आध्यात्मिक पथ पर ब्रह्मचर्य प्रगति के लिए एक महान और सबसे शुद्ध साधन है । अब्रह्मचर्य की स्थिति अज्ञानत के कारण बनी हुई है। ज्ञानी के दृष्टिकोण से इसे समझने के बाद अब्रह्मचर्य की स्थिति रुक जाती है | इसके अलावा व्यवहारिक दृष्टि से भी मन, बुद्धि व वाणी को सहज रखने के लिए, ब्रह्मचर्य का जीवन में होना ज़रूरी है । आयुर्वेद का भी यही मत है | अगर कोई ब्रह्मचर्य का सिर्फ छह महीने के लिए भी पालन करता है, उसे भी अपनी मनोबल , वचन बल और देहबल में अद्भुत परिवर्तन अनुभव होगा !
शारिरिक और मानसिक लाभ :
ब्रह्मचर्य के अध्यात्मिक लाभ:
दादाश्री : ऐसा है न, ब्रह्मचर्यवाला कभी भी गिरता नहीं। उसे कैसी भी मुश्किल आए तो भी वह गिरता नहीं। वह सेफसाइड (सलामती) कहलाती है।
ब्रह्मचर्य तो शरीर का राजा है। जिसे ब्रह्मचर्य हो, उसका दिमाग़ तो कितना सुंदर होता है! ब्रह्मचर्य तो सारे पुद्गल का सार है।
प्रश्नकर्ता : यह सार असार नहीं होता न?
दादाश्री : नहीं, पर वह सार उड़ जाता है न, युझलेस (बेकार) हो जाता है। वह सार हो, उसकी तो बात ही अलग होती है न! महावीर भगवान को बयालीस साल तक ब्रह्मचर्य सार था। हम जो आहार लेते हैं, उन सबके सार का सार वीर्य है, वह एक्स्ट्रेक्ट (सार) है। अब वह एक्स्ट्रेक्ट यदि ठीक से सँभल जाए तो आत्मा जल्दी प्राप्त हो जाता है और सांसारिक दु:ख नहीं आते, शारीरिक दु:ख नहीं आते, अन्य कोई दु:ख नहीं आते।
प्रश्नकर्ता : ब्रह्मचर्य तो अनात्म भाग में आता है न?
दादाश्री : हाँ, मगर वह पुद्गलसार है।
प्रश्नकर्ता : पुद्गलसार है वह समयसार को कैसे मदद करता है?
दादाश्री : वह पुद्गलसार हो तभी समयसार होता है। यह जो मैंने ज्ञान दिया है, वह तो अक्रम है इसलिए चल जाता है। दूसरी जगह तो नहीं चलता। क्रमिक में तो पुद्गलसार चाहिए ही, वर्ना कुछ भी याद नहीं रहता। वाणी बोलने के भी लाले पड़ जाएँ।
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