अक्रम विज्ञान, एक ऐसा आध्यात्मिक विज्ञान है जो व्यवहार में उपयोगी है और मोक्ष प्राप्ति के लिए एक ‘शार्टकट’ रास्ता है।
अधिक पढ़ें21 मार्च |
दादा भगवान फाउन्डेशन प्रचार करता हैं, अक्रम विज्ञान के आध्यात्मिक विज्ञान का – आत्मसाक्षात्कार के विज्ञान का। जो परम पूज्य दादा भगवान द्वारा बताया गया है।
अधिक पढ़ेंअहमदाबाद से २० की.मी. की दूरी पर सीमंधर सिटी, एक आध्यात्मिक प्रगति की जगह है| जो "एक स्वच्छ, हरा और पवित्र शहर" जाना जाता है|
अधिक पढ़ेंअक्रम विज्ञानी, परम पूज्य दादा भगवान, द्वारा प्रेरित एक अनोखा निष्पक्षपाति त्रिमंदिर।
प्रश्नकर्ता: २. हे दादा भगवान ! मुझे, किसी भी धर्म का किंचित्मात्र भी प्रमाण न दुभे, न दुभाया जाए या दुभाने के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।
मुझे, किसी भी धर्म का किंचित्मात्र भी प्रमाण न दुभाया जाए ऐसी स्याद्वाद वाणी, स्याद्वाद वर्तन और स्याद्वाद मनन करने की परम शक्ति दीजिए।
दादाश्री : किसी का भी प्रमाण नहीं दुभाना चाहिए। कोई भी गलत है, ऐसा नहीं लगना चाहिए। ‘एक’ संख्या कहलाती है या नहीं कहलाती?
प्रश्नकर्ता: हाँ जी।
दादाश्री: तो ‘दो’ संख्या कहलाती है या नहीं कहलाती?
प्रश्नकर्ता: हाँ, कहलाती है।
दादाश्री: तब ‘सौ’ संख्यावाले क्या कहेंगे? ‘हमारा सही, आपका गलत।’ ऐसा नहीं कह सकते। सभी का सही है। ‘एक’ का ‘एक’ के अनुसार, ‘दो’ का ‘दो’ के अनुसार, प्रत्येक अपने अनुसार सही है। अर्थात् हर एक का (व्यू पोइन्ट) जो स्वीकार करता है, उसका नाम स्याद्वाद। एक वस्तु अपने गुणधर्म में है और हम उसके कुछ ही गुणों का स्वीकार करें और बाकी के गुणों का अस्वीकार करें, यह गलत है। स्याद्वाद यानी प्रत्येक के प्रमाण अनुसार। ३६० डिग्री होने पर सभी का सही कहलाता है लेकिन उसकी डिग्री तक उसका सही और इसकी डिग्री तक इसका सही होता है।
कोई भी धर्म गलत है ऐसा हम नहीं बोल सकते। हर एक धर्म सही है, कोई गलत नहीं है, हम किसीको गलत कह ही नहीं सकते। वह उसका धर्म है। मांसाहार करता हो, उसे हम गलत कैसे कह सकते हैं? वह कहेगा, ‘मांसाहार करना मेरा धर्म है।’ तो हम ‘मना’ नहीं कर सकते। वह उसकी मान्यता है, उसकी बिलीफ है। हम किसी की बिलीफ का खंडन नहीं कर सकते। लेकिन जो शाकाहारी परिवार में जन्मे हैं, यदि वे लोग मांसाहार करते हों तो हमें उन्हें कहना चाहिए कि, ‘भैया, यह अच्छी बात नहीं है।’ फिर उसे मांसाहार करना हो तो उसमें हम विरोध नहीं कर सकते। हमें समझाना चाहिए कि यह वस्तु हेल्पफुल (सहायक) नहीं है।
स्याद्वाद यानी किसी धर्म का प्रमाण नहीं दुभाना। जितनी मात्रा में सत्य हो उतनी मात्रा में उसे सत्य कहें और जितनी मात्रा में असत्य हो उतनी मात्रा में उसे असत्य कहें, उसका अर्थ प्रमाण नहीं दुभाया। क्रिश्चियन प्रमाण, मुस्लिम प्रमाण, किसी भी धर्म का प्रमाण नहीं दुभाना चाहिए। क्योंकि सभी धर्म ३६० डिग्री में समा जाते हैं। रीयल इज़ द सेन्टर एन्ड ऑल दीस आर रिलेटीव व्यूज़ (रीयल सेन्टर है और ये सारे रिलेटिव-सापेक्ष दृष्टिकोण हैं।) सेन्टरवाले के लिए सभी रिलेटिव व्यूज़ व्यू समान हैं। भगवान का स्याद्वाद यानी किसी को किंचित्मात्र दु:ख नहीं हो, फिर चाहे कोई भी धर्म हो।
अर्थात् स्याद्वाद मार्ग ऐसा होता है। हर एक के धर्म का स्वीकार करना पड़ता है। सामनेवाला दो थप्पड़ मारे तो भी हमें स्वीकार करना चाहिए, क्योंकि सारा जगत् निर्दोष है। दोषित दिखाई देता है, वह आपके दोष के कारण दिखाई देता है। बाकी, जगत् दोषित है ही नहीं। लेकिन आपकी बुद्धि दोषित दिखाती है कि इसने गलत किया।
Book Name: भावना से सुधरे जन्मोंजन्म (Page #9 Paragraph #4 to #9 Page #10 ; Page #11 Paragraph #1)
Q. यदि कोई गलत है फिर भी उसके अहंकार को मैं चोट क्यों नहीं पहुँचाऊँ?
A. प्रश्नकर्ता : काम-धंधे में सामनेवाले का अहम् नहीं दुभे ऐसा हमेशा नहीं रह पाता, किसी न किसी के अहम् को तो ठेस लग ही जाती है। दादाश्री : उसे ‘अहम् दुभाना’...Read More
Q. वाणी को कैसे सुधारे? दुःखदाई शब्द बोलने से कैसे बचें?
A. दादाश्री : कठोर भाषा नहीं बोलनी चाहिए। किसी के साथ कठोर भाषा निकल गई और उसे बुरा लगा तो हमें उसको रूबरू कहना चाहिए कि 'भैया, मुझ से भूल हो गई, मा़फी माँगता...Read More
Q. भोजन के प्रलोभन और लुब्धता में से छूटने के लिए क्या करें? आध्यात्मिक रूप से संतुलित भोजन क्या है?
A. दादाश्री : भोजन लेते समय आपको अमुक सब्ज़ी, जैसे कि टमाटर की ही रुचि हो, जिसकी आपको फिर से याद आती रहे, तो वह लुब्धता कहलाती है। टमाटर खाने में हर्ज नहीं है...Read More
Q. अभाव और तिरस्कार करने से कैसे बचें?
A. प्रश्नकर्ता : ४. हे दादा भगवान ! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा के प्रति किंचित्मात्र भी अभाव, तिरस्कार कभी भी न किया जाए, न करवाया जाए या कर्ता के प्रति...Read More
Q. विषय विकार में से कैसे मुक्त हों?
A. ६. ‘हे दादा भगवान ! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा के प्रति स्त्री, पुरुष या नपुंसक, कोई भी लिंगधारी हो, तो उसके संबंध में किंचित्मात्र भी विषय-विकार...Read More
Q. किसी को आत्मज्ञान के रास्ते पर किस तरह लाएँ?
A. दादाश्री: आपका शब्द ऐसा निकले कि सामनेवाले का काम हो जाए। प्रश्नकर्ता: आप पौद्गलिक या ‘रीयल’ (आत्म) के कल्याण की बात करते हैं? दादाश्री: पुद्गल नहीं,...Read More
Q. अपने अध्यात्मिक विकास को किस तरह बढ़ाएँ?
A. ऐसा है न, इस काल के हिसाब से लोगों में इतनी शक्ति नहीं है। जितनी शक्ति है उतना ही दिया है। इतनी भावना करेंगे उनका अगले जन्म में मनुष्यत्व नहीं जाएगा, इसकी...Read More
Q. सभी धर्मो का सार : नौ कलमें
A. एक भाई से मैंने कहा कि, ‘इन नौ कलमों में सब समा गया है। इसमें कुछ भी बाकी नहीं रखा है। आप ये नौ कलमें रोज़ पढ़ना।’ फिर उसने कहा, ‘लेकिन यह नहीं हो पाएगा।’...Read More
Q. सांसारिक बंधनों से मुक्ति कैसे प्राप्त की जा सकती है?
A. प्रश्नकर्ता: ये जो नौ कलमें दी हैं वह विचार, वाणी और वर्तन की शुद्धता के लिए ही दी हैं न? दादाश्री: नहीं, नहीं। अक्रम मार्ग में इसकी ज़रूरत ही नहीं है। ये...Read More
subscribe your email for our latest news and events