मन विरोधाभासी है । यह आपको दोनों तरह के विचार दिखायेगा ब्रह्मचर्य का पालन करना और आपको विवाह करने के विचार भी दिखायेगा ।
यदि आप ब्रह्मचर्य पालन करने का दृढ़ निश्चय लेते हो और कुछ भी स्थिति आती है, तब मन ज्यादातर स्थिरता में ही रहेगा | यह स्थिरता ही ब्रह्मचर्य पालन करने में मदद करेगी ।
यदि आप ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहते है तो आपको मजबूत रहना होगा । मन कहेगा विवाह करो , ऐसा आपसे भी बुलवाऐगा । यदि मन आपको विवाह करने के विचार या विषय के विचार दिखाए , तब आपको विरोध करना रहेगा । ऐसा करने से मन को समझ आता है कि अब मेरी कोई सुनने वाला नहीं है । तो चलो अपना बिस्तर पैक कर दूसरे गांव जाने के लिए तैयार हो जाए । जब इसका अपमान होता है तो चीज़े बेहतर हो जाती है, क्योंकि मन आपके नियंत्रण में आने लगता है।
मन को तो कब जीत सकते हैं? नज़रे आकर्षित होते ही समझ जाए कि ये मन की वजह से आकर्षित हो रही हैं फिर तुरंत ही मन की सभी बातों को काट दे। यहाँ पर आने के लिए मन मना करे तो उसमें भी उसे काट दे। मन तो भागने के रास्ते ढूँढता है। जहाँ पर मेहनत नहीं करने पड़े, मन वहाँ जाना चाहता है। अगर मन के कहे अनुसार नहीं चलेगा तो सब ठीक हो जाएगा।
ब्रह्मचर्य का पालन करने का आपका निश्चय केवल पूर्ण ब्रह्मचर्य को प्राप्त करने के आपके ध्येय के अनुसार है। अपना निश्चय अपने ध्येय के अनुसार ही है। आज के निश्चय के अनुसार ही करना है हमें। हमारी आज की जो प्लानिंग (आयोजन) है उसके अनुसार ही करना है, मन की प्लानिंग के अनुसार नहीं। अन्यथा ब्रह्मचर्य का पालन करने का ध्येय प्राप्त नहीं होगा ।
निश्चय किसे कहते हैं? कि कैसा भी लश्कर आ जाए फिर भी उसकी सुने नहीं! अंदर कितने भी समझानेवाले मिलें फिर भी उनकी सुनें नहीं! निश्चय करने के बाद, फिर वह बदले नहीं, तो उसी को निश्चय कहते हैं।
निश्चय अर्थात् सभी विषय विचारों को बंद कर के , एक ही विचार पर आना कि मुझे ब्रह्मचर्य का पालन करना है। यदि आप दृढ़ निश्चय करते है ब्रह्मचर्य पालन करने का तो सभी संयोग आ मिलेंगे और निश्चय पक्का होगा। अगर आपका निश्चय कच्चा हो तो संयोग नहीं मिलेंगे और ध्येय पूरा नहीं होगा ।
नहीं, विचार को आने दो न । विचार आता है तो उसमें हमें क्या हर्ज है? विचार बंद नहीं हो जाते। किन्तु नियत ऐसी चोर नहीं होनी चाहिए। अंदर चाहे कैसी भी लालच क्यों न हो, लेकिन वहा झुके नहीं, ऐसा स्ट्रोंग होना चाहिए ।
कुएँ में गिरना ही नहीं है ऐसा निश्चय है, वह चार दिनों से सोया नहीं हो और उसे कुएँ के किनारे पर बिठाएँ फिर भी नहीं सोएगा वहाँ। इसलिए दृढ़ निश्चय से ही आप अपने ब्रह्मचर्य के लक्ष्य को पाने के लिए सक्षम होगे ।
किसी स्त्री को यदि हाथ यों ही छू गया हो तो भी निश्चय को डिगा दे। वे परमाणु रात को सोने भी नहीं दें! इसलिए स्पर्श तो होना ही नहीं चाहिए और दृष्टि बचाएँ तो फिर निश्चय डिगेगा नहीं।
मन को इस तरह से नहीं चलने देना है। ऐसा नहीं होने देना है कि मन हमें खींच ले जाए, हमें मन को अपनी तरह से चलाना है। मन तो जड़ है। ये लोग मन के अनुसार चलते हैं तो उनका सर्वस्व चला जाएगा।
मन के कहे अनुसार नहीं चलना है। जो मन के कहे अनुसार चले न, तो उसका ब्रह्मचर्य नहीं टिकेगा, कुछ भी नहीं टिकेगा। बल्कि अब्रह्मचर्य हो जाएगा।
अपने स्वतंत्र निश्चय से जीओ। मन की ज़रूरत हो तो लेना और ज़रूरत नहीं हो तो छोड़ दो। एक ओर रख दो उसे। लेकिन यह मन तो पंद्रह-पंद्रह दिनों तक घुमाकर फिर शादी करवा देता है। यह ब्रह्मचर्य पालन करते हैं, तो उसमें ब्रह्मचर्य यानी खुद का निश्चयबल। कोई डिगा न सके, ऐसा। जो किसी के कहे अनुसार चले, वह ब्रह्मचर्य पालन कैसे कर सकेगा?
मन आइसक्रीम माँगता रहता हो, तो वो उसके ब्रह्मचर्य के सिद्धांत को इतना ज्यादा नुकशान नहीं करता । इसलिए उसे ज्यादा नहीं, थोडा-सा आइसक्रीम देना चाहिए । उसे डिस्करेज मत करो । उसे थोड़ी गोलियां भी खिला देना । “नहीं मिलेगा, जाओ” ऐसे उसे दबाना नहीं है । केवल अब्रह्मचर्य की बात आई तो संभल जाना, तब सोच – विचार से काम लेना कि, ‘देखो, यह हमारा सिद्धांत है । सिद्धांत के बीच तू मत आना ।‘ एस तरह ब्रह्मचर्य का पालन कर सकते है ।
एक बार उस चीज़ से दूर रहे न, बारह महीने या दो साल तक दूर रहे तो उस चीज़ को भूल ही जाता है फिर। मन का स्वभाव कैसा है? दूर रहा कि भूल जाता है। नज़दीक जाए तो फिर कोचता रहता है! मन का परिचय छूट गया। ‘हम’ अलग रहे, इसलिए मन भी उस चीज़ से दूर रहा, इसलिए फिर भूल जाता है, हमेशा के लिए। उसे याद तक नहीं आती। बाद में, कहने पर भी उस तरफ नहीं जाता। ऐसा तुझे समझ में आता है? तू तेरे दोस्त से दो साल दूर रहेगा तो फिर तेरा मन भूल जाएगा। महीने-दो महीने तक किच-किच करता रहेगा, मन का स्वभाव ऐसा है और अपना ज्ञान तो मन की सुनता ही नहीं है न?
मन को दबाकर नहीं रखना है। मन को वश करना है। वश यानी जीतना है। हम दोनों किच-किच करें, तो उसमें जीतेगा कौन? तुझे समझाकर मैं जीत जाऊँ तो फिर तू परेशान नहीं करेगा न? और बिना समझाए जीत जाऊँ तो? मन चुप रहेगा कि समाधान हो गया है । इसी तरह, हम आत्मज्ञान के माध्यम से सही समझ प्राप्त कर सकते हैं। दुनिया में सिर्फ आत्मज्ञान ही ऐसा है कि जो मन को वश कर सकता है।
प्रश्नकर्ता : अब फाइनली, मैं मन के कहे अनुसार चलता हूँ तो उससे छूटने के लिए क्या करूँ?
दादाश्री : करने का क्या है वहाँ?
प्रश्नकर्ता : कुछ स्टेप तो लेने पड़ेंगे न?
दादाश्री : किस चीज़ के स्टेप लेने हैं? वही तो समझना है। समझ कर उसे गलत ठहरा देना है। अपना जो अनिश्चय है, उसे गलत मान कर निश्चय को स्वीकार कर लेना है।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् मन के कहे अनुसार नहीं चलना है। ऐसी शुरुआत ही कर देनी है कि मन बताए वैसे ‘नहीं चलना’ है।
दादाश्री : उसे फेल ही कर देना। उस पूरे भाग को ही खत्म कर देना है, जो हमें अपने ध्येय से विचलित करे, उसमें करना क्या है? सिर्फ निश्चय। जो डिगे नहीं वैसा निश्चय किया है या नहीं किया?
प्रश्नकर्ता : डिगे नहीं, ऐसा ही निश्चय किया है।
दादाश्री : सौ प्रतिशत न डिगे, ऐसा?
प्रश्नकर्ता : ऐसा ही लगता है।
दादाश्री : थोड़े कच्चे हो आप लेकिन उसके बावजूद भी हम कहते हैं कि अभी भी अगर मन सही चीज़ के लिए उछलकूद कर रहा हो तो कर!’ हम लेट गो करते हैं कि भाई, यह सही चीज़ है। ये गाने वगैरह सुनना, यह कोई सही चीज़ नहीं है। यह खाना, वह सही चीज़ है। तो उसे हम लेट गो करते हैं। नींद सही चीज़ है, तो उसे हम लेट गो करेंगे कि चार घंटें तक सो जाना या पाँच-छ: घंटे सो जाना।
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