अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें“यदि खुद के स्वरूप को पहचान लिया तो फिर वह, खुद ही परमात्मा है |”
~ परम पूज्य दादा भगवान
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
अधिक पढ़ेंअहमदाबाद से २० की.मी. की दूरी पर सीमंधर सिटी, एक आध्यात्मिक प्रगति की जगह है| जो "एक स्वच्छ, हरा और पवित्र शहर" जाना जाता है|
अधिक पढ़ेंअक्रम विज्ञानी, परम पूज्य दादा भगवान, द्वारा प्रेरित एक अनोखा निष्पक्षपाति त्रिमंदिर।
घरवालों के साथ 'नफा हुआ' कब कहलाता है कि घरवालों को अपने ऊपर प्रेम आए। अपने बिना अच्छा नहीं लगे, कि कब आएँ, कब आएँ ऐसा लगे। लोग शादी करते हैं पर प्रेम नहीं, यह तो मात्र विषय आसक्ति है। प्रेम हो तो चाहे जितना एक दूसरे में विरोधाभास आए फिर भी प्रेम नहीं जाए। जहाँ प्रेम नहीं हो वह आसक्ति कहलाता है। आसक्ति मतलब संडास! प्रेम तो पहले होता था कि पति परदेश गया हो न, वह वापिस न आए तो पूरी ज़िन्दगी उसमें ही चित्त रहता, दूसरा कोई याद ही नहीं आता। आज तो दो साल पति न आए तो दूसरा पति कर ले! इसे प्रेम कैसे कहा जाए? यह तो संडास है, जैसे संडास बदलते हैं, वैसा! जो गलन है, उसे संडास कहते हैं। प्रेम में तो अर्पणता होती है!
प्रेम मतलब लगनी लगे वह। और वह सारे दिन याद आता रहे। शादी दो रूप में परिणमित होती है, किसी समय आबादी में जाती है तो किसी समय बरबादी में जाती है। प्रेम बहुत छलके तो वापिस बैठ जाता है। जो छलकता है, वह आसक्ति है। इसलिए जहाँ छलके, उससे दूर रहना। लगनी तो आंतरिक होनी चाहिए। बाहर का खोखा बिगड़ जाए, सड़ जाए तब भी प्रेम उतना का उतना ही रहे। यह तो हाथ जल गया हो और हम कहें कि, 'जरा धुलवा दो' तो पति कहेगा कि, 'ना, मुझसे नहीं देखा जाता!' अरे, उस दिन तो हाथ सहला रहा था, और आज क्यों ऐसा? यह घृणा कैसे चले? जहाँ प्रेम है वहाँ घृणा नहीं और जहाँ घृणा है वहाँ प्रेम नहीं। संसारी प्रेम भी ऐसा होना चाहिए कि जो एकदम कम न हो जाए और एकदम बढ़ न जाए। नोर्मेलिटी में होना चाहिए। ज्ञानी का प्रेम तो कभी भी कम-ज़्यादा नहीं होता। वह प्रेम तो अलग ही होता है। उसे परमात्म प्रेम कहते हैं।
प्रेम सब जगह होना चाहिए। पूरे घर में प्रेम ही होना चाहिए। जहाँ प्रेम है, वहाँ भूल नहीं निकालता कोई। प्रेम में भूल नहीं दिखती। और यह प्रेम नहीं, इगोइज़म है। मैं पति हूँ वैसा भान है। प्रेम उसका नाम कहलाए कि भूल न लगे। प्रेम में चाहे जितनी भूल हो तो निभा लेता है। आपको समझ में आता है?
प्रश्नकर्ता : हाँ जी।
दादाश्री : इसलिए भूलचूक हो कि प्रेम के खातिर जाने देनी। इस बेटे पर आपको प्रेम हो न, तो भूल नहीं दिखेगी बेटे की। होगा भई, कोई हर्ज नहीं। प्रेम निभा लेता है सब। निभा लेता है न?!
बाकी, यह तो आसक्ति है सब! घड़ी में पत्नी है, वह गले में हाथ डालती है और चिपक जाती है और फिर घड़ी में वापिस बोलाचाली हो जाती है। 'तूने ऐसा किया, तूने ऐसा किया।' प्रेम में कभी भी भूल नहीं होती। प्रेम में भूल दिखती नहीं। यह तो प्रेम ही कहाँ है? नहीं चाहिए, भाई?
हमें भूल नहीं दिखे तो हम समझें कि इसके साथ प्रेम है हमें! वास्तव में प्रेम होगा इन लोगों को?!
मतलब इसे प्रेम कैसे कहे?!
बाकी, प्रेम देखने को नहीं मिलेगा इस काल में। जिसे सच्चा प्रेम कहा जाता है न, वह देखने को नहीं मिलेगा। अरे, एक व्यक्ति मुझे कहता है कि 'इतना अधिक मेरा प्रेम है, तब भी वह तिरस्कार करती है!' मैंने कहा, 'नहीं है यह प्रेम। प्रेम को तरछोड़ कोई मारे ही नहीं।'
Q. माता का प्रेम इस दुनिया में सर्वोतम प्रेम क्यों है?
A. सच्चा प्रेम तो किसी भी संयोगों में टूटना नहीं चाहिए। इसलिए प्रेम उसका नाम कहलाता है कि टूटे नहीं। यह तो प्रेम की कसौटी है। फिर भी थोड़ा-बहुत प्रेम है, वह...Read More
Q. क्या आपको अपने बच्चों के प्रति प्रेम है?
A. यानी वस्तु समझनी पड़ेगी न! अभी आपको ऐसा लगता है कि प्रेम जैसी वस्तु है इस संसार में? प्रश्नकर्ता : अभी तो, बच्चों को प्यार करते हैं उसे ही प्रेम मानते हैं...Read More
Q. बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए?
A. प्रश्नकर्ता : प्रेम में जितना पावर है, उतना सत्ता में नहीं न?! दादाश्री : ना। पर आपको प्रेम उत्पन्न होता नहीं न? जब तक वह कचरा निकल न जाए! कचरा सब निकलता ...Read More
Q. किशोर बच्चों को सलाह कैसे दे?
A. प्रश्नकर्ता : व्यवहार में कोई गलत कर रहा हो तो उसे टोकना पड़ता है, तो उससे उसे दुख होता है। तो वह किस तरह उसका निकाल करें? दादाश्री : टोकने में हर्ज नहीं...Read More
Q. इन दिनों प्रेम क्यों नाकाम रहा है?
A. प्रश्नकर्ता : ये लड़के-लड़कियाँ प्रेम करते हैं अभी के जमाने में,वे मोह से करते हैं इसलिए फेल होते हैं? दादाश्री : सिर्फ मोह! ऊपर चेहरा सुंदर दिखता है,...Read More
A. प्रश्नकर्ता : दो लोग प्रेमी हों और घरवालों का साथ नहीं मिले तो आत्महत्या कर लेते हैं। ऐसा बहुत बार होता है तो वह प्रेम है, उसे क्या प्रेम माना...Read More
A. प्रश्नकर्ता : परन्तु बहुत बार हमें द्वेष नहीं करना हो तब भी द्वेष हो जाता है, उसका क्या कारण? दादाश्री : किसके साथ? प्रश्नकर्ता : कभी पति के साथ ऐसा हो...Read More
Q. क्या रिश्तों में सच्चा प्रेम होता है?
A. जगत् आसक्ति को प्रेम मानकर उलझता है। स्त्री को पति के साथ काम और पति को स्त्री के साथ काम, ये सब काम से ही खड़ा हुआ है। काम नहीं हो तो अंदर सभी चिल्लाते...Read More
A. प्रश्नकर्ता : मोह और प्रेम, इन दोनों के बीच की भेदरेखा क्या है? दादाश्री : यह पतंगा है न, यह पतंगा दीये के पीछे पड़कर और याहोम हो जाता है न? वह खुद की...Read More
subscribe your email for our latest news and events