क्या सच में आत्मा नाम की कोई चीज़ है? क्या वास्तव में आत्मा का अस्तित्व है? उत्तर है, हाँ! यदि आप किसी व्यक्ति को अपने पास से गुजरते हुए देखते हैं, तो यह मान लिया जाता है कि उसके अंदर आत्मा है। ऐसा क्यों ? ऐसा इसलिए क्योंकि जीव का अस्तित्व उसके भीतर की आत्मा के कारण है जो चेतन रूप में कार्य करता है। आत्मा के बिना अस्तित्व भी नहीं है और जीवन भी नहीं है! सूक्ष्म होने के कारण आत्मा को देखा नहीं जा सकता। इसे पूर्ण रूप से अनुभव किया जा सकता है। वह अनंत सुख का धाम है!
आइए आगे परम पूज्य दादा भगवान से समझते हैं…
प्रश्नकर्ता: आत्मा होगा या नहीं, यह शंका उत्पन्न हो, ऐसा है।
दादाश्री: आत्मा है ही।
प्रश्नकर्ता: आत्मा देखा जा सकता है? या कल्पना ही है?
दादाश्री: हम सबको हवा दिखती नहीं है, फिर भी आपको पता चलता है न कि हवा है? या नहीं पता चलता? इत्र की सुगंध आती है, लेकिन वह सुगंध दिखती है क्या? फिर भी हमें इस बात का पक्का पता चलता है न कि यह ‘इत्र है’? इसी प्रकार ‘आत्मा है’ उसका हमें यक़ीन होता है! जैसे सुगंध पर से इत्र को पहचाना जा सकता है, उसी प्रकार आत्मा को भी उसके सुख पर से पहचाना जा सकता है, फिर यह पूरा जगत् जैसा है वैसा दिखता है।
प्रश्नकर्ता: यह जो आत्मा है, उसका एक्स-रे में या किसी भी मशीन से फोटो भी नहीं आता।
दादाश्री: हाँ, आत्मा तो बहुत सूक्ष्म है, इसलिए वह हाथ में नहीं आ सकता न! केमरे में नहीं आता और आँखों से भी नहीं दिखता, दूरबीन से भी नहीं दिखता, किसी भी चीज़ से दिखे नहीं, आत्मा ऐसी सूक्ष्म वस्तु है।
प्रश्नकर्ता: इसलिए आश्चर्य होता है कि आत्मा कहाँ पर होगा?
दादाश्री: इस आत्मा के आरपार अंगारा चला जाए, फिर भी उसे अंगारा छुए नहीं, आत्मा इतना अधिक सूक्ष्म है।
प्रश्नकर्ता: लेकिन देह को काट डालें, छेदन करें, फिर भी आत्मा दिखता नहीं है।
दादाश्री: आत्मा दिखे ऐसा है ही नहीं। परन्तु देह को काट डालें तो आत्मा निकल जाता है न? मनुष्य मर जाता है, तब कौन निकल जाता है?
प्रश्नकर्ता: आत्मा निकल जाता है।
दादाश्री: हाँ, निकल जाता है, फिर भी वह दिखे ऐसा नहीं है। लेकिन है ज़रूर। वह प्रकाश है, उजाले के रूप में है। यह सारा उसीका उजाला है। वह नहीं है तो सबकुछ खत्म हो गया। वह निकल जाए, तो फिर देखा है न आपने? अर्थी देखी है? उसमें उजाला रहता है फिर?
प्रश्नकर्ता: नहीं।
दादाश्री: तो उसमें से आत्मा निकल गया है। यानी आत्मा तो खुद ज्योतिस्वरूप है।
हम ‘खुद’ ही आत्मा है। आप वास्तव में शुद्धात्मा हैं। आपका अस्तित्व आपके आत्मा के अस्तित्व के कारण है!
जो लोग आत्मा के अस्तित्व पर संदेह करते हैं वे अनिवार्य रूप से अपने आत्मा के अस्तित्व को साबित करते हैं। जिसे आत्मा पर संदेह है, वह वास्तव में स्वयं जीव है। क्या निर्जीव के लिए संदेह करना संभव है?
प्रश्नकर्ता: इन सभी फॉरिन के साइन्टिस्टों ने ऐसी सब खोज की है कि काँच के बॉक्स में मरते हुए आदमी को रखकर जीव किस तरह से जाता है, कहाँ से जाता है, इन सबकी जाँच करने के लिए बहुत प्रयत्न किए हैं, परन्तु ‘आत्मा है या नहीं’, ऐसा कुछ लगा नहीं। ‘जीव है ही नहीं’ ऐसा सिद्ध कर दिया।
दादाश्री: नहीं। परन्तु ‘यह अजीव है’ ऐसा कहते हैं? यह पेटी अजीव है या नहीं? अजीव ही है न? तब फिर यह मनुष्य और यह पेटी सब एक सरीखा है?
प्रश्नकर्ता: नहीं, ऐसा नहीं है। परन्तु जीव जैसी कोई वस्तु बाहर नहीं निकलती, ऐसा कहना चाहते हैं।
दादाश्री: ये साइन्टिस्ट ‘मनुष्य’ बनाते हैं, नये हृदय बनाते हैं, सबकुछ बनाते हैं न? अगर वे नया मनुष्य बना दें, तो क्या अपने जैसा व्यवहार कर सकेगा वह?
प्रश्नकर्ता: नहीं कर सकेगा।
दादाश्री: तो फिर किस आधार पर वे समझते हैं कि जीव जैसा कुछ है ही नहीं?
प्रश्नकर्ता: उन लोगों ने तो काँच की पेटी में मरते हुए मनुष्य को रखा था, परन्तु जीव निकलते समय कुछ भी दिखा नहीं इसलिए मान लिया कि जीव नहीं है।
दादाश्री: जो शंका करता है न, कि जीव जैसी वस्तु नहीं है, जो ऐसा कहता है न, वही खुद जीव है। जिसे शंका होती है न वही जीव है, नहीं तो शंका होगी ही नहीं। और ये दूसरी जड़ वस्तुएँ हैं न, इनको किसीको भी शंका नहीं होती। यदि किसीको शंका होती है, तो वह जीव को ही होती है, अन्य कोई चीज़ ऐसी नहीं है कि जिसे शंका होती हो। आपको समझ में आता है ऐसा? मरने के बाद उसे खुद को शंका होगी? नहीं? तो क्या चला जाता होगा?
प्रश्नकर्ता: परन्तु जब शरीर के महत्वपूर्ण अवयव काम करना बंद कर दें, तब मनुष्य की मृत्यु हो जाती है। यदि ऐसा ही है, तो जीव जैसी वस्तु ही नहीं रही।
दादाश्री: जीव जैसी वस्तु है ही। वह खुद ही जीव है, फिर भी खुद अपने आप पर शंका करता है। जिसे यह शंका होती है न, वही जीव है। इस देह में जीव नहीं है, ऐसी जो शंका करता है न, वही जीव है। खुद के मुँह में जीभ नहीं हो और खुद बोले कि, ‘मेरे मुँह में जीभ नहीं है’, यही सिद्ध करता है कि जीभ है ही अंदर। समझ में आया न? इसलिए यह शंका है। यह वाक्य ही विरोधाभासी है। लोग कहते हैं, ‘जब मनुष्य का निधन होता है, तब उसमें जीव जैसी कोई वस्तु नहीं रहती’, ये शब्द खुद ही शंका उत्पन्न करते हैं, उसे शंका हुई है। यह शंका ही सिद्ध कर देती है कि जीव है वहाँ पर। मैं साइन्टिस्टों के पास बैठूँ न, तो उन सभी को तुरन्त समझा दूँ कि यह जीव बोल रहा है। तू भला, तेरी नई शंकाएँ खड़ी कर रहा है? यानी जीव तो देहधारी में है ही।
वास्तव में, आप आत्मा हो। क्या आपने लोगों को यह कहते नहीं सुन, “मैंने अवश्य ही पिछले जन्म में कुछ बुरे कर्म किए होंगे?" यह सिद्ध करता है कि हमारा पूर्व जन्म था। पुनर्जन्म प्रमाण है कि आत्मा है; यह था, है और हमेशा रहेगा।
अपने वास्तविक स्वरूप की अज्ञानता के कारण, हमें आत्मा के अस्तित्व पर संदेह होता है और हम इस प्रश्न का उत्तर ढूँढ़ते रहते हैं, "क्या आत्मा है?"। एक बार जब हम इसका अनुभव कर लेंगे, तब कोई संदेह नहीं रहेगा। तो, हमें वास्तव में यह जानने की जरूरत है की, "मैं कौन हूँ ?" जब यह ज्ञान हमें प्रयत्क्ष ज्ञानी पुरुष द्वारा प्राप्त होता है, तभी आत्मा का अनुभव होना शुरू है। उसके बाद, 'मैं शुद्ध आत्मा हूँ' की जागृति सहज ही बनी रहती है। आधी रात को जागने पर भी जागृति बनी रहती है।
इस प्रकार, मानव जीवन का उद्देश्य आत्मज्ञान प्राप्त करना (अर्थात "मै शुद्धात्मा हूँ" ऐसा दृढ़ निश्चय स्थापित करना), आत्मा के स्वभाव (आत्मा के बारे में जागरूकता प्राप्त करना) आना और आत्मा के अनुभव में रहना है।
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