जब आपकी शादी होती हा तब आप अपने मन में एक आदर्श विवाहित जीवन का चित्रण करते हो, ‘मेरा विवाहित जीवन ऐसा होगा और वैसा होगा।’ लेकिन धीरे-धीरे वह आदर्श विवाहित जीवन की तस्वीर, कल्पना तक ही रह जाती है। तो विवाहित जीवन की समस्याओं कारण क्या हैं?
परम पूज्य दादाश्री ने विवाहित जीवन में समस्याओं के कई कारण बताए हैं। इन कारणों को दर्शाने वाले, आध्यात्मिक सत्संग के कुछ अंश नीचे दिए गए…
जो भूलें वह जानती हो, उन्हें बताने का अर्थ क्या है? पुरुषों को अपनी पत्नियों की गलतियाँ निकालने की आदत होती है। पत्नियाँ भी वैसा ही करती हैं!
लोग जानबूझकर छोटी, मामूली और पता हो ऐसी, भूलें निकालते रहते हैं। इसी से संसार ज्यादा बिगड़ता जा रहा है। उन्हें लगता है वे कहने से सुधरेंगे। कहने से तो उल्टा चलते हैं बल्कि। वह कहे कि, ‘अच्छा हुआ आपने मेरी भूल बताई। मुझे तो मालूम ही नहीं।’ वह उसे उपकार समझे तब भूलें निकालों।
आमने-सामने बातचीत करो, ऐसे फ्रेन्ड की तरह। वाइफ के साथ फ्रेन्डशिप रखनी चाहिए। फ्रेन्ड के साथ ऐसे क्लेश करते हो रोज़-रोज़? उसकी भूलें डायरेक्ट दिखाते होगें? नहीं! क्योंकि फ्रेन्डशिप टिकानी है। और यह तो शादी की है, कहाँ जानेवाली है? अगर वह अपनी भूल जानते हों, तो नहीं दिखा सकते।
केवल उन दोषों की ओर ध्यान आकर्षित करें, जिनके बारे में वे नहीं जानते या वे खुद नहीं देख सकते। यदि आप उन्हें उनकी गलतियों के बारे में बताएँगे जो वे पहले से ही जानते हैं, तो आप उनके अहंकार को चोट पहुँचाएँगे। फिर वे भी आपसे बदला लेने के मौके का इंतजार करेंगे।
जब हमारे जीवन में कुछ भी गलत होता है, तो हम हमेशा दूसरों को दोषित ठहराने के कारण ढूँढ़ते हैं और ऐसा ही विवाहित जीवन में भी होता है। हम हमेशा अपनी समस्याओं के लिए अपने जीवनसाथी को दोषी मानते हैं। अगर हम स्वीकार कर लें कि गलती हमारी है, तो हम कोई समाधान ला सकेंगे और विवाहित जीवन की समस्याओं से बच सकते हैं। अगर हम अपनी गलती नहीं मानेंगे, तो कोई समाधान नहीं निकलेगा।
लोग यह कहकर अपनी कमजोरी को छिपाने की कोशिश करते हैं कि दुनिया तो ऐसे ही चलती है। अपनी कमजोरी को छिपाने से कमजोरी बनी रहती है। कमजोरी क्या कहती है? यह कहती है, "जब तक तुम मेरा स्वीकार नहीं करोगे तब तक मैं नहीं छोड़ूंगी।"
घर में ज़्यादातर तकरारें आजकल शंका की वजह से होती हैं। यह कैसा है कि शंका की वजह से स्पंदन उठते हैं और इन स्पंदनों से लपटें निकलती हैं और अगर नि:शंक हो जाएँ न तो लपटें अपने आप ही शांत हो जाएँगी। पति-पत्नी दोनों शंकाशील होंगे, तो लपटें कैसे शांत होंगी? एक नि:शंक हो, तभी छुटकारा हो सकता है। शंका करने वाला मोक्ष खो देता है। किसी भी बात में शंका होने लगे तो वे शंकाएँ मत रखना, आप जागृत रहना मगर सामनेवाले पर शंका नहीं रखनी चाहिए। शंका हमें मार डालती है। उसका तो जो होना होगा वह होगा, पर हमें तो वह शंका ही मार डालेगी। क्योंकि शंका तो, यदि मनुष्य मर जाए, तब तक भी उसे छोड़ती नहीं।
जब हम अपने जीवनसाथी या खुद की तुलना दूसरों से करते हैं, तो वह दुःख का कारण बनता है। इससे विवाहत जीवन में समस्या पैदा होती है।
परम पूज्य दादाश्री समझाते हैं कि, “यह बिना सोचे ठोकमठोक किया है कि यह दु:ख है, यह दु:ख है! ऐसा मानो न, कि आपके वहाँ बहुत समय का पुराना सोफासेट है। अब आपके मित्र के घर सोफासेट हो ही नहीं, इसलिए वह आज नयी तरह का सोफासेट लाया। वह आपकी पत्नी देखकर आईं। फिर घर आकर आपको कहे कि आपके मित्र के घर पर कितना सुंदर सोफासेट है और अपने यहाँ खराब हो गए हैं। तो यह दु:ख आया! घर में दु:ख नहीं था वह, देखने गए वहाँ से दु:ख लेकर आए।
आपने बंगला नहीं बनवाया हो और आपके मित्र ने बंगला बनवाया और आपकी वाइफ वहाँ जाए, देखे, और कहे कि कितना अच्छा बंगला उन्होंने बनवाया। और हम तो बिना बंगले के हैं! वह दु:ख आया!!! यानी कि ये सब दु:ख खड़े किए हुए हैं।“
परम पूज्य दादाश्री कहते हैं, “रोज़-रोज़ बर्तन खड़केंगे तो कैसे अच्छा लगेगा? यह तो समझता नहीं है, इसलिए चलता है। जागृत हो उसे तो, एक ही मतभेद पड़े तो रातभर नींद नहीं आए! इन बर्तनों (मनुष्यों) के तो स्पंदन हैं, इसलिए रात को सोते-सोते भी स्पंदन होते रहते हैं कि ‘ये तो ऐसे हैं, टेढ़े हैं, उलटे हैं, नालायक हैं, बाहर करने जैसे हैं।’ और उन बर्तनों के कुछ स्पंदन हैं? हमारे लोग बिना समझे ‘हाँ’ में ‘हाँ’ मिलाते हैं कि दो बर्तन साथ में होंगे तो खड़केंगे! हम क्या बर्तन हैं कि हम खड़कें? इन ‘दादा’ को किसी ने कभी भी टकराव में नहीं देखा होगा! सपना भी नहीं आया होगा वैसा!! टकराना क्यों? टकराना तो अपनी ज़िम्मेदारी पर है।“
टकराव होने का कारण मतभेद है। जब पति-पत्नी एकमत नहीं होते तब मन से भेद पड़ता है। यदि इसे हल नहीं किया जाए, तो अगले दिन, उनके बीच की दूरी बढ़ने लगती है। धीरे-धीरे एक दूसरे के प्रति द्वेष होने लगता है और उसके बाद बैर भाव शुरू होता है। परिणामस्वरूप शादी की समस्याएं बढ़ सकती हैं।
लोगों के पास अपने जीवनसाथी या बच्चों के साथ समस्याओं को हल करने की क्षमता नहीं होती है और जब झड़प होती है तो वे भ्रम में पड़ जाते हैं।
प्रश्नकर्ता : पति तो ऐसा ही कहेगा न कि ‘वाइफ समाधान करे, मैं नहीं करुँगा।
दादाश्री : अर्थात् ‘लिमिट’ पूरी हो गई। ‘वाइफ’ समाधान करे और हम नहीं करें, तब हमारी लिमिट हो गई पूरी। पुरुष तो ऐसा बोलना चाहिए कि ‘वाइफ’ खुश हो जाए और ऐसा करके गाड़ी आगे बढ़ा दे। और आप तो पंद्रह-पंद्रह दिन, महीना-महीना भर गाड़ी वहीं की वहीं, आगे ही नहीं बढ़ती। जब तक सामनेवाले के मन का समाधान नहीं होगा, तब तक तुम्हें मुश्किल रहेगी। इसलिए समाधान कर लेना।
प्रश्नकर्ता : मतभेद क्यों होते हैं? इसकी वजह क्या?
दादाश्री : मतभेद होता है, तब वह समझती है कि मैं अक़्लमंद और यह समझता है मैं अक़्लमंद। अक़्ल के ठेकेदार आए! बेचने जाएँ तो चार आने भी नहीं आएँ! इसके बजाय हम सयाने हो जाएँ, उसकी अक़्ल को हम देखा करें कि अहोहो... कैसी अक़्लमंद है! तब वह भी ठंडी पड़ जाएगी। लेकिन हम भी अक़्लमंद और वह भी अक़्लवाली, अक़्ल ही जहाँ लड़ने लगे, वहाँ क्या होगा फिर?! तुम्हें मतभेद ज़्यादा होते हैं कि उन्हें ज़्यादा होते हैं?
प्रश्नकर्ता : उन्हें ज़्यादा होते हैं।
दादाश्री : अहोहो! मतभेद यानी क्या? मतभेद का अर्र्थ तुम्हें समझाता हूँ। यह रस्सा-कशी का खेल होता है न, देखा है तुमने?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : दो-चार लोग इस ओर खींचते हैं और दो-चार आदमी उस ओर खींचते हैं। मतभेद अर्थात् रस्साकशी। अत: हमें देखना है कि घर में बीवी बहुत ज़ोर से खींच रही है और हम भी ज़ोर से खींचेंगे तब फिर क्या होगा?
प्रश्नकर्ता : टूट जाएगा।
दादाश्री : और टूट जाने पर गाँठ लगानी पड़ती है। तब गाँठ लगाकर चलाना, इससे तो अगर साबुत रखें, उसमें क्या हर्ज है? इसलिए जब वह बहुत खींचे न, तब हमें छोड़ देना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : दो में से छोड़े कौन?
दादाश्री : समझदार, जिसमें अक़्ल ज़्यादा है वह छोड़ देगा और कमअक़्ल खींचे बगैर रहेगा ही नहीं! इसलिए हमें, अक़्लमंद को छोड़ देना है और वह भी एकदम नहीं छोड़ना। एकदम छोड़ दें न, तो सामनेवाला गिर पड़ेगा। इसलिए धीरे-धीरे, धीरे-धीरे छोड़ना। मेरे साथ कोई खींचने लगे तब मैं धीरे-धीरे छोड़ देता हूँ। वर्ना गिर पड़े बेचारा। अब तुम छोड़ दोगे ऐसे? अब छोड़ना आएगा? छोड़ दोगे न? वर्ना रस्सा गाँठ मारकर चलाना पड़ेगा। रोज़ रोज़ गाँठ लगाना, यह क्या अच्छा लगता है? और फिर रस्सा तो चलाना ही पड़ता है न! तुम्हें क्या लगता है? घर में मतभेद होने चाहिए? ज़रा-सा भी नहीं होना चाहिए!! घर में अगर मतभेद होता है तो यू आर अनफिट। अगर हज़बेन्ड ऐसा करे तो वह अनफिट फॉर हज़बेन्ड और वाइफ ऐसा करे तो अनफिट फॉर वाइफ।
सभी संघर्षों का मूल कारण और विवाह असफल होने का एक कारण जबरदस्त अज्ञानता है। पुरुषों और महिलाओं को पता नहीं है कि इस दुनिया में कैसे रहना है। एक आदमी को पता नहीं है कि पिता कैसे होना चाहिए और न ही वह जानता है कि पति कैसे होना चाहिए। इसी तरह, एक महिला को नहीं पता कि पत्नी कैसे हो। वे जीने की कला नहीं जानते हैं। सभी भौतिक सुख-सुविधाओं, लाभों और उपयुक्तताओं के साथ, अभी भी बहुत दुःख है। लोग आनंद के सागर में रहते हैं और फिर भी वे पानी की एक बूंद खोज रहे हैं!
दादाश्री : कभी घर में क्लेश होता है? तुम्हें कैसा लगता है? घर में क्लेश होता है तो अच्छा लगता है?
प्रश्नकर्ता : क्लेश बिना तो नहीं चलती दुनिया।
दादाश्री : तब तो वहाँ पर भगवान रहेंगे ही नहीं। जहाँ क्लेश है वहाँ भगवान नहीं रहते।
प्रश्नकर्ता : वह तो है लेकिन कभी-कभी तो होना चाहिए न ऐसा क्लेश?
दादाश्री : नहीं, क्लेश होना ही नहीं चाहिए। क्लेश क्यों होना चाहिए इन्सान के घर? और क्लेश होने से अच्छा लगेगा? क्लेश हो तो तुम्हें कितने महिनों तक अच्छा लगेगा?
प्रश्नकर्ता : बिल्कुल नहीं।
दादाश्री : एक महीना भी अच्छा नहीं लगेगा, नहीं? मजेदार खाना, सोने के गहने पहनना और ऊपर से क्लेश करना। यह तो जीवन जीना ही नहीं आता। जीवन जीने की कला नहीं आती, उसका ही यह क्लेश है। हम तो कौन-सी कला के माहिर हैं कि डॉलर किस तरह कमाए! बस वही सोचते रहते हैं। लेकिन जीवन कैसे जीएँ, उस बारे में नहीं सोचा। नहीं सोचना चाहिए?
१) घर में यों मतभेद डले, वह कैसे चलेगा? बीवी कहे कि, ‘मैं आपकी हूँ’ और पति कहे कि, ‘मैं तेरा हूँ’, तो मतभेद क्यों?
१) पत्नी को दु:ख देकर कोई सुखी नहीं हुआ। और जिस स्त्री ने पति को कुछ दु:ख पहुँचाया होगा, वह स्त्री भी कभी सुखी नहीं हुई!
२) हम दोनों एक हैं, हम ऐसे हैं, हम वैसे हैं। हमारा ही है यह।’ उसमें से ‘मैं और तू’ हुआ! अब, मैं और तू हुआ इसलिए खींचातानी होती है।
देखिये यह विडियो “पति-पत्नी में पॉजिटिव देखो”
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