अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें05 जून |
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
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प्रश्नकर्ता : बुद्धि को निकालना ही है, क्योंकि वह बहुत मार खिलाती॒है।
दादाश्री : इस बुद्धि को निकालना हो तो बुद्धि खुद अपने आप नहीं जाएगी। बुद्धि 'कार्य' है, उसके 'कारण' निकालेंगे, तो यह 'कार्य' चला जाएगा। यह बुद्धि 'कार्य' है, उसके 'कारण' क्या हैं? वास्तव में जो हुआ, उसे न्याय कहा जाएगा, तब वह चली जाएगी। जगत् क्या कहता है? वास्तव में जो हो गया है, उसे स्वीकार लेना चाहिए। और न्याय ढूँढते रहेंगे न तो उससे झगडे़ चलते रहेंगे।
अतः बुद्धि ऐसे ही नहीं जाएगी। बुद्धि जाने का मार्ग क्या है? उसके कारणों का सेवन नहीं करोगे तो बुद्धि, वह 'कार्य' नहीं होगा।
प्रश्नकर्ता : आपने कहा न कि बुद्धि 'कार्य' है और उसके कारण ढूँढोगे तो, वह कार्य बंद हो जाएगा।
दादाश्री : उसके कारणो में, हम जो न्याय ढूँढने निकले, वही उसका कारण है। न्याय ढूँढना बंद कर दोगे तो बुद्धि चली जाएगी। न्याय क्यों ढूँढते हो? तब बहू क्या कहती है कि 'लेकिन तुम मेरी सास को नहीं पहचानती, मैं आई, तभीसे वह दुःख दे रही है, इसमें मेरा क्या गुनाह है?'
कोई बिना पहचाने दुःख देता होगा? वह हिसाब में जमा होगा, इसलिए तुझे देती रहती है। तब कहे, 'लेकिन मैंने तो उनका मुँह भी नहीं देखा था।' 'अरे, तूने इस जन्म में नहीं देखा लेकिन पूर्वजन्म का हिसाब क्या कह रहा है?' इसलिए जो हुआ, वही न्याय।
घर में बेटा दादागिरी करता है? वह दादागिरी करता है, वही न्याय। यह तो बुद्धि दिखाती है, बेटा होकर बाप के सामने दादागिरी? जो हुआ, वही न्याय!
अतः यह 'अक्रम विज्ञान' क्या कहता है? देखो यह न्याय! लोग मुझसे पूछते हैं, 'आपने बुद्धि किस तरह निकाल दी?' न्याय नहीं ढूँढा तो बुद्धि चली गई। बुद्धि कब तक रहेगी? न्याय ढूँढेंगे और न्याय को आधार देंगे, तब तक बुद्धि रहेगी, उस पर बुद्धि कहेगी, 'अपने पक्ष में हैं भाईर्साहब।' और कहेगी, 'इतनी अच्छी तरह नौकरी की और ये डायरेक्टर किस आधार पर उल्टा बोल रहे हैं?' इस तरह उसे आधार देते हो? न्याय ढूँढते हो? वे जो बोलते हैं, वही करेक्ट है। अब तक क्यों नहीं बोल रहे थे? किस आधार पर नहीं बोल रहे थे? अब कौन-से न्याय के आधार पर बोल रहे हैं? सोचने पर नहीं लगता कि ये जो बोल रहे हैं, वह सप्रमाण है? अरे, तनख्वाह नहीं बढ़ाते, वही न्याय है। हम उसे अन्याय कैसे कह सकते हैं?
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