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ब्रह्मचर्य के पालन के लिये आहार का क्या महत्त्व है? किस प्रकार का आहार ब्रह्मचर्य के लिये हितकारी है ?

ब्रह्मचर्य पालन और उसकी निरंतर जागृति के लिए आहार का बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हम जो आहार लेते है, वह पेट में जाकर दारू बन जाता है, इसलिए हम बाकी दिन सुस्त महसूस करते हैं । आहार का हमारी जागृति पर बहुत असर होता है । अगर कोई ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहता है और ज्यादा खाता भी है तो उसे ब्रह्मचर्य पालन करने में कठिनाई आएगी । तब उसे इसके विपरीत परिणामों को भुगतना पड़ेगा ।

परम पूज्य दादाश्री ने ब्रह्मचर्य पालन के लिए कैसा आहार हितकारी है इसके पीछे का विज्ञान को प्रकट किया है। आहार संबंधित एन चाबीयो का पालन करने से ब्रह्मचर्य और पवित्र जीवन को बनाए रख सकता है।

ऐसे खाद्य पदार्थों से बचें जो विषय स्पंदन (आवेगों) को बढ़ाते हैं

जिसे ब्रह्मचर्य का पालन करना है, उसे ख्याल रखना होगा कि कुछ प्रकार के आहार से उत्तेजना बढ़ जाती है। ऐसा आहार कम कर देना उचित है ब्रह्मचर्य पालन के लिए।

  • ​कंदमूल (प्याज, आलू, लहुसन) - यह तीनो आहार की चीज विषय वृतिओ को उत्तेजना करते है और अब्रह्मचर्य की ओर ले जाते है ।
  • चरबीवाला आहार जैसे कि घी-तेल (अधिक मात्रा में) मत लेना, दूध भी ज़रा कम मात्रा में लेना।
  • घी से बनी मिठाइयाँ, चीनी और मेवा से बने हुए मिष्ठान आदि का देह पर बहुत हानिकारक प्रभाव
    पड़ता है । वे विषय विकार का कारण बनते हैं।
  • घी हमेशा मांस बढ़ानेवाला होता है और मांस बढ़े तो वीर्य बढ़ता है, वह ब्रह्मचारियों की लाइन ही नहीं है न! यानी आप जो भी भोजन खाओ, सिर्फ दाल-चावल-कढ़ी खाओ, फिर भी भोजन का स्वभाव ऐसा है कि घी के बिना भी उसका खून बन जाता है और वह हेल्पिंग होता है। में इस सादे भोजन से पूरी शक्ति मिल जाती है!

उणोदरी तप - ब्रह्मचर्य बनाए रखने के लिए अनोखी चाबी

परम पूज्य दादाश्री समझाते है कि कैसे कम आहार लेने से जागृति बनी रहती है , जिससे शुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन करने में मदद मिलती है:

हमने ठेठ तक उणोदरी (जितनी भूख लगे उससे आधा भोजन खाना) तप रखा था! दोनों वक्त ज़रूरत से कम ही खाते थे, हमेशा के लिए! कम ही खाते थे ताकि अंदर निरंतर जागृति रहे। उणोदरी तप यानी क्या कि रोज़ चार रोटी खाते हों तो फिर दो कर दें, उसे उणोदरी तप कहते हैं। ऐसा है न, आत्मा आहारी नहीं है, लेकिन यह देह है, पुद्गल है, वह आहारी है और देह यदि भैंस जैसी हो जाए, पुद्गल शक्ति यदि बढ़ जाए तो आत्मा को निर्बल कर देती है।

प्रश्नकर्ता : उणोदरी करने का जब बहुत मन होता है, तभी अधिक खा लिया जाता है!

दादाश्री : उणोदरी तो हमेशा रखनी चाहिए। बिना उणोदरी के तो ज्ञान-जागृति रह ही नहीं सकती। यह जो आहार है, वही खुद दारू है। हम जो आहार खाते हैं, उससे अंदर दारू बनती है। फिर पूरे दिन दारू का नशा रहता है और नशा रहे तो जागृति बंद हो जाती है।

प्रश्नकर्ता : उणोदरी और ब्रह्मचर्य में कितना कनेक्शन है?

दादाश्री : उणोदरी से तो अपनी जागृति अधिक रहती है। उसी से ब्रह्मचर्य रहेगा न!! उपवास करने के बजाय उणोदरी अच्छी, लेकिन हमें ऐसा भाव रखना है कि ‘उणोदरी रखनी चाहिए’ और खाना खूब चबाकर खाना। पहले दो लड्डू खाते थे तो अब आप उतने टाइम में एक लड्डू खाओ। तो टाइम उतना ही लगेगा, लेकिन कम खाया जाएगा। ‘मैंने खाया’, ऐसा लगेगा और उणोदरी का लाभ मिलेगा। ज़्यादा टाइम तक चबाएँगे तो बहुत लाभ मिलेगा।

प्रश्नकर्ता : यदि उणोदरी करते हैं, तो खाना खाने के बाद दो-तीन घंटे में अंदर से खाने की इच्छा होती रहती है। फिर ऐसा लगता है कि कुछ खा लें, जो भी मिले वह।

दादाश्री : अकेले पड़ते ही फिर थोड़ा कुछ खा लेता है। वही देखना है न(!) यहाँ भले ही कितना भी रखा हुआ हो लेकिन फिर भी अकेले में भी छूए नहीं, ऐसा होना चाहिए! टाइम पर ही खाना है, उसके सिवा बीच में और कुछ भी नहीं खाना चाहिए। बेटाइम यदि खाते हैं, तो उसका मतलब ही नहीं है न! वह सब मीनिंगलेस है। उससे तो जीभ भी बहल जाती है, फिर क्या रहा? दिवाला निकल जाता है! सभी चीज़ें यों ही रखी हों फिर भी हम नहीं छूते, कुछ भी नहीं छूते! यह तो छूआ और मुँह में डाला तो फिर ऑटॉमैटिक शुरू हो जाएगा, यदि छूओगे न तब भी! आपको तो इतना ही तय करना है कि हमें छूना नहीं है, तो गाड़ी राह पर चलेगी। नहीं तो पुद्गल का स्वभाव ऐसा है कि यों भोजन करने बिठाएँ न, तो चावल आने में ज़रा देर हो जाए तो लोग दाल में हाथ डालते हैं, सब्ज़ी में हाथ डालते हैं और खाते रहते हैं। जैसे बड़ी चक्की हो न, वैसे अंदर डालता ही रहता है।

ब्रह्मचर्य के पालन में उपवास का प्रभाव

उपवास में क्या होता है? इस शरीर में जो जमा हुआ कचरा होता है, वह जल जाता है। उपवास के दिन वाणी की अधिक छूट नहीं हो तो वाणी का कचरा जल जाता है और मन में तो पूरे दिन सुंदर प्रतिक्रमण करता रहे, तरह-तरह का करता रहे, तो ये बाकी का सारा कचरा भी जलता ही रहता है। इसलिए उपवास बहुत ही काम आता है। हफ्ते में एक दिन, रविवार को उपवास करना। लेकिन दो दिन लगातार मत करना, नहीं तो कोई रोग हो जाएगा। जिस दिन उपवास करते हो, उस दिन तो बहुत आनंद होता है न?

प्रश्नकर्ता : उपवास किया हो, उस रात अलग ही तरह का आनंद महसूस होता है, इसका क्या कारण?

दादाश्री : बाहर का सुख नहीं ले तो अंदर का सुख उत्पन्न होता ही है। बाहर के ये सुख लेते हैं इसलिए अंदर का सुख बाहर प्रकट नहीं होता।

जब विषय की वृत्तियां ज़ोर मारें न, तब उपवास करने से बंद हो सकती है।

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