प्रश्नकर्ता : हम प्रतिक्रमण न करें तो फिर किसी समय सामनेवाले के साथ चुकता करने जाना पड़ेगा न?
दादाश्री : नहीं, उसे चुकता नहीं करना है। हम बंधन में रहे। सामनेवाले से हमें कुछ लेना-देना नहीं।
प्रश्नकर्ता : किंतु हमें चुकता करना पड़ेगा न?
दादाश्री : इससे हम ही बँधे हुए हैं। इसलिए हमें प्रतिक्रमण करना चाहिए। प्रतिक्रमण से मिट जाये। इसलिए तो आपको हथियार दिया है न, प्रतिक्रमण!
प्रश्नकर्ता : हम प्रतिक्रमण करें और बैर छोड़ दें परंतु सामनेवाला बैर रखे तो?
दादाश्री : भगवान महावीर पर कितने सारे लोग राग करते थे और द्वेष रखते थे, उसमें महावीर को क्या? वीतराग को कुछ छूएगा नहीं। वीतराग माने शरीर पर बिना तेल लगाये बाहर घूमते हैं और अन्य सभी तेल लगाकर घूमते हैं। इसलिए तेलवालों को सब धूल लगेगी।
प्रश्नकर्ता : इन दो व्यक्तियों के बीच जो बैर बंधता है, राग-द्वेष होता है, अब उसमें मैं खुद प्रतिक्रमण करके मुक्त हो जाऊँ, परंतु दूसरा व्यक्ति बैर नहीं छोड़ता, तो वह फिर अगले जनम में आकर उस राग-द्वेष का हिसाब तो पूरा करेगा न? क्योंकि उसने तो अपना बैर छोड़ा नहीं है न?
दादाश्री : प्रतिक्रमण से उसका बैर कम हो जायेगा। एक बार में प्याज़ की एक परत जायेगी, दूसरी परत, जितनी परतें होंगी उतनी जायेंगी। आपको समझ में आया?
Book Name: प्रतिक्रमण (Page #57 Paragraph #5,#6,#7 & Page #58 Paragraph #1 to #5)
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