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अध्यात्म में वीर्य क्या है? वीर्य शक्ति के उर्ध्वगमन से अध्यात्म में क्या मदद हो सकती है ?

वीर्य क्या है?

लोकसार मोक्ष है और पुद्गलसार वीर्य है। संसार की सभी चीजें स्वभाविक रुप से अधोगामी है। यदि निश्चय कर ले तो, केवल वीर्य ही उर्ध्वगामी हो सकता है। इसलिए, ऐसे भाव करने चाहिए जिससे वीर्य उर्ध्वगामी हो और अंततः आत्मा जागृति के बीज पड़ सके।

परम पूज्य दादाश्री ने वीर्य के बारे में स्पष्टता से समझाया है, आईए जाने :

दादाश्री : यह सब खाते हैं, पीते हैं, उसका क्या होता होगा पेट में?

प्रश्नकर्ता : रक्त होता है।

दादाश्री : उस रक्त का फिर क्या होता है?

प्रश्नकर्ता : रक्त से वीर्य होता है।

दादाश्री : ऐसा? वीर्य को समझता है? रक्त से वीर्य होगा, उस वीर्य का फिर क्या होगा? रक्त की सात धातुएँ कहते हैं न? उनमें एक से हड्डियाँ बनती है, एक से मांस बनता है, उनमें से फिर अंत में वीर्य बनता है। आखरी दशा वीर्य होती है। वीर्य पुद्गलसार कहलाता है। दूध का सार घी कहलाता है, ऐसे ही यह जो आहार ग्रहण किया उसका सार वीर्य कहलाता है।

वीर्य डिस्चार्ज क्यों होता है ?

शरीर से निकलने वाले पदार्थ ( मल मूत्र , संडास) समय आने पर निकल ही जाते है , अंदर रहते ही नहीं । अगर तुम विषय विचार में तन्मयाकार होते हो , तब भीतर भरा हुआ माल गिरकर (सूक्ष्म में स्खलन ) नीचे चला जाता है । फिर वंहा इकठ्ठा होकर तुरंत निकल जाता है । लेकिन अगर विषय का विचार आया और तुरंत ही उखाड़ फेंका तब वीर्य स्खलन होकर नीचे नहीं जाता है। वह आध्यात्मिक क्षेत्र में एक उच्च स्तर तक बढ़ जाएगा। इतना सारा भीतर में विज्ञानं है।

पिछले जन्म से कर्म के परिणाम लेकर आते है वह डिस्चार्ज होने के लिए बाध्य हैं। विषय का विचार आया और उसे पोषण दिया तो वीर्य कमजोर/ निर्जीव हो जाता है | इसलिए किसी भी तरह से डिस्चार्ज होने के लिए अपना रास्ता खोज लेगा।

परम पूज्य दादाश्री ने यहाँ विस्तार से वीर्य के स्खलन के बिज्ञान के बारें में बताया है:

प्रश्नकर्ता : वीर्य का गलन होता है, वह पुद्गल के स्वभाव में होता है या किसी जगह हमारा लीकेज होता है, इसलिए होता है?

दादाश्री : हम देखें और हमारी दृष्टि बिगड़ी, तब वीर्य का कुछ भाग ‘एग्ज़ॉस्ट’ (स्खलित) हो गया कहलाता है।

प्रश्नकर्ता : वह तो विचारों से भी हो जाता है।

दादाश्री : विचारों से भी ‘एग्ज़ॉस्ट’ होता है, दृष्टि से भी ‘एग्ज़ॉस्ट’ होता है। वह ‘एग्ज़ॉस्ट’ हुआ माल फिर डिस्चार्ज होता रहता है।

प्रश्नकर्ता : पर ये जो ब्रह्मचारी हैं, उन्हें तो कुछ ऐसे संयोग नहीं होते, वे स्त्रियों से दूर रहते हैं, तसवीरें नहीं रखते, केलेन्डर नहीं रखते हैं, फिर भी उन्हें डिस्चार्ज हो जाता है, तो उनका स्वाभाविक डिस्चार्ज नहीं कहलाता?

दादाश्री : फिर भी उन्हें मन में यह सब दिखता है। दूसरे, वे आहार अधिक लेते हो और उसका वीर्य अधिक बनता हो, फिर वह प्रवाह बह जाता हो ऐसा भी हो सकता है।

प्रश्नकर्ता : रात को ज़्यादा खा लिया तो खत्म...

दादाश्री : रात को ज़्यादा खाना ही नहीं चाहिए, खाना हो तो दोपहर में खाना। रात को यदि ज़्यादा खा लिया तब तो वीर्य का स्खलन हुए बिना रहेगा ही नहीं।

वीर्य का स्खलन किसे नहीं होता है? जिसका वीर्य बहुत मज़बूत हो गया हो, बहुत गाढ़ा हो गया हो, उन्हें नहीं होता। ये सब तो पतले हो चुके वीर्य कहलाते हैं।

प्रश्नकर्ता : मनोबल से भी उसे रोका जा सकता है न?

दादाश्री : मनोबल तो बहुत काम करता है! मनोबल ही काम करता है न! लेकिन वह ज्ञानपूर्वक चाहिए। यों ही मनोबल नहीं रह पाता न!

वीर्य का स्वभाव क्या है ?

वीर्य को ऐसी आदत नहीं है, अधोगति में जाने की। वह तो खुद का निश्चय नहीं है इसलिए अधोगति में जाता है। निश्चय किया तो फिर दूसरी ओर मुड़ता है। फिर चेहरे पर दूसरों को तेज दिखने लगता है और यदि ब्रह्मचर्य पालते हुए चेहरे पर कोई असर नहीं हो, तो ‘ब्रह्मचर्य पूर्ण रूप से पालन नहीं किया’ ऐसा कहलाए।

वीर्य के ऊर्धगामी होने के लक्षण क्या है ?

  • विषय का विचार ही नहीं आया तो ऊध्र्वगामी होता है। वाणी मज़बूत होकर निकलती है। ब्रह्मचर्य पालनेवाले को सब कुछ प्राप्त होता है। खुद को वाणी में, बुद्धि में, समझ , सबमें प्रकट होता है। 
  • यदि ब्रह्मचर्य की नियंत्रण में रहकर कुछ साल के लिए रक्षा हुई, तो फिर वीर्य ऊध्र्वगामी होगा और तभी ये शास्त्र-पुस्तकें सभी दिमाग़ में धारण कर सकेंगे। धारण करना कोई आसान बात नहीं है, वर्ना पढ़ता जाएगा और भूलता जाएगा।
  • तेज आने लगता है, मनोबल बढ़ता जाता है, वाणी फर्स्ट क्लास (बहुत अच्छी) निकलती है, वाणी मिठासवाली होती है, वर्तन मिठासवाला होता है। ये सारे उसके लक्षण होते हैं। ऐसा होने में तो देर लगती है, वैसे ही तुरंत नहीं होगा। अभी, एकदम से नहीं होगा।
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