ॐ नमो भगवते वासुदेवाय...
प्रश्नकर्ता: फिर ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ समझाइए।
दादाश्री: वासुदेव भगवान! अर्थात् जो वासुदेव भगवान नर में से नारायण बने, उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ। जब नारायण हो जाते हैं, तब वासुदेव कहलाते हैं।
प्रश्नकर्ता: श्रीकृष्ण, महावीर स्वामी वे सभी क्या हैं?
दादाश्री: वे सभी तो भगवान हैं। वे देहधारी रूप में भगवान कहलाते हैं। वे भगवान क्यों कहलाते हैं कि भीतर संपूर्ण भगवान प्रकट हुए हैं। इसलिए हम उन्हें देह सहित भगवान कहते हैं।
और जो महावीर भगवान हुए, ऋषभदेव भगवान हुए वे पूर्ण भगवान कहलाते हैं। कृष्ण भगवान तो वासुदेव भगवान कहलाते हैं, उसमें कोई शक नहीं है न? वासुदेव यानी नारायण। नर में से जो नारायण हुए ऐसे भगवान प्रकट हुए थे। उन्हें हम भगवान कहते हैं।
नर में से नारायण
प्रश्नकर्ता: ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का ज़रा विशेष रूप से स्पष्टीकरण कीजिए।
दादाश्री: ये श्रीकृष्ण भगवान वासुदेव हैं, ऋषभदेव भगवान के समय से लेकर आज तक वैसे ही नौ वासुदेव हो चुके हैं। वासुदेव यानी जो नर में से नारायण बनें, उस पद को वासुदेव कहते हैं। तप-त्याग कुछ भी नहीं। उनके तो मारधाड़-झगड़े-तूफान सबकुछ उनके प्रतिपक्षी के साथ होते हैं। इसीलिए तो उनके प्रतिपक्षी के रूप में प्रतिवासुदेव जन्म लेते हैं। वे प्रतिनारायण कहलाते हैं। उन दोनों के झगड़े होते रहते हैं। और तब नौ बलदेव भी होते हैं। कृष्ण वासुदेव कहलाते हैं और बलराम (श्रीकृष्ण के बड़े भाई) वे, बलदेव कहलाते हैं। भगवान रामचंद्रजी वासुदेव नहीं कहलाते, रामचंद्रजी बलदेव कहलाते हैं। लक्ष्मण वासुदेव कहलाते हैं और रावण प्रतिवासुदेव कहलाते हैं। रावण पूज्य हैं। रावण खास पूजा करने योग्य हैं। लोग उनके पुतले जलाते हैं। भयंकर तरीक़े से जलाते हैं न! देखो न! ऐसा उल्टा ज्ञान जहाँ फैला हुआ है।
इस काल के वासुदेव यानी कौन? कृष्ण भगवान। इसलिए यह नमस्कार कृष्ण भगवान को पहुँचते हैं। उनके जो शासनदेव होंगे, उन्हें पहुँचते हैं।
वासुदेव पद, अलौकिक
वासुदेव तो कैसे होते हैं? एक आँख से ही लाखों लोग डर जाएँ ऐसी तो वासुदेव की आँखें होती हैं। उनकी आँखें देखकर ही डर जाएँ। वासुदेव पद का बीज कब पड़ेगा? वासुदेव होनेवाले हों तब कईं अवतार पहले से ऐसा प्रभाव होता है। वासुदेव जब चलते हैं तो धरती धमधमती है! हाँ, धरती के नीचे से आवाज़ आती है। अर्थात् वह बीज ही अलग तरह का होता है। उनकी हाज़िरी से ही लोग इधर-उधर हो जाते हैं। उनकी बात ही अलग है। वासुदेव तो मूलत: जन्म से ही पहचाने जाते हैं कि वासुदेव होनेवाले हैं। कई अवतारों के बाद वासुदेव होनेवाले हों, उसका संकेत आज से ही मिलने लगता है। तीर्थंकर नहीं पहचाने जाते मगर वासुदेव पहचाने जाते हैं। उनके लक्षण ही अलग तरह के होते हैं। प्रतिवासुदेव भी ऐसे ही होते हैं।
प्रश्नकर्ता: तो तीर्थंकर पिछले अवतारों में कैसे पहचाने जाते हैं?
दादाश्री: तीर्थंकर सीधे-सादे होते हैं। उनकी लाइन ही सीधी होती हैं। उनके दोष होते ही नहीं, उनकी लाइन में दोष आते ही नहीं और दोष आ भी जाएँ तो किसी भी तरह से (ज्ञान से) वापस, वहीं के वहीं आ जाते हैं। वह लाइन ही अलग है। जब कि वासुदेव तथा प्रतिवासुदेव में तो कईं अवतार पहले से ही ऐसे गुण होते हैं। वासुदेव होना यानी नर में से नारायण हुए कहलाते हैं। नर से नारायण यानी किस फेज़ से, जैसे कि जब पड़वा होता है तभी से पता नहीं चल जाता कि अब पूनम होनेवाली है। उसी प्रकार कईं अवतार पहले से पता चल जाता है कि ये वासुदेव होनेवाले हैं।
नहीं बोलना उल्टा, कृष्ण या रावण का
ये जो तिरसठ शलाका पुरुष कहलाते हैं न, उन पर भगवान ने मुहर लगाई कि ये सारे भगवान होने लायक हैं। इसलिए हम अकेले अरिहंत को भजें और इन वासुदेव को नहीं भजें तो वासुदेव भविष्य में अरिहंत होनेवाले हैं। यदि वासुदेव का उल्टा बोलेंगे तो फिर अपना क्या होगा? लोग कहते हैं न, ‘कृष्ण को ऐसा हुआ है, वैसा हुआ है...’ अरे, ऐसा नहीं बोलते। उनके बारे में कुछ मत बोलना। उनकी बात अलग है और तू जो सुनकर आया वह बात अलग है। क्यों जोखिमदारी मोल लेता हें? जो कृष्ण भगवान अगली चौबीसी में तीर्थंकर होनेवाले हैं, जो रावण अगली चौबीसी में तीर्थंकर होनेवाले हैं, उनकी बात करके जोखिमदारी क्यों मोल लेते हो?
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