मनुष्य जीवन चाहे वह सामान्य हो या असामन्य, हमेशा सफलता और असफलता के कई उदाहरणों से भरा होता है| हालांकि, हमारी बुद्धि लगातार हमें बताती है कि सफलता अच्छी है और असफलता बुरी है| इसका कारण यह है कि हम मानते हैं कि सफलता और असफलता हमारी क्षमताओं का एक मूल्यांकन है| जब तक क्षमताएं तेज नहीं हो जातीं तब तक वह उनको सँवारने में मदद करती है|

लेकिन वास्तव में क्या होता है, असफलता की स्थिति में, उसे अनुभव के रूप में लेने के बजाय हम उदास हो जाते हैं|इसी तरह सफलता की स्थिति में, हम इतने उत्साहित और गर्वान्वित हो जाते हैं कि जैसे हमने किसी ऊँचाई को छू लिया हो| इन दोनों स्थितियों में, हमारी प्रतिक्रियाएँ इतनी अधिक होती हैं कि हम अपने खुद के विकास को रोक देते हैं| 

क्या आप जानना चाहते हैं कैसे? तो जानिए !

success-failure
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स्थिति १: सफलता के बाद : ’हाँ, मैंने यह किया था!’ अब कोई भी मुझे परास्त नहीं कर सकता|”, “मैंने यह अपने दम पर किया हैं|”, “मैंने पूर्णता प्राप्त की हैं|”, “ये सब सिर्फ मेरी वजह से हुआ|”

स्थिति २: विफलता के बाद : “ओह! मैं यह नहीं कर सकता!, “मैं जानता था कि मैं इसे नहीं कर पाउँगा, मेरी कुंडली में भी ऐसा लिखा है|”, “अब मेरा क्या होगा?”, “मेरे सारे प्रयास बर्बाद हो गए|”, “क्योंकि भगवान ने यह सब किया है”, “मेरी असफलता का कारण आप हो|”

दोनों ही स्थितियों में अब हम उसके बाद के वर्णन को जानेंगे| यदि हम सफल हुए तो हम अपने आपको ही सारा श्रेय देते हैं| जबकि, यदि हम असफल हुए तो हम भगवान को और दूसरे लोगों को और यहाँ तक कि हमारे भाग्य को दोष देते हैं, क्योंकि हम कर्ता को जाने बगैर ही पक्षपाती हो जाते हैं कि सही अपराधी कौन है? ऐसा करके हम न सिर्फ भगवान और अन्य लोगों के साथ के संबंध बिगाड़ देते हैं बल्कि साथ ही साथ हम खुद की बर्बादी को न्योता देते हैं, क्योंकि हम ऐसा सोचने लगते हैं ऐसा होने की वजह से मुझे सफलता नहीं मिली| तो क्या वाकई हमारी सफलता-विफलता ऐसे कारणों पर आधारित है? नहीं! क्योंकि उनमें से यदि एक भी चीज़ नहीं होती तब भी आपको सफलता या विफलता मिलती?

तो इसके पीछे कौन सा विज्ञान है? चलिए पता लगाते हैं!

  • सफलता या विफलता हमारे पूर्व कर्मों का परिणाम है| अच्छे कर्म थोड़े से प्रयत्नों से ही सफलता में परिवर्तित हो जाते हैं जबकि बुरे कर्म असफलता को आकर्षित करते हैं| हालांकि वह आपका ही अनुमान होता है फिर भी असफलता के लिए भगवान को क्यों दोष देते हैं कि वे कुछ क्यों नहीं करते?
  • सफलता और विफलता दोनों कभी भी अंत तक नहीं रहते, फिर हम विफलता के समय क्यों निराश हों?, यह तो अस्थायी है|

सफलता और विफलता केवल कुछ समय के लिए आती है, दोनों हमें कुछ सिखाकर जाती है| यदि सफलता हमें सिखाती है कि कठिन परिश्रम और सकारात्मक दृष्टि रखने से मीठा फल मिलता है तो विफलता हमें कमज़ोरियों को समझने में मदद करता है ताकि हम भविष्य में बेहतर कार्य कर सकें| विफलता एक प्राकृतिक उत्साहवर्धक है जो हमें सफलता की ओर धकेलता हैं, सफलता में जब मीठे फल मिलें तब हमें ज़रूरत से ज़्यादा आत्मविश्वास और अभिमान में नहीं आना चाहिए|

success-failure
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संक्षेप में कहें तो, जब सफलता और विफलता दोनों का सामना करना पड़ता है तब हमें एक उपयुक्त और संतुलित रवैया बनाए रखने की ज़रूरत है| उसके लिए हमें जीवन की अस्थायी अवस्थाओं, सफलता और विफलता को स्वीकार करने की ज़रूरत हैं, वे आती-जाती रहती हैं| तो फिर इस जीवन में स्थायी क्या है? वैसे, आपका अपना स्वरूप, आत्मा, स्थायी है और उसका अनुभव शाश्वत है| जब सफलता या विफलता आती है, तब वह सकारात्मक संतुलित व्यवहार बनाए रखने में मदद करता है| सफलता के समय यह रवैया आपको अति आत्मविश्वासी नहीं बनाता और विफलता के समय आपको निराश भी नहीं करता|

जबकि ऐसे संतुलित व्यवहार से आप दो गुरुकिल्ली (मास्टर की) का पालन कर सकते हैं, जो जीवन के किसी भी क्षेत्र में जल्दी और शीघ्र सफलता देंगी|

  • हमेशा अपने उद्देश में सिन्सियर रहो (सिन्सियरिटी पहली चाबी है)|
  • निराश हुए बिना एक सकारात्मक मानसिक रवैया बनाए रखें, चाहे परिस्थितियां कितनी भी खराब हों| (पॉज़िटिव दृष्टिकोण यह दूसरी चाबी)

यह संदेश बहुत से ऐतिहासिक सितारों का है, जैसे अब्राहम लिंकन और हेलन केलर जो अपने प्रयासों में इन दो गुरुकिल्लियों द्वारा सफल हुए| अब्राहम लिंकन ने ज़्यादातर पढ़ाई अपनेआप ही की थी लेकिन फिर भी उन्होंने यूनाइटेड स्टेट्स के १६ वें राष्ट्रपति का पद संभाला| उन्होंने गुलामी को समाप्त करके एक नई सरकार बनाई| इसी प्रकार हेलन केलर ऐसी प्रथम व्यक्ति (महिला) थीं जिन्होंने अंधे-बहरे होने के बावजूद बेचलर ऑफ़ आर्ट्स की डिग्री प्राप्त की| उन्होंने समाज के अन्य विकलांग लोगों की मदद में अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया| हालांकि वह, ‘अमेरिकन फाउन्डेशन फॉर द ब्लाईड’ की संस्थापक भी थीं|

बहुत से व्यक्ति हैं जो संतुलित रवैया रखकर विफलता को पहचान पाए और इस तरह सफलता की तरफ तरफ बढे कि फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा

फिर आप क्यों पीछे रहें? क्यों न अगले निर्धारित आत्मज्ञान के कार्यक्रम में हिस्सा लें|

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