अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें“यदि खुद के स्वरूप को पहचान लिया तो फिर वह, खुद ही परमात्मा है |”
~ परम पूज्य दादा भगवान
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
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आइयें हम परम पूज्य दादाश्री के साथ निम्नलिखित संवाद के माध्यम से, अरिहंत भगवान के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करते हैं. . .
प्रश्नकर्ता : क्या अरिहंत देहधारी होते है?
दादाश्री : हाँ, देहधारी ही होते है । अगर देहधारी नहीं है, तो उन्हें अरिहंत नहीं कहा जा सकता। उनका एक शरीर (देहधारी) और एक नाम (नामधारी) है।
प्रश्नकर्ता : क्या अरिहंत का शीर्षक चौबीस तीर्थंकरों के लिए उपयोग किया गया है?
दादाश्री : नहीं, वर्तमान तीर्थंकर ही अरिहंत भगवान कहलाते हैं। महावीर भगवान तो वहाँ पर मोक्ष में विराजमान हैं। वैसे लोग कहते हैं कि 'हमारे चौबीस तीर्थंकर (ही अरिहंत है) और एक तरफ पढ़ते हैं कि 'नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं।' तब मैं उनसे कहता हूँ कि 'ये दो हैं?' तब कहते हैं कि, 'हाँ, दो हैं।' मैंने कहा, 'अरिहंत के बारे में बताइए ज़रा।' तब कहते हैं कि, 'ये चौबीस तीर्थंकर ही अरिहंत है।' अरे, वे तो सिद्ध हो गए हैं। वे तो अभी सिद्धक्षेत्र में हैं। आप सिद्ध को पुनः अरिहंत बुलाते हो? अरिहंत किन्हें कहते होंगे ये लोग?
प्रश्नकर्ता : वे सब चौबीस तीर्थंकर तो सिद्ध हो चुके हैं।
दादाश्री : तो फिर आप कहते नहीं हो लोगों से कि भाई, जो सिद्ध हो चुके हैं, उन्हें अरिहंत क्यों बुलाते हो? ये तो दूसरे पद में, सिद्धाणं में, आते हैं। अरिहंत का पद खाली रहा, उसीसे यह परेशानी है न! इसीलिए हम कहते हैं कि अरिहंत को स्थापित करो, सीमंधर स्वामी को स्थापित करो। ऐसा क्यों कहते हैं आपको समझ में आया? ये चौबीस तीर्थंकर सिद्ध कहलाएँगे या अरिहंत? अभी उनकी दशा सिद्ध है या अरिहंत है?
प्रश्नकर्ता : अभी सिद्धगती में हैं।
दादाश्री : सिद्ध हैं न? आपको विश्वास है न? शत-प्रतिशत है न?
प्रश्नकर्ता : हाँ, शत-प्रतिशत।
दादाश्री : इसलिए उन्हें सिद्धाणं में रक्खा है। सिद्धाणं में पहुँच गए हैं। उसके बाद अब अरिहंताणं में कौन हैं? अरिहंताणं यानी प्रत्यक्ष, हाज़िर होने चाहिए। लेकिन अभी मान्यता उलटी चल रही है। चौबीस तीर्थंकरों को अरिहंत कहा जाता है। लेकिन यदि सोचा जाए तो वे लोग तो सिद्ध हो चुके हैं। इसलिए जब 'नमो सिद्धाणं' बोलें तो उसमें वे आ ही जाते हैं, तब अरिहंत का विभाग बाकी रहता है। इसलिए पूरा नमस्कार मंत्र परिपूर्ण नहीं होता और अपूर्ण रहने से उसके फल की प्राप्ति नहीं होती। यानी कि अभी वर्तमान तीर्थंकर होने चाहिए। अर्थात् वर्तमान तीर्थंकर सीमंधर स्वामी को अरिहंत मानें, तभी नमस्कार मंत्र पूर्ण होगा। चौबीस तीर्थंकर तो सिद्ध हो चुके हैं, वे सभी 'नमो सिद्धाणं' में आ जाते हैं। जैसे कोई कलेक्टर हो और उनके गवर्नर होने के पश्चात् हम उन्हें कहें कि, 'कलेक्टर साहब यहाँ आइए।' तो (उनको) कितना बुरा लगेगा, नहीं?
प्रश्नकर्ता : लगेगा ही।
दादाश्री : उसी प्रकार सिद्ध को यदि अरिहंत मानें तो बड़ा भारी नुकसान होता है। उनका नुकसान नहीं होता, क्योंकि वे तो वितराग हैं, लेकिन हमारा भारी नुकसान होता है, ज़बरदस्त नुकसान होता है।
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