प्रश्नकर्ता: २. हे दादा भगवान ! मुझे, किसी भी धर्म का किंचित्मात्र भी प्रमाण न दुभे, न दुभाया जाए या दुभाने के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।
मुझे, किसी भी धर्म का किंचित्मात्र भी प्रमाण न दुभाया जाए ऐसी स्याद्वाद वाणी, स्याद्वाद वर्तन और स्याद्वाद मनन करने की परम शक्ति दीजिए।
दादाश्री : किसी का भी प्रमाण नहीं दुभाना चाहिए। कोई भी गलत है, ऐसा नहीं लगना चाहिए। ‘एक’ संख्या कहलाती है या नहीं कहलाती?
प्रश्नकर्ता: हाँ जी।
दादाश्री: तो ‘दो’ संख्या कहलाती है या नहीं कहलाती?
प्रश्नकर्ता: हाँ, कहलाती है।
दादाश्री: तब ‘सौ’ संख्यावाले क्या कहेंगे? ‘हमारा सही, आपका गलत।’ ऐसा नहीं कह सकते। सभी का सही है। ‘एक’ का ‘एक’ के अनुसार, ‘दो’ का ‘दो’ के अनुसार, प्रत्येक अपने अनुसार सही है। अर्थात् हर एक का (व्यू पोइन्ट) जो स्वीकार करता है, उसका नाम स्याद्वाद। एक वस्तु अपने गुणधर्म में है और हम उसके कुछ ही गुणों का स्वीकार करें और बाकी के गुणों का अस्वीकार करें, यह गलत है। स्याद्वाद यानी प्रत्येक के प्रमाण अनुसार। ३६० डिग्री होने पर सभी का सही कहलाता है लेकिन उसकी डिग्री तक उसका सही और इसकी डिग्री तक इसका सही होता है।
कोई भी धर्म गलत है ऐसा हम नहीं बोल सकते। हर एक धर्म सही है, कोई गलत नहीं है, हम किसीको गलत कह ही नहीं सकते। वह उसका धर्म है। मांसाहार करता हो, उसे हम गलत कैसे कह सकते हैं? वह कहेगा, ‘मांसाहार करना मेरा धर्म है।’ तो हम ‘मना’ नहीं कर सकते। वह उसकी मान्यता है, उसकी बिलीफ है। हम किसी की बिलीफ का खंडन नहीं कर सकते। लेकिन जो शाकाहारी परिवार में जन्मे हैं, यदि वे लोग मांसाहार करते हों तो हमें उन्हें कहना चाहिए कि, ‘भैया, यह अच्छी बात नहीं है।’ फिर उसे मांसाहार करना हो तो उसमें हम विरोध नहीं कर सकते। हमें समझाना चाहिए कि यह वस्तु हेल्पफुल (सहायक) नहीं है।
स्याद्वाद यानी किसी धर्म का प्रमाण नहीं दुभाना। जितनी मात्रा में सत्य हो उतनी मात्रा में उसे सत्य कहें और जितनी मात्रा में असत्य हो उतनी मात्रा में उसे असत्य कहें, उसका अर्थ प्रमाण नहीं दुभाया। क्रिश्चियन प्रमाण, मुस्लिम प्रमाण, किसी भी धर्म का प्रमाण नहीं दुभाना चाहिए। क्योंकि सभी धर्म ३६० डिग्री में समा जाते हैं। रीयल इज़ द सेन्टर एन्ड ऑल दीस आर रिलेटीव व्यूज़ (रीयल सेन्टर है और ये सारे रिलेटिव-सापेक्ष दृष्टिकोण हैं।) सेन्टरवाले के लिए सभी रिलेटिव व्यूज़ व्यू समान हैं। भगवान का स्याद्वाद यानी किसी को किंचित्मात्र दु:ख नहीं हो, फिर चाहे कोई भी धर्म हो।
अर्थात् स्याद्वाद मार्ग ऐसा होता है। हर एक के धर्म का स्वीकार करना पड़ता है। सामनेवाला दो थप्पड़ मारे तो भी हमें स्वीकार करना चाहिए, क्योंकि सारा जगत् निर्दोष है। दोषित दिखाई देता है, वह आपके दोष के कारण दिखाई देता है। बाकी, जगत् दोषित है ही नहीं। लेकिन आपकी बुद्धि दोषित दिखाती है कि इसने गलत किया।
Book Name: भावना से सुधरे जन्मोंजन्म (Page #9 Paragraph #4 to #9 Page #10 ; Page #11 Paragraph #1)
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