैं, उनकी सेवा कर।' फिर जो चले गए, वे गोन (गए)। पर अभी तो जो हैं, उनकी सेवा कर, न हों, उनकी चिंता मत करना। सभी बहुत हो गए। भूले वहाँ से फिर से गिनो। माँ-बाप की सेवा, वह प्रत्यक्ष रोकड़ा है। भगवान दिखते नहीं, ये तो दिखते हैं। भगवान कहाँ दिखते हैं? और माँ-बाप तो दिखते हैं।
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Q. माता-पिता की सेवा क्यों करनी चाहिए?
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Q. क्या मानवता मुक्ति की ओर ले जाती है?
A. प्रश्नकर्ता : मोक्षमार्ग, समाजसेवा के मार्ग से बढ़कर कैसे है? यह ज़रा समझाइए। दादाश्री : समाज सेवक से हम पूछें कि आप कौन हो? तब कहें, मैं समाजसेवक हूँ।...Read More
Q. खुद की सेवा का क्या मतलब है?
A. प्रश्नकर्ता : पर खुद की सेवा करने का सूझना चाहिए न? दादाश्री : वह सूझना आसान नहीं है। प्रश्नकर्ता : वह कैसे करें? दादाश्री : वह तो खुद की सेवा करते हों,...Read More
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