वर्तमान समय में बच्चे विकासशील दुनिया और आधुनिक भोजन से प्रभावित हो रहे हैं। वे करी और रोटी के बजाय कोल्ड ड्रिंक्स और पेस्ट्री, वेफर्स के पेकेट खाना पसंद करते हैं। फास्ट फूड द्वारा स्वास्थ्य पर होने वाले हानिकारक प्रभाव को वे नहीं जानते, जितना हो सके जंक फूड का सेवन कम करना ज़रूरी है। बेहतर है कि छोट़ी उम्र में ही पौष्टिक भोजन खाने की आदत डाली जाए। बचपन से ही खाने-पीने की सही आदत डालने में माता–पिता की अहम भूमिका होती है जिसमें जंक फूड कम मात्रा में खाना भी शामिल है।
बच्चों को प्रतिदिन जंक फूड खाने से दूर रखने हेतु कुछ महत्वपूर्ण टिप्स:–
जंक फूड खाने की मात्रा दिन में एक बार या सप्ताह में एक बार सीमित कर सकते हैं। जंक फूड खाने से पहले फल या सलाद खाने में दें। एक घंटा खेल/ जिम/ जॉगिंग/ डाँस/ स्वैच्छिक कार्य करने की आदत डालें। यदि बच्चा इस तरह का एक छोटा सा प्रयास भी करे तो उसकी प्रशंसा करें।
हम कहते हैं कि बच्चे बहुत ज्यादा जंक फूड खाते हैं। लेकिन अगर आपके पसंद की चॉकलेट आपके सामने पड़ी हो तो क्या आप अपने आप को इसे खाने से रोक पाएँगे? नहीं ना! इसलिए पहले आप तय करें कि घर में अधिक मात्रा में चीनी और वसायुक्त जंक फूड लाना ही नहीं है। स्वास्थ्य के लिए नुकसानकारक खाद्य पदार्थ के बदले स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थ खरीदें। कोई भी परिवर्तन लाना हमेशा चुनौतीपूर्ण ही होता है- विशेष रूप से पहला प्रयास, लेकिन अगर आपका हेतु स्पष्ट है तो यह काम आसान हो जाता है।
आइए देखते हैं परम पूज्य दादाश्री मिठाई के बारे में क्या कहते हैं:
प्रश्नकर्ता: इन छोटे बच्चों को मगदले (एक प्रकार की अधिक घी वाली मिठाई) खिलाते हैं, वह खिला सकते हैं?
दादाश्री: नहीं खिला सकते, मगदल नहीं खिला सकते। छोटे बच्चों को मगदल, गोंदपाक, पकवान ज़्यादा मत खिलाना। उन्हें सादा भोजन देना और दूध भी कम देना चाहिए। बच्चों को यह सब नहीं देना चाहिए। लोग तो दूध से बनी चीज़ें बार-बार खिलाते रहते हैं। ऐसी चीज़ें मत खिलाना। आवेग बढ़ेगा और बारह साल का होते ही उसकी दृष्टि बिगड़ने लगेगी। आवेग कम हो बच्चों को ऐसा भोजन देना चाहिए। ये सब तो सोच में भी नहीं है। जीवन कैसे जीना, इसकी समझ ही नहीं है न!
प्रश्नकर्ताः यह तो दृष्टि ही उलटी है, ‘किस तरह बच्चों को फिट और स्वस्थ बना सकता हूँ?'
दादाश्रीः ‘बच्चों का किस तरह से पालन और नर्सरी करें इसकी समझ ही नहीं उन्हें। इसलिए वे उनका पालन-पोषण करते समय उनका ज़्यादा नुकसान कर देते हैं। लोग सिर्फ शारीरिक दायित्व ही समझते हैं। यह तो नर्सरी है।’ यह बात कहीं नहीं मिलेगी, न ही शास्त्रों में, न ही किताबों में और न ही किसी के दिमाग में। यह तो बोध कला है। यह अद्भुत कला है; नया विज्ञान है। बालक को समझदार बनाना चाहिए। बिना आवेग का, एकदम सुंदर ! आवेग उत्पन्न हों ऐसी खुराक खिलाते हैं और संस्कार ढूँढते हैं, यें दोनों एक साथ कैसे संभव है? उन्हें दाल, भात, रोटी, सब्ज़ी सारी सादी खुराक खिलाएँ। यह बहुत बढ़िया खुराक है, इसमें हर्ज नहीं।
अपनो बच्चों को कम तेल और कम चीनी से घर में बनाया हुआ भोजन दें। उन्हें विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाकर दे ताकि वे उसी का स्वाद लें और अन्य भोजन में रुचि न लें। उन्हें उत्तम गुणवत्ता युक्त भोजन दें। उन्हें ऐसा बढ़िया भोजन दें ताकि वे उसी को खाने के बारे में सोचे। तब वे जंक फूड पसंद नहीं करेंगे और उससे दूर रहेंगे। शायद यही बच्चों को जंक फूड खाने से दूर रखने का सबसे आसान तरीका है।
बच्चे अपने माता-पिता की नकल करते हैं। कैसा आहार लेना चाहिए इसकी सही समझ प्राप्त करें, क्योंकि आप जो भोजन करते हैं उसका सीधा प्रभाव आपकी सोच और वर्तन पर पड़ता है। चलो आध्यात्मिक दृष्टि से समझते हैं कि कौन-सा आहार लाभदायक हैं और कौन सा हानिकारक।
१. फलः फलों खा के जीना सबसे श्रेष्ठ होता है। जो व्यक्ति आहार में सिर्फ फल लेता है उसमें श्रेष्ठ समझ शक्ति होती है।
२. शाकाहारी भोजनः यदि कोई फल खाकर जीवित नहीं रह सकता है, लेकिन सभी तरह के अनाज लेता हो, तो वह शुद्ध शाकाहारी है। यदि वह अंडे नहीं खाता है, वह आलू नहीं खाता है, तो उसकी समझशक्ति उच्च कोटि की होती है।
३. कंदमूलः तीसरे प्रकार में कंदमूल आते हैं, जिससे जागृति मंद पड़ जाती है।
४. अंडे और मांसाहारी आहार: अंडे और मांस खाने से इंसान में विकृत मानसिकता बढ़ती है और मानवीयता कम हो जाती है। मांसाहारी भोजन मनुष्य के लिए सबसे ज्यादा हानिकारक है।
यह जानने के बाद वे माता-पिता जो सात्विक भोजन लेना शुरू कर दें तो बच्चे भी न सिर्फ जंक फूड खाने की आदत में से बाहर निकल सकेंगे बल्कि उनके मूल्यों की प्रशंसा करेंगे और उनके जैसा बनने का प्रयास करेंगे।
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