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आध्यात्मिक प्रगति में क्या-क्या बाधाएँ आती हैं?

परम पूज्य दादा भगवान आध्यात्मिक साधकों को तीन ऐसी भयंकर आदतों के बारे में चेतावनी दी है, जो समय के धीरे धीरे हमारी आध्यात्मिक प्रगति में अवरोध लाती हैं। ऐसी आदतें हमारे आध्यात्मिक जीवन में बाधक हैं, जो इस प्रकार हैं:

  1. मांसाहार करना
  2. शराब और ड्रग्स जेसे नशीले पदार्थों का सेवन करना
  3. अणहक्क के विषय

इसमें भयंकर नुकसान होता है! ऐसा इसलिए है क्योंकि इन क्रियाओं में हिंसा होती है और वे जीव हमारे साथ बैर बांधते हैं। इन कर्मों का हिसाब चुकाने के लिए, अगर वे जीव अधोगति में जाएँ तो फिर हमें भी उनके साथ अधोगति में जाना पड़ता है! आइए, अब इनमें से प्रत्येक अवरोध को विस्तार से समझें:

1. मांसाहार करना

मांसाहार और अध्यात्म एक साथ हो नहीं सकते। ज़रा सोचिए अगर आपकी आंखों के सामने एक नवजात शिशु को मार दिया जाए तो आपको कैसा लगेगा? हम इसे बेरहम क्रूर कृत्य कहेंगे, है न? पूर्ण विकसित पंचेन्द्रिय नन्हे जीव को तीव्र पीड़ा और भय से रोते हुए देखना कठिन है। यह देखकर उसकी माँ को भी कितना दुःख होगा। संक्षेप में कहें तो, यह मानवीय कृत्य नहीं है।

इसी प्रकार मुर्गी, मछली, गाय या किसी अन्य पशु को मारना भी मानवीय कार्य नहीं है क्योंकि वे भी जीव हैं। वे अत्यधिक भय का अनुभव करते हैं और इसलिए, खुद को बचाने के लिए आश्रय की तलाश में इधर-उधर भागते रहते हैं। फिर हम सिर्फ़ अपने भोजन के लिए उनको मारने का आनंद कैसे ले सकते हैं? यह पाशवी आनंद हमारी आध्यात्मिक प्रगति में बहुत बड़ी बाधा है।

ऐसा कैसे? क्या हमने कभी जानबूझकर चाकू से अपनी उंगली काटने का प्रयास किया है? अगर ऐसा करते हैं तो कितना दुःख होता है? तो, जब उस जीव का गला काटा जाता है तो उसे कितना दुःख होगा? उसे कितना त्रासदायक और डरावना महसूस होता है; उसे मरते वक़्त बहुत बेचैनी और दुःख होते हैं। बाद में, जब हम उसका सेवन करते हैं तो दुःख, भय और पीड़ा से भरे उनके वो परमाणु हमारे शरीर में आते हैं और परिणाम स्वरूप, हमें भी पीड़ा होती है। दूसरों को दुःख पहुँचाकर कोई कभी भी सुखी नहीं हो सकता। इसलिए, दूसरों को दुःख न दें, जो आध्यात्मिक प्रगति की सबसे बड़ी चाबी है।

शाकाहारी भोजन करें। इसमें जोख़िम कम है। मांसाहार में, पंचेन्द्रिय जीव की हिंसा होती है।

इस संसार में अलग-अलग इन्द्रियों के जीव हैं। उदाहरण के लिए, पौधों, फलों और सब्ज़ियों में केवल एक इन्द्रिय ही विकसित हुई है। हालाँकि, पक्षियों और जानवरों में एक से ज़्यादा इन्द्रियाँ होती हैं। इसलिए, जब हम पौधे, जड़ी-बूटियाँ या सब्जियाँ खाते हैं; तब हमारी ज़िम्मेदारी बहुत कम हो जाती है क्योंकि वे एक इन्द्रिय जीव, बेहोश अवस्था में हैं। मृत्यु के समय इन जीवों को कत्ल किए गए जीवों की तुलना में बहुत कम पीड़ा होती है।

तदनुसार, जब कोई मांसाहार करता है, तो वह उस जीव में भय और दर्द पैदा करने और आख़िरकार विकसित जीव का जीवन छीनने के लिए कहीं ज़्यादा ज़िम्मेदार होता है। भले ही हम सीधे तौर पर हिंसा नहीं करते हों, फिर भी कोई हमारे लिए मारता है, और इसलिए हम इस हिंसा के समान रूप से ज़िम्मेदार हो जाते हैं। इस प्रकार, मांसाहारी भोजन करते समय किया गया पाप या बुरा कर्म हमारे जीवन में शाकाहारी भोजन खाने से उत्पन्न होने वाली पीड़ा से कहीं अधिक पीड़ा होती है।

मांस, अंडे, मछली - ये सभी मांसाहारी चीज़े हैं क्योंकि आप पाँच इन्द्रियों ज़ीवो की हिंसा करते हैं। मछली, पक्षियों और जानवरों की पाँच इन्द्रियाँ होती हैं। आप दो इन्द्रियों से लेकर पाँच इन्द्रियों वाले जीव को खा नहीं सकते; अगर आप आध्यात्मिक प्रगति करना चाहते हैं, तो आप केवल एकेन्द्रिय जीव, जैसे कि सब्जियाँ ही खा सकते हैं।

इसलिए, जब आप मांसाहार करते हैं, तो आपको दो तरह से हानि होती है:

  • जिस पशु की हिंसा की जाती है हिसाब आपके साथ उसका बंध जाता है; वह इसका बदला लेगा। (उसके परिणामस्वरूप आपको दुःख सहना पड़ेगा)
  • भगवान कहते हैं कि यदि आप मांस खा रहे हैं तो आपको अधोगति यानि पशु योनि या नरक में जन्म लेना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि आप किसी की हिंसा कर रहे हैं। यह किसी जीव की हत्या करने जैसा है।

इसके अलावा, मांसाहारी भोजन खाना आध्यात्मिक प्रगति के लिए हानिकारक है, क्योंकि यह हमारे आत्मा पर आवरण लाता है। तो हमारी ग्रहण शक्ति कम हो जाती है।

मान लीजिए कि प्रकाश का एक गोला है और आप उसे किसी गहरे रंग के कपड़े जैसी किसी चीज़ से पूरी तरह ढक देते हैं, तो क्या उसमें से कोई प्रकाश किरणें निकलेंगी? नहीं, आवरण के कारण प्रकाश बाहर नहीं आएगा। इसी प्रकार, मांसाहार से आत्मा पर आवरण आता है अर्थात् आत्मा के प्रकाश, दर्शन और ज्ञान पर आवरण ला देता है।

इस प्रकार, हम मांसाहार से आत्मा के ज्ञान और दर्शन पर आवरण लाते हैं। इसलिए, हमें मांसाहार नहीं करना है क्योंकि हमें परमात्म दशा तक पहुँचना है।

2. शराब, अल्कोहल, ड्रग्स या किसी अन्य नशीले पदार्थ का सेवन

शराब और आध्यात्मिक प्रगति एक साथ नहीं हो सकते। शराब से भी बहुत नुकसान होता है। शराब बनाने के लिए, फर्मेंटेशन प्रक्रिया होती है, जिसमें कई जीव उत्पन्न होते हैं। बाद में उन जीवों को निचोड़ने पर वे मर जाते हैं। जब उसका रस हम शराब के रूप में पीते हैं तो हमारे दिमाग़ के ज्ञानतंतुओं पर प्रतिकूल असर पड़ता है। ऐसा ही प्रभाव तब होता है जब हम ड्रग्स का सेवन करते हैं। इसलिए, हमें अपने आध्यात्मिक प्रगति के लिए हमें इन दो चीजों से बचना चाहिए।

आध्यात्मिक मार्ग पर हमारी अजागृति से पूर्ण जागृति कि ओर आने की लगातार खोज और प्रयास हैं। जब आप शराब या ड्रग्स लेते हैं, तो आप यह भी भूल जाते हैं कि 'मैं चंदू हूँ।' तो यह तो उससे भी बड़ी अजागृति है। ये सभी नशीले पदार्थ हमारी जागृति पर आवरण लाते हैं। अंत में, वह हमारी जागृति को संपूर्ण बर्बाद कर देते हैं।

यदि आप 440 वोल्ट के स्विच में अपना हाथ डालते हैं और स्विच चालू है और सोचते हैं कि "मैं बस देख रहा हूँ, यह जो कर रहा है वह चंदू है”। तो क्या यह ठीक है? आप ऐसा करते हैं तो क्या होगा? आध्यात्मिक प्रगति को तो भूल ही जाओ, लेकिन आपका तुरंत ही मृत्यु हो जाएँगा। इसी तरह, इन चीज़ों का सेवन करके आप खुद को मार रहे हैं, आप आध्यात्मिक दृष्टि से मर रहे हैं! इनके सेवन में इतना बड़ा ख़तरा है!

3. अणहक्क के विषय न करें

परम पूज्य दादा भगवान गारन्टी के साथ कहते हैं कि वर्तमान समय में एक पत्नीव्रत या एक पतिव्रत वह ब्रह्मचर्य कहलाए। “अत: हम कहते हैं कि इस काल में जो एक पत्नीव्रत रखेगा, उसका मोक्ष होगा। ऐसी ‘गारन्टी’ देते हैं! हक़ के विषयवालों का मोक्ष है मगर बिना हक़ के विषयवालों का मोक्ष नहीं है, ऐसा भगवान ने कहा है।"

अणहक्क के विषय और आध्यात्मिकता शत्रु की तरह हैं। परम पूज्य दादा भगवान स्पष्ट रूप से बताते हैं की अणहक्क के विषय कितना जोख़िम है! ”यदि तू संसारी है तो तेरे हक़ का विषय भोगना, परंतु बिना हक़ का विषय तो मत ही भोगना, क्योंकि उसका फल भयंकर है।”

हक़ का छोड़कर दूसरी किसी जगह पर ‘प्रसंग’ हुआ तो वह स्त्री जहाँ जाए, वहाँ हमें जन्म लेना पड़ता है। वह अधोगति में जाए तो हमें वहाँ जाना पड़े। नियम कैसा है कि जिसके साथ बिना हक़ के विषय भोगे होंगे वही फिर माँ अथवा बेटी बनती है। हालाँकि, बिना हक़ के लिए तो मना ही है। यदि पछतावा करे तो छूट जाए।

हालाँकि, बिना हक़ के विषय जिसने भोगे, वे कई जन्मों तक दुःख भुगतने की गांठ बाँध लेते हैं। उसके बच्चे भी किसी एक जन्म में चरित्रहीन होते हैं। बिना हक़ का भोगने में तो पाँचों महाव्रतों का दोष आ जाता है। उसमें हिंसा होती है, झूठ आ जाता है, यह खुलेआम चोरी कहलाती है। बिना हक़ का तो सरेआम चोरी कहलाता है। फिर अब्रह्मचर्य तो है ही और पाँचवा परिग्रह। यह तो सबसे बड़ा परिग्रह है।

इस प्रकार, ये आध्यात्मिक प्रगति की तीन मुख्य बाधाएँ हैं। हम सभी मोक्ष के पात्र हैं, यदि हम मोक्ष चाहते हैं! आज तक, हो सकता है कि अभी तक आप मांसाहार या शराब का सेवन अपनी आध्यात्मिक उन्नति पर उनके परिणाम जाने बिना कर रहे हों। हालाँकि, आप अब स्वीकार करते हैं कि इस प्रकार की जीवनशैली रखना सही नहीं है, तो आप इसी जीवन में इसके असरों से मुक्त हो सकते हैं। इसके लिए, आपको यह करना होगा:

  1. दृढ़ निश्चय करें कि हम इन तीन भयस्थानों में नहीं पड़ेंगे।
  2. अब तक आपने जो भी गुनाह किया है, उसके लिए पश्चाताप करें और क्षमा मांगें
  3. प्रति दिन 10 मिनट के लिए, यह शक्ति मांगें, "हे दादा भगवान (या जिस भी भगवान को आप मानते हैं), यह बुरी आदतें छूट जाएँ ऐसी मुझे शक्ति दीजिए।"
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