प्रेम
सच्चे प्रेम में कोई अपेक्षाए नही रहती, न ही उसमें एक दूसरे की गलतियाँ दिखती है|
सच्चा प्रेम हो तो पूरी ज़िंदगी कोई अपनी पत्नी या बच्चों की गलतियाँ नहीं देखेगा। प्रेममें कोई कभी भी किसी की गलतियाँ नहीं देखता। ज़रा देखिए लोग कैसे एक दूसरें की गलतियाँ देखते हैं। ''आप ऐसे हो।" नहीं, आप ही ऐसे हो। ''दुनिया ने रत्ती भर भी प्रेम नहीं देखा है। ये सब मोह और भ्रांति से आकर्षण हैं।
सच्चा प्रेम कभी बढ़ता भी नहीं और घटता भी नहीं। सच्चे प्रेम में कोई शर्त या उम्मीद नहीं होती।
सांसारिक व्यवहार में सिर्फ प्रेम ही बच्चों, परिवारजनों, सहकर्मियों, सभी को जीत सकता है। बाकी सभी तरीक़े व्यर्थ ही साबित होंगे।
अगर आप पेड़ उगाते हैं, तब उसका भी प्यार से पोषण करना पड़ता है। केवल उसे पानी देकर डाँटने से वह नहीं बढ़ेगा। अगर प्यार से करेंगे, प्यार से बातें करेंगे, तब वह आपको बड़े सुंदर फूल देगा। तो ज़रा सोचिए वह मानव को कितना अधिक प्रभावित कर सकता है।
अगर किसीको सर्वोच्च प्रेम स्वरूप बनाना चाहता है, ऐसा प्रेम जो इस दुनिया में किसी ने न पहले देखा, सुना या अनुभव किया है, ऐसे अविश्वसनीय प्रेम के लिए तो प्रेमावतार ज्ञानीपुरुष की पूजा करनी चाहिए।
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