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एडजस्टमेन्ट लेने के भिन्न भिन्न तरीके कौन से है?

परम पूज्य दादाश्री का प्रारूपित सूत्र "एडजस्ट एवरीव्हेर"। हम जीवन में अलग-अलग तरह से कैसे एडजस्टमेंट ले सकते है, ऐसे कई उपाय उन्होंने बताएं है :

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  • मुख्य बात यह है कि हमें सामनेवाले व्यक्ति के दृष्टिकोण से हमे एडजस्ट होना है। इसके लिए शिकायत करने से पहले सोचे कि हम खुद उस स्थिति में होते तो क्या करते।
  • शिकायत करने के बजाय अपने असंतोष को सकारात्मक विचारों में परिवर्तित करें। और दूसरा उपाय यह है कि, प्रतिकूलता में अनुकूलता देखने का प्रयास कीजिये। परम पूज्य दादाश्री कहते है "एक रात्रि मुझे आभास हुआ यह चादर मैली है। फिर मैंने मन में ही एडजस्टमेंट ले लिया, यह कितनी मुलायम है, फिर तो इतनी अच्छी लगी कि  पूछो ही मत! “
  • अच्छे और बुरे के अभिप्राय की वजह से हम दु:खी होते है। हमे इस पर जागृति रखनी है। अगर किसी एक को अच्छा कहे, तो उसकी तुलना में सामनेवाला बुरा साबित होता है और वही से फिर परेशानियां शुरू हो जाती है । यदि आप अच्छे और बुरे विचारों से ऊपर निकल जाते है तब कोई दुःख नहीं होगा, “एडजस्ट एवरीव्हेर”।
  • याद रखिये सभी परिस्थितियां क्षणिक है और वे अंत में विनाशी है। निश्चित ही जो परिस्थितियाँ आयी है वह जाएँगी लेकिन टकराव से होनेवाले नुकसान की गुंज लंबे समय तक जारी रहती है। परम पूज्य दादाश्री कहते है , “आपको इसलिए एडजस्ट होना है क्योंकि जगत की प्रत्येक घटना का अंत होना ही है, अंततः उसका अंत आना ही है लेकिन अगर वह लंबे समय तक चली और आप एडजस्ट नहीं हुए तब आप, अपने आपको और सामने वाले व्यक्ति दोनों को दुःख दे रहे हो।”
  • सत्य को साबित करने के प्रयास में मत फंसना। ‘सत्य’ तो रिलेटिव है और प्रत्येक व्यक्ति के व्यूपॉइंट पर आधारित है। लोग जो भी कहते है वह सच है या नहीं, पर हमें एडजस्ट हो जाना चाहिए। यदि कोई कहे आपको अकल नहीं, आपको एडजस्ट हो कर कहना, “आप सही कहते हो ,मैं हमेशा से ही धीमा हूँ। आपको आज पता चला है मैं तो बचपन से ही जानता हूँ।” यदि आप इस तरह से उत्तर देते हो तो आप टकराव को टाल रहे हो । वे आपको फिर कभी परेशान नहीं करेंगे। 
  • काउन्टरपुली का उपयोग करें। परम पूज्य दादाश्री काउन्टरपुली के उदहारण द्वारा हमे एडजस्टमेन्ट की प्रक्रिया पर विचार करने को कहते है। यदि आपके रिवोल्यूशन ( विचारो की स्पीड) १८०० है और सामने वाले के  ६०० है और आप अपने अभिप्राय उन पर थोपेंगे, तो इंजन टूट जायेगा और उसके सारे गीयर बदलने पड़ेंगे। वे आपकी बात तभी समझेंगे जब आप काउंटर पुल्ली डाल कर अपने रेवोलुशन को धीमा करेंगे।
  • उदाहरण के लिए किसी परिस्थिति में आप किसी के साथ एडजस्ट नहीं हुए और इस बात से सामनेवाले को दुःख पहुँचा, तब आप वापस जा कर उनसे क्षमा मांगिये। यह टकराव को टालकर परिस्थिति से एडजस्ट होने के लिए एक और उपाय है।
  • विचार कीजिए, यदि आप अपनी भूल को नहीं स्वीकारते है , तो आप दूसरों को उसकी भूल कैसे बता सकेंगे। इसके बजाय दूसरो की प्रकृति को पहचानने का प्रयत्न कीजिए, जिससे आपको समझ सकेंगे की उनके इस व्यवहार के पीछे का क्या कारण है, फिर आप एडजस्ट हो पाएंगे।
  • जो जैसे है, उन्हें वैसे ही स्वीकारिये, उन्हें बदलने का प्रयत्न न करे। जब परिवारजनों की बात आती है तब यह विषय संवेदनशील हो जाता है। परम पूज्य दादाश्री कहते है कि, “कोई आपको कहे कि अपनी पत्नी को सीधा करो लेकिन जब आप करने जाओगे तो आप खुद टेढ़े हो जाओगे।”
  • आप अपने परिवारजन और जीवनसाथी को जैसे है वैसे स्वीकार करे, यह सबसे उत्तम है। ऐसा विचार करे, आपका घर भिन्न भिन्न फूलो (प्रकृति) से भरा बगीचा है। परम पूज्य दादाश्री कहते है, “क्या हम अपने बगीचे के सभी फूलो की सराहना नहीं करेंगे? एक घर में एक गुलाब जैसा, एक मोगरा जैसा, इसलिए गुलाब चिल्लाता है " तुम मेरे जैसे क्यों नहीं हो "? तुम्हारा रंग देख कितना श्वेत है और देख मेरा रंग कितना सुन्दर है। तब मोगरा कहता है कि तुम मे तो केवल कांटे है। अब अगर गुलाब है तो कांटे तो होंगे ही , मोगरा होंगे तो कांटे नहीं होंगे। मोगरा का फूल श्वेत ही होगा। इसलिए सबके  विचार, अभिप्राय और व्यक्तित्व की विविधता की सराहना करने से टकराव कम होगा।
  • एडजस्टमेन्ट लेने का अर्थ यह नहीं कि हम सामनेवाले व्यक्ति की बात केवल टकराव टालने के लिए आँख बंद करके मान ले। आप बैठ कर चर्चा करे कि कौन सी समस्या है। मतभेद को बढ़ाये बिना, सभी आपसी समझ से अपना दृष्टिकोण (मंतव्य) दे और परस्पर सहजभाव से समस्या के हल तक पहुंचे।
  • ऐसे व्यक्तिओ का निरिक्षण करे, जो जानते है कैसे एडजस्ट करना है और उनसे सीखे।

एडजस्टमेंट इस प्रकार से ले कि किसी को भी आपके कारण कठिनाई न हो।

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