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विषय के जोखिम क्या हैं ?

जब भी हम खतरे की बात सुनते है, हम सभी स्वयं सतर्क हो जाते है और हम खुद अपने आप को और अपने परिवार जनको सुरक्षित करने के लिए उसी समय सावधान हो जाते है | लेकिन जब विषय विकार की बात आती है तब ? क्या हम सावधान है ? क्या हम सतर्क हैं? नहीं, क्यों ? क्योंकी हमने विषय विकार से होने वाले जोखिम और नुकशान के बारे में कभी भी नहीं सुना है |

परम पूज्य दादा भगवान, ज्ञानी पुरुष ने विषय के जोखिम और विषय विकार के नुकशान के बारे में विस्तार से बताया है | जो यहाँ है:  

  • पति पत्नी के बिच में झगड़े कहाँ होते है? जब तक एक दुसरे से मोह और आकर्षण रहता है | कब तक झगड़े रहते है ? जब तक परस्पर विषय विकार है, तब तक टकराव होता रहता है | 
  • एक ही बार विषय भोग में करोड़ों जीव मर जाते हैं | यह जबरदस्त हिंसा है | इस बात का अहसास नहीं और लोग विषय सुख में सबसे ज्यादा आनंद मानते हैं। वे यह नहीं समझते कि जीवन अनमोल है और विषय सुख को अंतिम उपाय सोचकर इसमे नहीं खोना चाहिए| 
  • विषय सुख के बाद शारीरिक बल, मानसिक बल और वचन बल कम हो जाता है | 
  • ये सारे रोग ही अब्रह्मचर्य की वज़ह से है । 
  • देहबल, मनोबल, बुद्धिबल और अहंकार बल अब्रह्मचर्य से खत्म हो जाते है |  
  • यह आत्मा पर अज्ञानता के आवरण बढ़ाता है | 
  • विषय भोग के बाद व्यकित बेहोश होता है| 
  • विषय में चित्त फँसा कि उतना आत्मऐश्वर्य टूट गया | ऐश्वर्य टूटा तो जानवर (जैसा) हो गया | 
  • मनुष्य अपना मानवता को नष्ट कर देता है | 
  • ब्रह्मचर्य के पालन बिना केवलज्ञान की प्राप्त नहीं कर सकता है |
  • विषय आसक्ति से उत्पन्न होता है, फिर उससे से विकर्षण होता है | जब विकर्षण होता है तब दुसरे जन्म के लिए बैर बँधता है | इसलिए विषय बैर का कारण है 
  • जो खाना खाते हैं, उसका अर्क होकर अंत में अब्रह्मचर्य के कारण खतम हो जाता है |  
  • विषय से अधोगति ही है | क्योकि एक ही बार के विषय से करोडो जीव मर जाते है | अनजाने में भी, वह बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी ले लेता है | 
  • यह विषय ऐसी वस्तु है कि एक दिन का विषय तीन दिनों तक किसी भी प्रकार की एकाग्रता नहीं होने देता। एकाग्रता डाँवाँडोल होती रहती है। जब कि महीना भर विषय का सेवन नहीं करें तो, उसकी एकाग्रता डाँवाँडोल नहीं होती।  
  • विषय का मोह ऐसा है कि निर्मोही को भी मोही बना दे। अरे, साधु-आचार्यों को भी ठंडा कर दे!  
  • एक ही बार विषय भोगने में करोड़ों जीव मर जाते हैं | यह सभी जीव एक या दुसरे रूप में बैर लेते है | 
  • विषय की बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है | बहुत बड़ी जोखिमदारी है तो वह विषय की है | यह जैन धर्म में उल्लिखित सभी पाँच महाव्रतों (सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य,चोरी ,अपरिग्रह) भंग कर देता है |  
  • जितने श्वासोच्छवास अधिक खर्च हों, उतना आयुष्य कम होता है। श्वासोच्छवास किसमें अधिक खर्च होते हैं? भय में, क्रोध में, लोभ में, कपट में और उनसे भी ज्यादा स्त्री संग में | एस प्रकार आयुष्य कम होता है। 

यह सब तो हक्क के विषय के जोखिम है। लेकिन अणहक्क (बिना हक्क का, अवैध) के जोखिम और भी गंभीर है |

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