ये जो तार बजते हैं न, वह एक ही तार हिलाएँ तो कितनी आवाज़ होती है अंदर?
प्रश्नकर्ता : बहुत बजते हैं।
दादाश्री : एक ही हिलाओ तो भी? वैसे ही यह एक ही शब्द बोलें, उससे भीतर कितने ही शब्द खड़े हो जाते हैं। उसे भगवान ने अध्यवसन कहा है। अध्यवसन मतलब नहीं बोलना हो, तो भी वे खड़े हो जाते हैं सारे। खुद का बोलने का भाव हो गया न, इसलिए वे शब्द अपने आप बोल लिए जाते हैं। जितनी शक्ति होती है न वह सारी जागृत हो जाती है। इच्छा नहीं हो तो भी! अध्यवसन इतने सारे खड़े हो जाते हैं कि कभी भी मोक्ष में नहीं जाने दें। इसलिए ही तो हमने अक्रम विज्ञान दिया है, कितना सुंदर अक्रम विज्ञान है। कोई भी बुद्धिशाली मनुष्य इस पज़ल का अंत ला दे, ऐसा विज्ञान है।
'आप नालायक हो' ऐसा बोलें न, वह शब्द सुनकर उसे तो दुःख हुआ ही? पर उसके जो पर्याय खड़े होते हैं, वे आपको बहुत दुःख देते हैं और आप कहो, 'बहुत अच्छे व्यक्ति, आप बहुत भले व्यक्ति हो', तो आपको भीतर शांति देगा। आपके बोलने से सामनेवाले को शांति हो गई। आपको भी शांति। इसलिए यही सावधानी रखने की ज़रूरत है न!
आप एक शब्द बोलो कि 'यह नालायक है', तो 'लायक' का वजन एक किलो होता है और 'नालायक' का वजन चालीस किलो होता है। इसलिए 'लायक' बोलोगे उसके स्पंदन बहुत कम होंगे, कम हिलाएँगे, और 'नालायक' बोलोगे तो चालीस पाउन्ड हिलेगा। बोल बोले उसके परिणाम!
प्रश्नकर्ता : यानी चालीस पाउन्ड का पेमेन्ट खड़ा रहा।
दादाश्री : छुटकारा ही नहीं न!
प्रश्नकर्ता : फिर हम ब्रेक कैसे लगाएँ? उसका उपाय क्या है?
दादाश्री : 'यह वाणी गलत है' ऐसा लगे तब प्रतिदिन परिवर्तन होता जाता है।
एक व्यक्ति से आप कहो कि 'आप झूठे हो।' तो अब 'झूठा' कहने के साथ ही तो इतना सारा साइन्स घेर लेता है भीतर, उसके पर्याय इतने सारे खड़े हो जाते हैं कि आपको दो घंटों तक तो उस पर प्रेम ही उत्पन्न नहीं होता। इसलिए शब्द बोला ही नहीं जाए तो उत्तम है और बोल लिया जाए तो प्रतिक्रमण करो।
Book Name: वाणी, व्यवहार में... (Page #14 Paragragh #4, #5, #6, #7 & Page #15 Paragragh #1 to #7)
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