अक्रम विज्ञान में, आत्मज्ञान न केवल एक आध्यात्मिक प्रगति में मदद करता है, लेकिन साथ में सांसारिक व्यवहार भी आसान करने में मददरूप है। चलिए हम आत्मज्ञान के अन्य लाभों पर एक द्रष्टि डालें ताकि हम आत्मज्ञान के महत्व के साथ-साथ पूर्ण आत्मानुभव के महत्व को भी समझ सकें।
१. आप अनंत सुख का अनुभव करेंगे; आप को किसी भी प्रकार का भोगवटा (दुःख) नहीं आयेगा। आत्मज्ञान होने के बाद आप जो सुख का अनुभव करते हैं वह सुख निराकुल आनंद की अवस्था का सुख है।
२. आप दिन-प्रतिदिन की सभी समस्याओं का समभाव से समाधान कर सकते हैं।
३. आप किसी भी चिंता या दुःख से प्रभावित नहीं होंगे ।
४. आत्मज्ञान प्राप्ति के बाद, ना ही दुःख पहुँचाने का भाव और ना ही क्रोध से आक्रोश में आ कर कष्ट देने का भाव होगा |
५. जो आत्मा को प्राप्त कर चुके हैं उनमें निर्भयता और स्वतंत्रता उत्पन्न होती है।
६. आत्मज्ञान के बाद व्यक्ति निष्पक्ष हो जाता है। इससे एक व्यक्ति कभी भी अपने मन, शरीर और वाणी से पक्षपाती नहीं होता है और यही कारण है कि वे अपनी गलतियों को देख सकते हैं।
७. आत्मज्ञान प्राप्त करने के बाद आप समकित (सच्ची) दृष्टि प्राप्त करते हैं जिसके माध्यम से आप जगत को निर्दोष रूप में देखते हैं।
८. यह ज्ञान विशेष और असाधारण है। जिस प्रकार दहीं मथने के बाद दही और मट्ठा अलग रह जाता है, उसी प्रकार से शरीर और आत्मा, आत्मज्ञान के बाद अलग हो जाते है। 'मैं शुद्ध्तामा हूँ' की बिलीफ हर परिस्थिति में हाजिर रहेगी।
९. भले ही यदि कोई आपको दुःख पहुँचाता हो, लेकिन बैर की भावना आत्मज्ञान के बाद नहीं रहती है ।
१०. सच्चा प्रतिक्रमण (क्षमा माँगना) आत्मज्ञान के बाद शुरू होता है। एक बार जब ज्ञान द्रष्टि प्राप्त हो जाती है, समकित दृष्टि, तब आत्मदृष्टि उत्पन्न होती है; तभी आप वास्तविक प्रतिक्रमण कर पाएँगे । तब तक, आप प्रतिक्रमण के साथ अपने दोषों को कम कर सकते है ।
११. कोई नया कर्म बंधन नहीं होगा।
१२. सांसारिक दुखो के प्रति उदासीनता यह मोक्ष का प्रथम अनुभव है । ज्ञानी पुरुष से आत्मज्ञान प्राप्ति के बाद अगले दिन से यह बदलाब को आप अनुभव करेंगे। दूसरा अनुभव तब होता है जब कर्मरूपी के इस शरीर का बोझ टूट जाता है। फिर इतना आनंद होता है, कि जो अवर्णनीय है।
१३. आत्मज्ञान के बाद, आप अनुभव करेंगे कि आप अपने जीवन के साथ कुछ अलग कर रहे हैं, जो आप आत्मज्ञान से पहले किया करते थे। इस अनुभव से, आप यह निर्धारित कर पाएँगे कि आपने मोक्ष का पहला चरण प्राप्त किया है या नहीं। आप इसे जान सकते हैं क्योंकि आप एक आत्मा हो और आत्मा इस ब्रह्मांड में सबसे बड़ा न्यायाधीश है। एक जाग्रत आत्मा जो कुछ भी निर्णय ले वह सही होगा क्योंकि वह निष्पक्ष रहता है।
मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ। यह कैसा है कि यदि आप अन्य किसी के घर में घुस जाएँ, तो मन में घबराहट होती है या नहीं? होती ही है। ‘अभी कोई निकाल बाहर करेगा, धमकाएगा’, ऐसा भय निरंतर रहा ही करता है। लेकिन यदि अपने ही घर में बैठे हैं, तो है कोई चिंता? शांति ही होगी न अपने घर में तो? वैसा ही है यह। ‘चंदूलाल’, आपका घर नहीं हो सकता। आप खुद क्षेत्रज्ञ पुरुष हो और भ्राँति से पराये क्षेत्र में क्षेत्राकार हो गए हो। ‘पर’ के स्वामी बन बैठे हो और ऊपर से, पर के भोक्ता बन बैठे हो। इसलिए निरंतर चिंता, उपाधि, आकुलता और व्याकुलता रहा करती है।
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