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ब्रह्मचर्य व्रत के बारे में क्या तथ्य है?

विषय ऐसी वस्तु है न कि अकेले ज्ञानी पुरुष की आज्ञा से ही परिवर्तन होता है। फिर भी यह व्रत सभी को नहीं दिया जाता। हमने कुछ लोगों को ही यह दिया है। आइए, हम ब्रह्मचर्य व्रत के पीछे का तथ्य जाने:

  • ज्ञानी की आज्ञा से सब कुछ बदल जाता है। सामनेवाले को केवल निश्चय ही करना है कि चाहे कुछ भी हो पर मुझे यह चाहिए ही नहीं। तब फिर हम उसे आज्ञा देते हैं और हमारा वचनबल काम करता है। इसलिए फिर उसका चित्त अन्यत्र नहीं जाता।
  • ये लोग व्रत लेते हैं। व्रत लेने से क्या होता है कि उसके बाद मन ठिकाने रहता है। मन बाउन्ड्री में रहता है और जो व्रत नहीं लेते तो उनका चित्त सारा भटकता ही रहता है!
  • भले ही कितना कष्ट सहना पड़े, लेकिन फिर भी वह स्थिर रहता है, तभी ब्रह्मचर्य का व्रत रहेगा । ब्रह्मचर्य व्रत तभी रहता है , जब वह सम्पूर्ण शुद्धता से ज्ञानी की आज्ञा में रहे।
  • ब्रह्मचर्य व्रत सभी को लेने की आवश्यकता नहीं होती। वह तो जिसके उदय में आए, भीतर ब्रह्मचर्य के बहुत विचार आते रहते हों, तो फिर व्रत लें।
  • ब्रह्मचर्य व्रत साल भर के लिए या छ: महीने के लिए भी ले सकते हैं। हमें ब्रह्मचर्य के बहुत सारे विचार आते रहते हों, उस विचार को हम दबाते रहें तब भी उसके विचार आते रहते हों, तभी ब्रह्मचर्य व्रत माँगना; वर्ना यह ब्रह्मचर्य व्रत माँगने जैसा नहीं है। यहाँ ब्रह्मचर्य व्रत लेने के पश्चात् उसे तोड़ना महान अपराध है। विषय का कभी भी विचार नहीं आए, वह ब्रह्मचर्य महाव्रत।
  • ज्ञानी पुरुष तुम्हें ब्रह्मचर्य के लिए आज्ञा देते हैं, उसमें अगर तुम से गलती हो जाए तो उसकी जोखिमदारी बहुत भयंकर है। तुम यदि गलती नहीं करोगे तो फिर सबकुछ हमारी जोखिमदारी पर! तुम मेरी आज्ञापूर्वक जो कुछ भी करोगे उसमें तुम्हारी जोखिमदारी नहीं और मेरी भी जोखिमदारी नहीं! तुम आज्ञापूर्वक करोगे तो तुम्हारा अहंकार खड़ा नहीं होगा। इसलिए तुम्हारी जोखिमदारी नहीं आएगी और तो फिर आज्ञा देनेवाले की जोखिमदारी तो है ही न?!
  • यदि यह ब्रह्मचर्य व्रत लेकर संपूर्ण करेक्ट पालन करेगा, तो वल्र्ड में अनोखा स्थान प्राप्त करेगा और एकावतारी बनकर यहाँ से सीधा मोक्ष जाएगा। हमारी आज्ञा में बल है, ज़बरदस्त वचनबल है। यदि तू कच्चा नहीं पड़ेगा तो व्रत नहीं टूटेगा, इतना अधिक वचनबल है।
  • इस काल में तो पूरी ज़िंदगी का ब्रह्मचर्य देने जैसा नहीं है। देना ही जोखिम है। साल भर के लिए दे सकते हैं। बाकी पूरी ज़िंदगी की आज्ञा ली और यदि वह गिर जाए न, तो खुद तो गिरेगा लेकिन ज्ञानी पुरुष को भी निमित्त बनाएगा।
  • व्रत लेना, व्रत का पालन करना, वह कोई ऐसी वैसी बात नहीं है। ब्रह्मचर्यव्रत लेना, वह तो अगर उसका पूर्वकर्म का उदय होगा तो संभाल सकता है। पूर्व में भावना की होगी तो संभाल सकता है, या फिर अगर आप संभालने का निश्चय करोगे तो संभाल सकोगे। आपका निश्चय होना चाहिए और ज्ञानी पुरुष का वचनबल साथ में हैं, तो यह संभाला जा सके, ऐसा है।
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