अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें21 मार्च |
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
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प्रश्नकर्ता : परन्तु बहुत बार हमें द्वेष नहीं करना हो तब भी द्वेष हो जाता है, उसका क्या कारण?
दादाश्री : किसके साथ?
प्रश्नकर्ता : कभी पति के साथ ऐसा हो तो?
दादाश्री : वह द्वेष नहीं कहलाता। हमेशा ही जो आसक्ति का प्रेम है न, वह रिएक्शनरी है। इसीलिए यदि चिढ़ें तब ये वापिस उल्टे चलते हैं। उल्टे चले इसलिए फिर थोड़े समय अलग रहे कि वापिस प्रेम चढ़ता है। और वापिस प्रेम लगे, तब टकराव होता है। और इसलिए फिर वापिस प्रेम बढ़ता है। जब बहुत अधिक प्रेम हो वहाँ गड़बड़ होंती है। इसलिए जहाँ कोई भी गड़बड़ चला करती हो न, वहाँ भीतर प्रेम है इन लोगों को! वह प्रेम हो तो ही बखेड़ा होता है। पूर्व भव का प्रेम है तो बखेड़ा होता है। बहुत अधिक प्रेम है। नहीं तो बखेड़ा हो ही नहीं न! इस बखेड़े का स्वरूप ही यह है।
उसे लोग क्या कहते हैं? 'टकराव होने से तो हमारा प्रेम होता है।' तब वह बात सच है पर। वहाँ आसक्ति टकराव से ही हुई है। जहाँ टकराव कम है, वहाँ आसक्ति नहीं होती। जिस घर में स्त्री-पुरुष के बीच टकराव कम होता है वहाँ आसक्ति कम है, ऐसा मान लेना। समझ में आए ऐसी बात है?
प्रश्नकर्ता : हाँ। और बहुत आसक्ति हो वहाँ अनदेखाई भी अधिक होती है न?
दादाश्री : वह तो आसक्ति में से ही सभी झमेला खड़ा होता है। जिस घर के दोनों जने आमने-सामने बहुत लड़ते हों न, तो हम समझ जाएँ कि यहाँ आसक्ति अधिक है। इतना समझ जाना। इसलिए फिर हम नाम क्या रखते हैं? 'लड़ते हैं' ऐसा नहीं कहते। तमाचा मारे आमने-सामने, तो भी हम उसे 'लड़ते हैं' ऐसा नहीं कहते। हम उसे तोतामस्ती कहते हैं। तोता ऐसे चोंच मारता है, (वो ऐसे चोंच मारता है) तब दूसरा तोता ऐसे चोंच मारता है, पर अंत में खून नहीं निकालते। हाँ, वह तोतामस्ती! आपने नहीं देखी है तोतामस्ती?
अब ऐसी सच्ची बात सुनें तब हमें अपनी भूलों पर और अपनी मूर्खता पर हँसना आता है। सच्ची बात सुने तब मनुष्य को वैराग आता है कि हमने ऐसी भूलें की?! अरे, भूलें ही नहीं, पर मार भी बहुत खाई!
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