प्रश्नकर्ता : तो यह सब चलाता कौन है?
दादाश्री : यह सब तो, यह कर्म का नियम ऐसा है कि आप जो कर्म करते हो, उनके परिणाम अपने आप कुदरती रूप से आते हैं।
प्रश्नकर्ता : इन कर्मों के फल हमें भुगतने पड़ते हैं, वह कौन तय करता है? कौन भुगतवाता है?
दादाश्री : तय करने की ज़रूरत ही नहीं है। कर्म 'इटसेल्फ' करते रहते हैं। अपने आप खुद ही हो जाता है।
प्रश्नकर्ता : तो फिर कर्म के नियम को कौन चलाता है?
दादाश्री : 2H और O इकट्ठे हो जाएँ तो बरसात हो जाती है, वह कर्म का नियम।
प्रश्नकर्ता : परन्तु किसीने उसे किया होगा न, वह नियम?
दादाश्री : नियम कोई नहीं बनाता है। तब तो फिर मालिक ठहरेगा वापिस। किसीको करने की ज़रूरत नहीं है। इटसेल्फ पज़ल हो गया है और वह विज्ञान के नियम से होता है। उसे हम 'ओन्लि सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स' से जगत् चल रहा है, ऐसा कहते हैं। उसे गुजराती में कहा है कि 'व्यवस्थित शक्ति' जगत् चलाती है।
१) जैसे हम बबूल उगाएँ और फिर उसमें से आम की आशा रखें तो नहीं चलेगा न? जैसा बोते हैं, वैसा फल मिलता है। जैसे-जैसे कर्म किए हैं, वैसा फल हमें भुगतना है। अभी किसीको गालियाँ दीं, उस दिन से गाली देनेवाला इस ताक में ही रहता है कि कब मिले और वापिस दे दूँ। लोग बदला लेते हैं, इसलिए ऐसे कर्म मत करना कि लोग दुःखी हों। आपको यदि सुख चाहिए तो सुख दो।
२) सारा दुःख नासमझी का ही है, इस जगत् में! खुद ने ही खड़ा किया हुआ है सारा, नहीं दिखने से! जले तब कहे न कि भाई, आप क्यों जल गए? तब कहता है, 'भूल से जल गया, क्या जान-बूझकर जलूँगा?' वैसे ही ये सारे दुःख भूल के कारण हैं। सारे दुःख अपनी भूल का परिणाम हैं। भूल चली जाएगी तो हो चुका। अपने ही किए हुए कर्म हैं, इसलिए अपनी ही भूल है। किसी अन्य का दोष इस जगत् में है ही नहीं। दूसरे तो निमित्त मात्र हैं। दुःख आपका है और सामनेवाले निमित्त के हाथों से दिया जा रहा है। पिताजी मर गए और चिट्ठी पोस्टमेन देकर जाता है, उसमें पोस्टमेन का क्या दोष?
३) कर्म का फल और कोई देता ही नहीं। कर्म का फल देनेवाला कोई जन्मा ही नहीं। यहाँ पर सिर्फ खटमल मारने की दवाई पी जाए तो मर ही जाए, उसमें बीच में फल देनेवाले की कोई ज़रूरत नहीं है।फल देनेवाला हो न, तब तो बहुत बड़ा ऑफिस बनाना पड़ता। यह तो साइन्टिफिक तरीके से चलता है। बीच में किसीकी ज़रूरत नहीं है! उसका कर्म परिपक्व होता है तब फल आकर खड़ा ही रहता है, खुद अपने आप ही। जैसे ये कच्चे आम अपने आप ही पक जाते हैं न! नहीं पकते?
४) अपने लोग कर्म किसे कहते हैं? काम-धंधा करे, सतकार्य करें, दानधर्म करें, उन सबको 'कर्म किया' कहते हैं, ज्ञानी उसे कर्म नहीं कहते परन्तु कर्मफल कहते हैं। जो पांच इन्द्रियों से देखे जा सकते हैं, अनुभव किए जा सकते हैं, वे सभी स्थूल में हैं वे कर्मफल यानी कि डिस्चार्ज कर्म कहलाते हैं। पिछले जन्म में जो चार्ज किया था, वह आज डिस्चार्ज में आया, रूपक में आया और अभी जो नया कर्म चार्ज कर रहें हैं , वह तो सूक्ष्म में होता है, उस चार्जिंग पोइन्ट का किसीको भी पता चले ऐसा नहीं है।
Book Name: कर्म का विज्ञान (Page #23 Paragraph #4 to #11 & Page #24 Paragraph #1)
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