बरते वर्तमान में सदा
वर्तमान में रहना यही व्यवस्थित
मैं आपसे कहता हूँ कि वर्तमान में रहना सीखिए।
आप सभी को वर्तमान में रहने के लिए सारे रक्षण दिए हैं और हम बिना रक्षण के रहते हैं।
प्रश्नकर्ता: वर्तमान में कैसे रहा जाए?
दादाश्री: भूतकाल को भूला देने पर! भूतकाल तो गया, उसे आज याद करें तो क्या हो? वर्तमान का मुनाफा खो दें और (बीती बातों का) जो घाटा है सो तो है ही।
भविष्यकाल तो व्यवस्थित के हवाले किया, और भूतकाल तो हो चूका है। अब आप कहेंगे, ‘भूतकाल की जो भी फाइलें रही हों उसका इस समय निपटारा नहीं करना है क्या?’ तो जवाब है, ‘नहीं। वे फाइलें याद आए तब उसे कह देना कि रात को दस-ग्यारह के बीच आना। एक घंटे का समय रखा है, उस समय आना ताकि निपटारा कर देंगे, किंतु इस समय नहीं।’ इस समय तो, यदि पैसों का नुकसान हो रहा हो तब भी वर्तमान नहीं गँवाना चाहिए। अर्थात् कहाँ रहना चाहिए?
प्रश्नकर्ता: वर्तमान में।
दादाश्री: हाँ बराबर है। ‘थोड़ी देर पहले आपने मुझसे ऐसा कहा’, इस प्रकार उस बात को यदि मैं याद करूँ तो इस समय जो वर्तमान है उसे भी खो दूँगा। जो हो गया सो हो गया, उसका निपटारा वहाँ उसी समय कर डालना।
उदाहरण के तौर पर, बाहरगाँव जाना था और आज की तारीख का केस था, बहुत जल्दी थी। किंतु स्टेशन पहुँचे कि गाड़ी छूट गई और आप नहीं जा पाए। अब, वह हो गया भूतकाल। और अब कॉर्ट में क्या होगा वह है व्यवस्थित के ताबे में, इसलिए आप वर्तमान में रहें! हमें तो ऐसा पृथक्करण तुरंत ही हो जाता है। हमें ‘ऑन द मोमेन्ट’ सारा ज्ञान वहाँ पर हाजि़र हो जाए, आपको ज़रा देर लगेगी।
प्रश्नकर्ता: आपके साथ पहले एक बात हुई थी कि, ‘व्यवस्थित एट-ए-टाइम हाजि़र रहना चाहिए।’
दादाश्री: पूरा ज्ञान, पाँचों वाक्य (पाँच आज्ञा) हाजि़र रहने चाहिए। जो हाजि़र रहे, वही ज्ञान कहलाए।
प्रश्नकर्ता: हम जानना चाहते हैं कि हमारी ऐसी कौन-सी भूल है जिससे एट-ए-टाइम हाजि़र नहीं रहता और बाद में याद आता है? फिर समभाव से निपटारा कर पाते हैं। इस बाबत पर थोड़ा समझाइए न।
दादाश्री: इसमें मूल वस्तु, यानी व्यवस्थित का मतलब क्या है, कि अब अव्यवस्थित कुछ है ही नहीं, और जो भी है वह व्यवस्थित ही है। हमारी लाइफ में अब सब व्यवस्थित ही रहा है इसलिए उस व्यवस्थित की, मतलब भविष्य की चिंता करनी नहीं होती। भूतकाल भूल जाना है और वर्तमान में रहना, वह व्यवस्थित।
हम आम खाते हों या भोजन लेते हों, उस घड़ी हमें यह सत्संग याद नहीं रहता। आप बाहर से आए हों और हमें कोई बताए कि ‘*चंदुभाई आए हैं’, तब भोजन करते-करते उस समय वह आपके आगमन का ज्ञान याद आए तो हम उसे कहेंगे ‘थोड़ी देर के बाद आना, अभी भोजन कर लेने दीजिए।’ आप आए वह तो भूतकाल हो गया। अर्थात् हम वर्तमान में रहें। यदि खाना आया, आम आए तो आराम से थोड़ा खाएँगे मगर चबा-चबाकर.....।
प्रश्नकर्ता: उपयोगपूर्वक।
दादाश्री: हाँ, दूसरा कुछ नहीं, वर्तमान में ही, हम वर्तमान में रहें। इसलिए लोग कहते हैं, ‘दादाजी, आप टेन्शन रहित हैं।’ मैं कहूँ, ‘काहे का टेन्शन? वर्तमान में रहनेवाले को टेन्शन होता होगा कहीं!’ टेन्शन तो, जो भूतकाल में खो जाए उसे होता है, भविष्य की चिंता का पागलपन करे उसे होता है, हमें कैसा टेन्शन?
वर्तमान में रहे, उसे भगवान ने ‘ज्ञानी’ कहा। ‘वर्तमान में बरते सदा सो ज्ञानी जग मांही!’ यानी निरंतर वर्तमान में बरतते रहें। इसलिए मैं वर्तमान में रहता हूँ और आपको वर्तमान में रहना सिखलाता हूँ। और फिर यह नियम से है। भगवान ने वर्तमान में रहने को ही कहा है।
*चंदुभाई = जब भी दादाश्री ' चंदुभाई' या फिर किसी व्यक्ति के नाम का प्रयोग करते हैं, तब वाचक, यथार्थ समझ के लिए, अपने नाम को वहाँ पर डाल दें।
वर्तमान में रखे, ‘व्यवस्थित’!
ज्ञानी तो हमेशा वर्तमान में ही रहते हैं। भूतकाल तो बीत गया। भूतकाल के लिए रोते नहीं है कि एक साल पहले लाख रुपये का घाटा हुआ था। आज उसे याद करके रोते नहीं है। और भविष्य काल तो ‘व्यवस्थित’ के हाथ में है। अत: खुद को वर्तमान में रहना चाहिए।
एक समय बाद, एक सेकन्ड बाद, भविष्य काल कहलाता है और एक सेकन्ड से पहले जो हो गया, वह भूतकाल बन जाता है। लेकिन हमें वर्तमान में रहना चाहिए। जो वर्तमान में रहे उसे और कोई उपयोग रखने की ज़रूरत नहीं है। हाँ, बस। वह सब से बड़ा उपयोग कहलाता है।
प्रश्नकर्ता: वर्तमान में रहना अर्थात् उपयोग में ही आ गया न?
दादाश्री: वर्तमान में रहना, उसी को उपयोग कहते हैं, वही शुद्ध उपयोग। पूरा जगत् अग्रसोच में पड़ा हुआ है। भविष्य की चिंताओं में और दु:खों में ही फँसा है। मेरा क्या होगा? ऐसा हो जाएगा और वैसा हो जाएगा।
प्रश्नकर्ता: अर्थात् इतना अधिक, इसी तरह चौबीसों घंटे सिर्फ भय में ही जीता हो, उसे आत्मा की प्राप्ति कैसे हो सकती है?
दादाश्री: जिसे भय हो उसे कैसे आत्मा की प्राप्ति हो सकती है? लाख जन्मों के बाद भी आत्मा प्राप्त हो सके ऐसा नहीं है। इसलिए कृपालुदेव ने कहा है कि मोक्षदाता मिले, जिनका खुद का मोक्ष हो गया हो, वे ही कर सकते हैं। मोक्षदाता मिलने चाहिए।
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दादावाणी July 2009 (Page #10 - Paragraph #3 to #15, Page #11- Paragraph #1 to #4)
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