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आध्यात्मिकता क्यों महत्वपूर्ण है?

आध्यात्मिकता का अर्थ है आत्मा को जानना, जो हमारे भीतर है उस चेतना को पहचानना। यह पहचानना क्यों आवश्यक है? हमारे आधुनिक जीवन में आध्यात्मिकता का क्या महत्त्व है? चलिए जानते है!

आज लोगों को दुःख, दर्द, तनाव, डिप्रेशन, निराशा, थकान, चिंता, नुकसान, असफलता, बीमारी, हानि, चोट, दुःख, उदासीनता, दर्द, मानसिक बीमारी, अकेलापन, नफरत और क्रोध आदि से पीड़ित देखना आम हो गया है। स्वरूप की अज्ञानता ही सभी दुखों का मूल कारण है - यही सभी समस्याओं का मूल कारण है। इस संसार में सभी उलझनें स्वरूप की अज्ञानता के कारण ही उत्पन्न हुई हैं।

आत्मा वही शुद्धात्मा हैं! आत्मा अविनाशी है; वह अनंत ज्ञानवाला, अनंत दर्शनवाला, अनंत शक्ति वाला है और अनंत सुख का धाम है; और यह संपूर्ण ब्रह्मांड को प्रकाशित करने में सक्षम है। फिर भी हम असहायता, दुःख, दर्द और असलामती का अनुभव करते हैं।

इसका कारण क्या है? ऐसा इसलिए है क्योंकि हम खुद को नहीं जानते; हम अपनी शक्तिओं को नहीं जानते; हम अपनी स्वसत्ता को नहीं जानते। अध्यात्म हमें वह भान करवाता है; इस प्रकार, सभी समस्याओं से मुक्त ऐसे शांतिपूर्ण और सुखी जीवन के लिए यह महत्त्वपूर्ण है। इससे यह पता चलता है कि हमारे आधुनिक जीवन में आध्यात्मिकता क्यों जरूरी है।

आध्यात्मिकता "मै कौन हूँ" का भान करवाता है

आध्यात्मिकता सही समझ पर आधारित है। इस संसार में, अनेक धर्म हैं। बहुत से लोग कहते हैं कि हमें कोई मंत्र जाप करना चाहिए, भगवान की पूजा करनी चाहिए और उपवास करना चाहिए। हालाँकि, उपवास या मंत्र जाप से हमें आत्मज्ञान प्राप्त नहीं होगा। फिर भी, ये सभी क्रियाएँ या कर्मकांड आध्यात्मिक प्रगति के लिए ही हैं; जो हर व्यक्ति को प्रगति करने में मदद करते हैं।

अंत में, जब हमें आत्मज्ञान मिलता है, हम सम्यक् ज्ञान प्राप्त करते हैं जो हमें मैं कौन हूँ उसका अनभुव करवाते है। यह आध्यात्मिकता की एक महत्वपूर्ण चाबी है। सच्चिदानंद है! शुद्ध उपयोग में रहनेवाले को संसार की कोई भी चीज़ का असर नहीं होता।

आध्यात्मिकता से, सम्यक् दर्शन की प्राप्ति होती है

मोक्ष के लिए, आपको बस अपना दृष्टिकोण बदलना होगा और आध्यात्मिकता इसे बदल सकती है।

सम्यक् दर्शन हो जाएगा, तब अध्यात्म में आया हुआ कहलाएगा, वर्ना नहीं। फिर भले ही वह कितनी ही पुस्तकें पढ़े तो भी वह अध्यात्म में नहीं आ पाएगा। सम्यक् दर्शन हो जाए, 'जैसा है वैसा' दर्शन हो जाए तब वह अध्यात्म में आता है।

यह उलटी दृष्टि क्या करती है? “इसने मेरा नुकसान किया, इसने मेरा फायदा किया, इसने मेरा अपमान किया, मुझे दु:ख पहुँचाया, इसने मुझे सुख दिया’ आदि दिखलाती है।“

परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं, “वास्तव में, बाहर दु:ख देनेवाला या सुख पहुँचानेवाला कोई है ही नहीं। सभी अंदर ही हैं। क्रोध-मान-माया-लोभ वे ही दु:ख देनेवाले हैं और वे ही आपके दुश्मन हैं। बाहर कोई दुश्मन नहीं हैं। बाहर तो निमित्त हैं। सम्यक्त्व हो जाए तो समझना कि हल निकल आया।“

आत्मसाक्षात्कार के बाद, हम अपनी गलतियों को 'देख' सकते हैं। गलतियाँ अब हमारी 'दृष्टि' में आने लगती हैं!! जैसे-जैसे गलतियों को देखने की यह दृष्टि खुलती है, हमें अधिक से अधिक गलतियाँ दिखाई देने लगती हैं। हम छोटी-छोटी गलतियाँ भी दिखने लगती हैं। यह एक और कारण है कि आध्यात्मिकता हमारे जीवन में क्यों महत्वपूर्ण है।

एक बार जब हम अपने सच्चे स्वरूप का अनुभव कर लेंगे, तब हमारी दृष्टि अपने आप शुद्ध हो जाएगी। फिर हम दूसरों में भी शुद्धात्मा देख सकते हैं। इसके आलावा, हम अपने भीतर के अहंकार, अभिमान, क्रोध आदि के दोष भी देख सकते हैं। वास्तविक स्वरूप के प्रकट होने के कारण हमें अपने दोष खुद ही दिखाई देने लगते हैं। जब हम अपने दोष देखते हैं, तो वे अपने आप दूर हो जाते हैं और हम अधिक से अधिक शुद्ध होते जाते हैं।

आध्यात्मिकता सभी समस्याओं का हमेशा के लिए समाधान देती है

जिस घर में प्रकाश नहीं है और जहाँ हम एक छोटा सा दीया जलाकर अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे, वहाँ क्या पूरा प्रकाश आने पर कोई बदलाव आएगा? हाँ, बिल्कुल! हम खाना-पीना जारी रखेंगे लेकिन एक बदलाव के साथ। पहले हम दर-दर की ठोकरें खाते थे। पति-पत्नी के बीच मतभेद के साथ-साथ विचारों में मतभेद और बच्चों के साथ क्लेश भी होते थे। अब, आत्मसाक्षात्कार के बाद 'मैं शुद्धात्मा हूँ' के स्वरूप में रहने से सभी टकराव दूर हो जाते हैं!

हमारा खाना-पीना वही रहेगा और इसी तरह हमारी पत्नी और बच्चे भी रहेंगे। हमारा जीवन पहले जैसा ही रहेगा, लेकिन हमारे जीवन से सारे टकराव दूर हो जाएँगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि अब हमारा घर में पूर्ण प्रकाश से भर गया है!

आइए नीचे दी गई बातचीत से समझें कि परम पूज्य दादाश्री आध्यात्मिकता प्राप्त करने के लिए ज्ञानी की आवश्यकता के बारे में क्या कहते हैं।

प्रश्नकर्ता : मोक्ष प्राप्त करने का रास्ता क्या होता होगा? किसके पास से मोक्ष मिल सकेगा?

दादाश्री : मोक्ष तो सिर्फ ‘ज्ञानी पुरुष’ के पास से ही मिलता है। जो मुक्त हो गए हों वे ही आपको मुक्त कर सकते हैं। खुद बंधा हुआ दूसरे को किस तरह छुड़वा सकेगा? यानी हमें जिस दुकान पर जाना हो उस दुकान पर जाने की छूट है, परन्तु वहाँ पर पूछना कि, ‘साहब, मुझे मोक्ष देंगे?’ तब वह कहे कि, ‘नहीं, हमारी मोक्ष देने की तैयारी नहीं है।’ तो हम दूसरी दुकान, तीसरी दुकान पर जाएँ। किसी जगह पर हमें ज़रूरत का माल मिल जाएगा, पर एक ही दुकान पर बैठे रहें तो? तो फिर टकराकर मर जाएँगे। अनंत जन्मों से ऐसे ही भटकते रहने का कारण ही यह है कि हम एक ही दुकान पर बैठे रहे हैं, खोजबीन भी नहीं की। ‘यहाँ बैठने से हमें मुक्ति का अनुभव होता है या नहीं? अपने क्रोध-मान-माया-लोभ कम हुए?’ वह भी नहीं देखा। विवाह करना हो तो पता लगाता है कि कौन-सा कुल है, ननिहाल कहाँ है? सब ‘रियलाइज़’ करता है। पर इसमें ‘रियलाइज़’ नहीं करता। कितना बड़ा ‘ब्लंडर’ (मूलभूत भूल) कहलाएगा यह?

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