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चिंता क्या है? चिंता करने का मतलब (कारण)क्या है?

वास्तव में चिंता करने का क्या मतलब है? चिंता क्या है? आइए, कुछ विचारों को ध्यान में रखते हुए उसी का पता लगाते हैं। हम अपने रोज के जीवन में अनेक परिस्थितियों का सामना करते है और अपने बारे में सोचते है| जैसे...

  • ‘मेरे पास अपने परिवार का निर्वाह करने के लिए पर्याप्त नहीं है |’
  • ‘मेरी बेटी की शादी नहीं हो रही हैं?'
  • ‘मेरे बेटे का क्या होगा?’
  • ‘अगर यह काम समय पर नहीं होगा,तो क्या होगा?’
  • ‘क्या मैं अपनी परीक्षा में पास हो जाऊंगा?’
  • ‘मेरे दोस्त मेरे बारे में क्या सोचेंगे?’
  • ‘मैं लंबे समय से बीमार हूँ; मेरे साथ क्या होगा?’
  • ‘मेरी पढ़ाई पूरी होने के बाद, क्या मुझे नौकरी मिलेगी?’
  • ‘मैंने अपनी सारी सम्पत्ति खो दी हैं, अब मैं कैसे जिऊंगा?’
  • ‘अगर मैं मर गया तो; मेरे परिवार का क्या होगा?’
  • महीने का अंत बिलकुल करीब है, मैं सारे बिल कैसे चुकाऊंगा?

उपरोक्त परिस्थितियों के आने पर हम क्या करते हैं? हम व्यथित हो जाते हैं, और परिस्थितियों को संभालने में असमर्थ हो जाते हैं | जब कोई विचार, एक निश्चित स्तर से आगे बढ़ जाता हैं, तो उसे चिंता कहते हैं| यह चिंता का सही अर्थ हैं | विचार एक निश्चित स्तर तक किये जाने चाहिए, उसकी सीमा से अधिक नहीं करने चाहिए | जब तक विचार आपको परेशान ना करता हो तो वह सामान्य हैं |एक बार जब विचार निश्चित स्तर से उपर जाकर आपको हैरान या परेशान करने लगे, तो यह चिंता का विषय है | और यह चिंता की एक सामान्य परिभाषा है|

इस तरह ही आपका दिमाग एक साधारण विचार से चिंता और अत्यधिक सोच में चला जाता हैं:

  • जब हम किसी भी परिस्थिति का सामना करते है, तब हमारा मन शुरू में उसके फायदे और नुकशान के बारे में सोचता है|
  • कुछ समय बाद विचार (मन) बदल जाता हैं, और दुःख उत्पन्न होता हैं |
  • जब यह बदला हुआ सोच या विचार, लगातार जारी रहता हैं, तो घुटन होने लगती हैं |
  • विचार अगर ऐसे ही परेशान करते रहें,तो चिंताएँ पैदा होंगी|

चिंता सारी सच्ची समझ और ज्ञान को अँधा बनाकर तोड़ देती है | आप सावधान रह सकते हैं, लेकिन चिंतित नहीं | सावधान रहना और चिंता करने में बहुत फर्क है| सावधान रहना मतलब जागृत होना और चिंता मतलब विचारो को गहराई से सोचते रहना, जो आपको भीतर से खा जाती हैं |

तो, सरल शब्दों में चिंता का क्या मतलब है? चिंता मतलब लगातार विचार करते रहना की ‘अब मैं क्या करू?’ या, ’अब क्या होगा?’ और चिंता करने से काम में रूकावट आती हैं, सब काम देर से होते हैं |

परम पूज्य दादा भगवान कहते हैं , जब आप चिंता करना शुरू करते हैं, तो आपको पता होना चाहिए कि , हाथ में लिया हुआ काम बर्बाद हो जाएगा, और अगर आपको चिंता नहीं है, तो आप निश्चिन्त रहे की आपका काम अच्छा होने वाला है | चिंता किसी भी काम में बाधक है |

वास्तव में, यह दुनिया ऐसी है कि किसी भी व्यक्ति को किसी भी चीज़ के बारे में चिंता करने की जरूरत ही नहीं है | कुदरत सभी जरूरतों को पूरा करती है| नहाने के लिए पानी, सोने के लिए गद्दा और अन्य सभी आवश्यक चीज़े मिल जाती है बिना उसकी चिंता या विचार किए| यदि कोई प्राकृतिक या सहज रहता है तो, सभी जरूरते पूरी होती ही है।

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