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जिद्दी एवं गुस्सैल बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करें?

क्या आप अपने बच्चे के गुस्सैल स्वभाव से थक चुके हैं? आपके जिद्दी, गुस्सैल, चिड़चिड़े बच्चों को नियंत्रित करने के कई तरीके हैं। पहला तरीका यह है कि अपने आपको शांत रखें, भावनाओं में ना बहे। परिस्थिति अनुरुप विश्लेषण करने का प्रयास करें जैसे कि सामान्यतः ऐसा कब होता है? क्या ऐसा इसलिए तो नहीं है कि आप अपने बच्चों को अपना महत्वपूर्ण समय (क्वालिटी टाइम) नहीं दे पा रहे हैं, या जब उसे अपनी पसंद का भोजन चाहिए? क्या ऐसा तब होता है जब वह ‘नहीं’ उत्तर स्वीकारने तैयार न हो या अपनी मनमानी करना चाहता हो? ऐसी परस्थितियों से निपटने के लिए आप अलग-अलग तरीके अपना सकते हैं। जैसे कि - हर सप्ताह बच्चों के खर्चे के लिए थोड़े पैसे अलग रख दें जिसे वह अपने लिए खर्च कर सके। इस बात का ध्यान रखें कि वे चाज़ें आप खरीदकर न दें।

नीचे दिए गए परम पूज्य दादाश्री के संवाद के जाने कि ऐसी परिस्थिति में क्या करना चाहिए :

रूठने पर बच्चों को मनाएँ नहीं !

प्रश्नकर्ता : बेटा बात-बात में जल्दी रूठ जाता है।

दादाश्री : महँगा बहुत है न! बहुत महँगा, फिर क्या हो? बेटी सस्ती है, इसलिए बेचारी रूठती नहीं।

प्रश्नकर्ता : ये रूठना क्यों होता होगा, दादाजी?

दादाश्री : ये तो, मनाने जाते हैं न, इसलिए रूठते हैं। मेरे पास रूठें तो जानूँ! मेरे साथ कोई नहीं रूठता। फिर से बुलाऊँगा ही नहीं न! खाए या न खाए, फिर से नहीं बुलाऊँगा। मैं जानता हूँ, इससे बुरी आदत हो जाती है, ज़्यादा बुरी आदत पड़ती है। नहीं, नहीं, बेटा खाना खा ले, बेटा खाना खा ले। अरे, भूख लगेगी तो बेटा अपने आप खा लेगा, कहाँ जानेवाला है? वैसे तो मुझे दूसरी कलाएँ भी आती हैं। बहुत टेढ़ा हुआ हो तो, भूखा हो तो भी नहीं खाएगा। ऐसा हो तब हम उसकी आत्मा के साथ अंदर विधि करते हैं, आपको ऐसा नहीं करना है। आप जो करते हो, वही करो। बाकी मेरे साथ नहीं रूठते और यहाँ मेरे पास रूठकर फायदा भी क्या होगा?

रूठने वाला तब रूठता है, जब सामने वाले को उसकी गरज़ हो !

प्रश्नकर्ता : दादाजी, वह कला सिखा दीजिए न! क्योंकि यह रूठना-मनाना तो सबका रोज़ाना का हो गया है। अगर ऐसी एकाद चाबी दे दें तो सबका निराकरण हो जाए।

दादाश्री : जब हमें बहुत गरज़ हो तो वह ऐसे रूठता है। इतनी गरज़ क्यों फिर?

प्रश्नकर्ता : इसका मतलब क्या, मैं समझा नहीं। बहुत गरज़ हो तो रूठते हैं? किसे गरज़ होती है?

दादाश्री : सामनेवाले की गरज़। रूठनेवाला तब रूठता है, जब सामनेवाले को उसकी गरज़ हो।

प्रश्नकर्ता : अर्थात् हमें गरज़ ही नहीं दिखानी?

दादाश्री : गरज़ होनी ही नहीं चाहिए। किसलिए गरज़? कर्म के उदयानुसार जो होनेवाला हो वह होगा, फिर उसकी गरज़ क्यों रखनी? और फिर कर्म का उदय ही है। गरज़ दिखाने पर जिद्द पर चढ़ते हैं बल्कि।

जब बच्चा गुस्सा और जिद्द करे तब

प्रश्नकर्ता : छोटे बच्चों का गुस्सा दूर करने के लिए उन्हें कैसे समझाएँ?

दादाश्री : उनका गुस्सा दूर कर के क्या फायदा?

प्रश्नकर्ता : हमारे साथ झगड़ा न करें।

दादाश्री : उसके लिए कोई दूसरा उपाय करने के बजाय उनके माता-पिता को इस प्रकार से रहना चाहिए कि उनका गुस्सा बच्चे न देखें। उन्हें गुस्सा करते देखकर बच्चों को लगता है कि ‘मेरे पिताजी करते हैं, तो मैं उनसे सवा गुना गुस्सा करूँ।’

अगर आप बंद करोगे, तो (उनका) अपने आप ही बंद हो जाएगा। मैंने बंद किया है, मेरा गुस्सा बंद हो गया है तो मेरे साथ कोई गुस्सा करता ही नहीं। मैं कहूँ, गुस्सा करो तो भी नहीं करते। बच्चे भी नहीं करते, मैं मारूँ तब भी गुस्सा नहीं करते।

बच्चों को नियंत्रित करने के लिए क्या माता-पिता को गुस्सा करना चाहिए?

प्रश्नकर्ता : बच्चों को सही मार्ग पर लाने के लिए माता-पिता को फर्ज़ तो अदा करना चाहिए न, इसलिए गुस्सा तो करना पड़ता है न?

दादाश्री : गुस्सा क्यों करना पड़े? वैसे ही समझाकर कहने में क्या हर्ज है? गुस्सा आप करते नही हों, आपसे हो जाता है। किया हुआ गुस्सा, गुस्सा नहीं कहलाता। आप खुद गुस्सा करते हैं, आप उसे धमकाए उसे गुस्सा नहीं कहते। लेकिन आप तो गुस्सा हो जाते हो।

प्रश्नकर्ता : गुस्सा हो जाने का कारण क्या?

दादाश्री : ‘वीकनेस’। यह ‘वीकनेस’ (कमज़ोरी) है! अर्थात् वह खुद गुस्सा नहीं करता, वह तो गुस्सा होने के बाद खुद को पता चलता है कि यह गलत हो गया, ऐसा नहीं होना चाहिए। अत: अंकुश उसके हाथ में नहीं हैं। यह मशीन गरम हो जाए, तब उस समय आपको ज़रा ठंडा रहना चाहिए। जब अपने आप ठंडा हो जाए, तब हाथ डालना।

बच्चे पर आप चिढ़ते हो तब आप अगले जन्म के लिए कर्म बाँधते हैं। चिढ़ने में हर्ज नहीं, जब तक आपको गुस्से से नुकसान ना हो। वह नाटकीय होना चाहिए।

प्रश्नकर्ता : बच्चों को जब तक डाँटे नहीं, तब तक शांत ही नहीं होते, डाँटना तो पड़ता है न!

दादाश्री : नहीं, डाँटने में हर्ज नहीं। लेकिन ‘खुद’ डाँटते हो इसलिए आपका मुँह बिगड़ जाता है, इसलिए ज़िम्मेदारी है। आपका मुँह बिगड़े नहीं ऐसे डाँटो, मुँह अच्छा रखकर डाँटो, खूब डाँटो। आपका मुँह बिगड़ जाए तो इसका मतलब यह है कि आपको जो डाँटना है वह आप अहंकार करके डाँटते हो।

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