प्रश्नकर्ता : तो यह सब चलाता कौन है?
दादाश्री : यह सब तो, यह कर्म का नियम ऐसा है कि आप जो कर्म करते हो, उनके परिणाम अपने आप कुदरती रूप से आते हैं।
प्रश्नकर्ता : इन कर्मों के फल हमें भुगतने पड़ते हैं, वह कौन तय करता है? कौन भुगतवाता है?
दादाश्री : तय करने की ज़रूरत ही नहीं है। कर्म 'इटसेल्फ' करते रहते हैं। अपने आप खुद ही हो जाता है।
प्रश्नकर्ता : तो फिर कर्म के नियम को कौन चलाता है?
दादाश्री : 2H और O इकट्ठे हो जाएँ तो बरसात हो जाती है, वह कर्म का नियम।
प्रश्नकर्ता : परन्तु किसीने उसे किया होगा न, वह नियम?
दादाश्री : नियम कोई नहीं बनाता है। तब तो फिर मालिक ठहरेगा वापिस। किसीको करने की ज़रूरत नहीं है। इटसेल्फ पज़ल हो गया है और वह विज्ञान के नियम से होता है। उसे हम 'ओन्लि सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स' से जगत् चल रहा है, ऐसा कहते हैं। उसे गुजराती में कहा है कि 'व्यवस्थित शक्ति' जगत् चलाती है।
Book Name: कर्म का विज्ञान (Page #23 Paragraph #4 to #11 & Page #24 Paragraph #1)
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