अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें21 मार्च |
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
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वास्तव में चिंता करने का क्या मतलब है? चिंता क्या है? आइए, कुछ विचारों को ध्यान में रखते हुए उसी का पता लगाते हैं। हम अपने रोज के जीवन में अनेक परिस्थितियों का सामना करते है और अपने बारे में सोचते है| जैसे...
उपरोक्त परिस्थितियों के आने पर हम क्या करते हैं? हम व्यथित हो जाते हैं, और परिस्थितियों को संभालने में असमर्थ हो जाते हैं | जब कोई विचार, एक निश्चित स्तर से आगे बढ़ जाता हैं, तो उसे चिंता कहते हैं| यह चिंता का सही अर्थ हैं | विचार एक निश्चित स्तर तक किये जाने चाहिए, उसकी सीमा से अधिक नहीं करने चाहिए | जब तक विचार आपको परेशान ना करता हो तो वह सामान्य हैं |एक बार जब विचार निश्चित स्तर से उपर जाकर आपको हैरान या परेशान करने लगे, तो यह चिंता का विषय है | और यह चिंता की एक सामान्य परिभाषा है|
इस तरह ही आपका दिमाग एक साधारण विचार से चिंता और अत्यधिक सोच में चला जाता हैं:
चिंता सारी सच्ची समझ और ज्ञान को अँधा बनाकर तोड़ देती है | आप सावधान रह सकते हैं, लेकिन चिंतित नहीं | सावधान रहना और चिंता करने में बहुत फर्क है| सावधान रहना मतलब जागृत होना और चिंता मतलब विचारो को गहराई से सोचते रहना, जो आपको भीतर से खा जाती हैं |
तो, सरल शब्दों में चिंता का क्या मतलब है? चिंता मतलब लगातार विचार करते रहना की ‘अब मैं क्या करू?’ या, ’अब क्या होगा?’ और चिंता करने से काम में रूकावट आती हैं, सब काम देर से होते हैं |
परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं , “जब आप चिंता करना शुरू करते हैं, तो आपको पता होना चाहिए कि , हाथ में लिया हुआ काम बर्बाद हो जाएगा, और अगर आपको चिंता नहीं है, तो आप निश्चिन्त रहे की आपका काम अच्छा होने वाला है | चिंता किसी भी काम में बाधक है |”
वास्तव में, यह दुनिया ऐसी है कि किसी भी व्यक्ति को किसी भी चीज़ के बारे में चिंता करने की जरूरत ही नहीं है | कुदरत सभी जरूरतों को पूरा करती है| नहाने के लिए पानी, सोने के लिए गद्दा और अन्य सभी आवश्यक चीज़े मिल जाती है बिना उसकी चिंता या विचार किए| यदि कोई प्राकृतिक या सहज रहता है तो, सभी जरूरते पूरी होती ही है।
तनाव और चिंता में क्या अंतर है?
चिंता का अर्थ समजने का दूसरा तरीका यह है की किसी भी परिस्थिति या समस्या को सर्वस्व समझ के चलना| यदि आपकी पत्नी बीमार है, वह आपके जीवन में सब कुछ है, आपकी सारी संपत्ति से बढ़कर है, तो पत्नी कि बीमारी चिंता अपना स्थान जमा लेगी| लेकिन अगर यदि दूसरी ओर पैसा उसके लिए सब कुछ होता और उसकी पत्नी बीमार होती तो वह तनाव का अनुभव करता, उसे चिंता नही होती |
तनाव चिंता के समान है | लेकिन चिंता जैसा नहीं है । तनाव में विचारो की संख्या बढ़ जाती है जबकि चिंता में आप लगातार एक मुद्दे पर विचार करते रहते हो, यह सोचकर की यह ही सब कुछ है | उदाहरण के लिए, ‘अगर यह नौकरी नहीं रही तो क्या होगा? मेरी पत्नी बीमार है, उसका क्या होगा? बच्चे स्कूल नहीं जा रहे, उनका क्या होगा?' तनाव एक ही समय पर सभी तरफ से खिंचतान है |
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